Smile please: हम बदलेंगे तो जग बदलेगा
punjabkesari.in Wednesday, Jul 26, 2023 - 11:01 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Smile please: यह एक ज्ञात तथ्य है कि भारतवर्ष की सबसे बड़ी वर्तमान समस्या अनैतिकता और भ्रष्टाचार है, इसीलिए जो भी सरकारें सत्ता में आती हैं, उनका मुख्य उद्देश्य यही होता है कि शासन को भ्रष्टाचार से मुक्त किस प्रकार रखा जाए। आचार्य विनोबा भावे के शब्दों में- ‘भ्रष्टाचार तो आज शिष्टाचार हो गया है क्योंकि जब सभी लोग ऐसा करने लगें तो यह भ्रष्टाचार नहीं शिष्टाचार हो जाता है। भ्रष्टाचार तभी तक है जब तक कुछ लोग उसे करें, लेकिन सब लोग उसे अपना लें तो वह शिष्टाचार हो जाता है।’
व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो भ्रष्टाचार शब्द बना है भ्रष्ट और आचार शब्द के मिश्रण से, जिसका अर्थ है आचरण का भ्रष्ट हो जाना। सरल शब्दों में इसका अर्थ यह हुआ कि-मानव के आचरण में जब आत्मिक स्नेह की बजाय काम विकार आ जाता है, शांति के स्थान पर क्रोधाग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है, मिल-बांट कर जीवन बिताने की जगह लालच और संग्रह की प्रवृत्ति ले लेती है, सब का भला सोचने की जगह कुछ गिने-चुने लोगों के भले के लिए स्वार्थ की पट्टी आंखों पर बंध जाती है और नम्रता का स्थान अहंकार ले लेता है, तो यह समझ लेना चाहिए कि वह श्रेष्ठ आचरण से गिरकर भ्रष्ट आचरण वाला हो गया है।
संसार में भ्रष्टाचार का अर्थ लिया जाता है धन-साधनों की बेईमानी से, परंतु आध्यात्म में इसका अर्थ बड़ा विस्तृत है। अध्यात्म कहता है कि ‘अपने को आत्मा समझने की बजाय, शरीर समझकर जो भी कर्म किए जाते हैं, वे सभी भ्रष्टाचारी कर्म हैं।’
अपने को देह समझ कर, दूसरे को देहदृष्टि से देखने से जाति, वर्ग, प्रांत, भाषा, लिंग आदि भेद पैदा होते हैं और इसी कारण अहं भाव या हीन भावना भी आती है और स्वार्थ, दिखावा, ईर्ष्या, बदले की भावना, नीचा दिखाने की भावना भी पैदा होती है।
अब प्रश्न उठता है कि यदि हम शरीर नहीं हैं तो फिर क्या हैं ? खुद को हम शरीर न समझें तो फिर क्या समझें? इस प्रश्न के उत्तर में भी अध्यात्म कहता है कि शरीर तो पांच तत्वों का आवरण मात्र है और पांचों तत्वों में से किसी में भी बोलने, चलने, सोचने, समझने की शक्ति तो है नहीं। अत: इस आवरण के भीतर, अति सूक्ष्म परन्तु अति शक्तिशाली एक दिव्य शक्ति मौजूद है जो इतने भारी भरकम शरीर को चलाती है, उठाती है और इसके द्वारा सारे कर्मों को अंजाम भी देती है।
इसीलिए हर व्यक्ति कहता है, मेरी आंख, मेरा मुख, मेरे हाथ-पैर आदि। कोई भी कभी यह नहीं कहता कि मैं आंख हूं या मुख हूं या हाथ या पैर हूं। अगर यह छोटी-सी बात हम सभी समझ जाएं तो इस संसार से भ्रष्टाचार मिट जाएगा और श्रेष्ठाचार आ जाएगा तथा हर व्यक्ति श्रेष्ठ बनकर सुखी, शांत और संपन्न बन जाएगा।
भ्रष्टाचार से मुक्ति का सहज और सरल साधन आज यदि कोई है तो वह है भारत का प्राचीन ‘सहज राजयोग’, जो स्वयं परमपिता परमात्मा के सिवाय और कोई सिखला नहीं सकता। अगर हमें सच्चा श्रेष्ठाचारी बन भारत एवं सम्पूर्ण विश्व को भी भ्रष्टाचारमुक्त बनाना है, तो हमें राजयोग की सहज विधि को सीखना होगा। स्मरण रहे! हम बदलेंगे तो जग बदलेगा।