Shukra Pradosh Vrat: भगवान शिव के मुख से जानें, शुक्र प्रदोष की Importance
punjabkesari.in Friday, Sep 23, 2022 - 07:45 AM (IST)

Shukra Pradosh Vrat 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार आज शुक्रवार, 23 सितंबर 2022 को प्रदोष व्रत है। ये भगवान शिव के प्रिय दिनों में से एक है क्योंकि ये दिन शुक्रवार को पड़ रहा है इसलिए इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा। भगवान शिव की कृपा पाने का ये व्रत सबसे अच्छा माध्यम है। प्रदोष हर माह में दो बार अर्थात शुक्ल या कृष्ण पक्ष की तेरस को मनाया जाता है। मूलतः हर माह की त्रयोदशी तिथि परमेश्वर शिव को समर्पित है। शब्द "प्रदोष" प्र और दोष से मिलकर बना है, प्र का अर्थ है कर्म का मार्ग और दोष का अर्थ है विकार। जिस प्रकार शब्द प्रयास का अर्थ है श्रम करने का मार्ग, प्रयोग का अर्थ खोजने का मार्ग। इसी तरह प्रदोष का अर्थ है दोष से मुक्ति का मार्ग।
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Shukra pradosh vrat ka mahatva : त्रयोदशी तिथि सभी प्रकार के दोषों का शमन करने की क्षमता रखती है अतः इसे प्रदोष कहा जाता हैं। मान्यतानुसार प्रदोष का विधिवत पूजन गरीबी, रोग, मृत्यु, पीड़ा, व्याधि, दुख आदि विकारों से मुक्ति के मार्ग खोल देता है। इसके पीछे चंद्रमा के दोषों और मुक्ति की पौराणिक कथा भी उपलब्ध है।
Shukra Pradosh Vrat Katha: प्रदोष का पौराणिक संदर्भ: पौराणिक कथानुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र पुत्रियों से हुआ था। चंद्रदेव का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दु:ख प्रकट किया। क्रोधी दक्ष से चंद्रदेव को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दे दिया। क्षय रोग से ग्रसित चंद्रदेव अपनी कलाएं क्षीण करने लगे। देवऋषि नारद ने चंद्रदेव को मृत्युंजय की आराधना का मार्ग दिखाया, तत्पश्चात चंद्रदेव ने अपनी अंतिम कला अर्थात अंतिम सांसे गिनते हुए प्रभास क्षेत्र में महादेव की आराधना की।
मृत्युंजय महादेव ने प्रदोष काल में चंद्रदेव को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण किया यानि चंद्रदेव मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए।
Shukra Pradosh Benefits & Significance- पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होते हुए पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए। अतः मृत्युंजय महादेव ने चंद्रमा को प्रदोष पर दोष मुक्त कर दिया। शास्त्रनुसार महादेव ने सती को प्रदोष का महत्व समझाते हुए कहा था की कलियुग में प्रदोष ही धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का सबसे सटीक मार्ग होगा। सर्वप्रथम प्रदोष का ज्ञान महर्षि वेदव्यास ने महर्षि सूत को बताया व गंगा तट पर सूतजी ने सौनकादि ऋषियों को प्रदोष का ज्ञान दिया था।
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