Smile please: आखिर क्यों सर्वोत्तम है मनुष्य जीवन ?

punjabkesari.in Tuesday, Apr 18, 2023 - 11:44 AM (IST)

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Smile please: शरीर निर्वाह के लिए वस्तुओं की आवश्यकता होती है, रुपयों की नहीं। कारण कि वस्तुएं स्वयं काम करती हैं पर रुपए स्वयं काम नहीं आते। रुपए वस्तुओं के द्वारा काम आते हैं, अत: रुपयों से वस्तुएं विशेष आवश्यक हैं। वस्तुओं से भी आवश्यक शरीर है, शरीर के लिए ही वस्तुएं होती हैं। शरीर का जो महत्व है, वह वस्तुओं का नहीं।

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पशु आदि के शरीर भी बहुत काम के हैं क्योंकि उनसे मनुष्य  के निर्वाह की कई वस्तुएं पैदा होती हैं। जैसे गाय से दूध, भेड़ से ऊन आदि परंतु उनसे भी बढ़कर है मनुष्य का शरीर, जिससे यह लोक और परलोक दोनों सुधर सकते हैं। धर्मग्रंथों में मनुष्य शरीर की बड़ी महिमा आती है। इस शरीर में बढ़िया चीज है विवेक जिससे सार-असार, नित्य-अनित्य, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य, इन बातों का ठीक तरह से बोध होता है। यह विवेक सर्वोपरि है। इस विवेक की ही महिमा है। यह विवेक जितना अधिक होगा, उतना ही मनुष्य श्रेष्ठ होगा।
 
व्यवहार में भी किसी मनुष्य का अधिक आदर होता है, तो उसमें विवेक ही कारण है। मनुष्य में विवेक शक्ति जितनी अधिक जागृत होगी, उतना ही अधिक वह आदरणीय हो जाएगा। कारण कि विवेक शक्ति से वह हरेक बात का ठीक-ठाक निर्णय करेगा।
 
इस विवेक शक्ति की महिमा मनुष्य से भी बढ़ कर है। कारण कि विवेक शक्ति होने से ही मनुष्य शरीर की इतनी महिमा है, मनुष्य के इस ढांचे (शरीर) की आकृति की महिमा नहीं है। विवेक से भी बढ़कर क्या है ? विवेक से भी बढ़कर है परमात्मा। विवेक के द्वारा सार-असार, नित्य-अनित्य को समझकर नित्य, र्निवकार और सर्वोपरि परमात्मा तत्व को प्राप्त कर लेने में ही मनुष्य शरीर की सफलता है। उसे प्राप्त न करके सांसारिक भोगों में ही समय लगा दिया तो मनुष्य शरीर सफल नहीं हुआ। भोग का सुख तो पशु-पक्षियों को भी मिलता है, वे भी आराम से रहते हैं। अत: सांसारिक सुखभोग और आराम मिलना होगा तो पशुओं की योनि में भी मिल जाएगा, परंतु परमात्मा तत्व की प्राप्ति इस मनुष्य शरीर में ही हो सकती है। मनुष्य को छोड़कर दूसरे जितने भी पशु-पक्षी हैं, वे परमात्मा तत्व को समझ भी नहीं सकते।

मनुष्य शरीर को सबसे दुर्लभ बताया गया है परंतु मनुष्य शरीर में आकर भी जो अपना उद्धार नहीं करता केवल खाने-कमाने में ही लगा रहता है, उसकी निंदा की गई है।

रुपए-पैसों का संग्रह हो जाए और उनसे हम सुख भोगें, इन दोनों में जो अत्यंत आसक्त हो जाते हैं, वे मनुष्य परमात्मा तत्व, मुक्ति, महान आनंद, इसको जान ही नहीं सकते। दुख सदा के लिए मिट जाए और सदा के लिए महान आनंद हो जाए, तत्व को समझने की ताकत उनमें नहीं रहती। हमें उसी तत्व को प्राप्त करना है, जो इस मनुष्य शरीर से ही प्राप्त किया जा सकता है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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