ये है देश का अद्भुत मंदिर जहां स्थापित हैं 30,000 सर्प प्रतिमाएं

punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2020 - 02:09 PM (IST)

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सांप बहुत ही विषैला जीव होता है। हर कोई इससे भय खाता है। तो वहीं अगर से धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो क्योंकि देवों के देव महादेव इसे अपने गले में आभूष के तौर पर धारण करते हैं इसलिए इन्हें पूजनीय माना जाता है। हिंदू धर्म में इन्हें नाग पंचमी नामक दिन समर्पित है। जिस दौरान इन्हें दूध पिलाया जाता है तथा इनकी पूजा की जाती है। मान्यता है इनकी पूजा से कुंडली में पैदा कालसर्प दोष समाप्त हो जाता है।
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अभी तक आप शायद ये समझ ही गए होंगे कि हम आपको आज इनसे ही जुड़ी कोई जानकारी बताने जा रहे हैं। तो बता दें आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। हम आपको आज एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां परिसर में कुल 30,000 सर्प प्रतिमाएं हैं। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन हमारे देश के एक कोने में एक ऐसा मंदिर है। आज तक आपने हिंदू धर्म के अन्य देवी-देवताओं के तो कई मंदिर देखें होंगे, आज हम आपको बताएंगे केरल के मन्नारशाला में स्थित सर्प मंदिर के बारे में-

कहा जाता है कि देश में वैसे विभिन्न स्थानों पर सांप मंदिर है तो लेकिन ये मंदिर सबसे अनोखा माना जाता है। इतना ही नहीं बल्कि इस मंदिर को भारत के आर्श्यों में से एक माना जाता है।

बता दें मन्नारशाली के आलापुज्हा से जिसे अलेप्पी भी कहा जाता है, 37 कि.मी से दूर ये मंदिर स्थित है, जो नागराज तथा उनकी अर्धांगिनी नागयक्षी को समर्पित है। कहा जाता है ये मंदिर लगभग 16 एकड़ के भूभाग में फैला हुआ है और मंदिर के हर कोने हर हिस्से में सांप की प्रतिमा, जिनकी गिनती करीबन 30,000 बताई जाती है।
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इस मंदिर से जुड़ी किंवदंतियों के अनुसार महाभारत काल में खंडावा नामक एक वन प्रदेश था जिसे किसी कारण वश जला दिया गया था, जिसका एक हिस्सा बच गया था। ऐसा कहा जाता है कि वन के सभी सर्पों के साथ अन्य कई जीव जंतुओं ने यहां शरण ले ली। मन्नारशाला वही जगह बताई जाती है। मंदिर परिसर से ही लगा हुआ एक नम्बूदिरी का साधारण सा खानदानी घर (मना/इल्लम) है।

बताया जाता है कमंदिर के मूलस्थान में पूजा अर्चना आदि का कार्य वहां के नम्बूदिरी घराने की बहू निभाती है। उन्हें वहां अम्मा कह कर संबोधित किया जाता है। ये शादी शुदा होने के बावज़ूद ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दूसरे पुजारी परिवार के साथ अलग कमरे में निवास करती हैं।
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इस बारे में एक मान्यता ये है कि उस खानदान की एक स्त्री निस्संतान थी। उसकी प्रार्थना से वासुकी प्रसन्न हुए और जिससे उसे अपनी अधेड़ उम्र एक पांच सर लिया हुआ नागराज तथा एक बालक को जन्म दिया। ऐसा कहा इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा उसी नागराज की है। लोक मान्यताओं की मानें तो यहां नागराज के दर्शन से निस्संतान दंपति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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परंतु इसके लिए दंपति को मंदिर से लगे तालाब (बावड़ी) में नहाकर गीले कपडों में दर्शन हेतु जाना होता है तथा अपने साथ चौड़े मुंह वाला एक कांसे का पात्र लेकर जाना होता है। बता दें यहां इसे वहां उरुली कहा जाता है। मंदिर में उस उरुली को पलट कर रखने से संतान प्राप्ति अथवा अन्य मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। जब मनोकामना पूरी हो जाती हैं तो लोग यहां आते हैं और उरुली को उठाकर सीधा रख कर अपनी श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं।

 


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Jyoti

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