तिथियों से जानें सुयोग-कुयोग, शुभ-अशुभ मुहूर्त ऐसे होते हैं निर्धारित

punjabkesari.in Monday, Dec 12, 2016 - 03:34 PM (IST)

प्रतिपदा का स्वामी अग्नि, द्वितीया का ब्रह्मा, तृतीया की गौरी, चतुर्थी का गणेश, पंचमी का शेषनाग, षष्ठी का कार्तिकेय, सप्तमी का सूर्य, अष्टमी का शिव, द्वादशी का विष्णु, त्रयोदशी का कामदेव, चतुर्दशी का शिव पूर्णमासी का चंद्रमा व अमावस्या का पितर स्वामी होता है।


इन स्वामियों का विचार करके ही हमें शुभ-अशुभ कार्यों को पूरा करना चाहिए। क्रमश: प्रतिपदा के दिन अग्नि से संबंधित काम करना चाहिए। इसी प्रकार ब्रह्मा, गौरी, गणेश, शेषनाग, कार्तिकेय, सूर्य आदि देवों की आराधना क्रमश: तिथियों में करने से विशेष सिद्धिदायक होती है। इसी के साथ नवमी तिथि को दुर्गा देवी की आराधना तंत्र विद्या में सफलता देती है। दशमी को प्रतिशोध वाले कार्य और एकादशी को विशेष रूप से दान-पुण्य व्रत का बड़ा महत्व है। इस तिथि को कोई काम करने से भूख से संबंधित दोष पैदा होते हैं। एकादशी को हमेशा दूसरे जीवों को खिलाना चाहिए। द्वादशी को विष्णु भगवान की पूजा का बड़ा महत्व है। त्रयोदशी को विवाह मुहूर्त नहीं करना चाहिए परंतु इस तिथि की अद्र्धरात्रि में वशीकरण मंत्र जप बड़े सिद्धिदायक होते हैं। इनके जप से कार्य के पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है। चतुर्दशी अमावस्या के पहले वाली में पितरों की पूजा का विशेष महत्व है। पितरों की पूजा इसी तिथि को करनी चाहिए और पूर्णिमा सभी कार्यों में सफलता देने वाली होती है।


तिथि और उनके स्वामी
1, 6, 11 नंदा, 2, 7, 12 भद्रा, 3, 8, 13 जया 4, 9, 14 रिक्ता और 5, 10, 15 पूर्णा तिथियां कहलाती हैं। कई बार इनके साथ वार का शुभ संयोग बैठता है जो बहुत ही वांछित फल प्रदान करने वाला होता है। जैसे मंगलवार को जया, बुधवार को भद्रा, वीरवार को पूर्णा, शुक्रवार को नंदा तथा शनिवार को रिक्ता तिथियां कार्य की सिद्धिदायक होती हैं। इसी प्रकार नंदा तिथि रविवार या मंगलवार को भद्रा तिथि सोमवार या शुक्रवार को जया तिथि बुधवार को रिक्ता तिथि वीरवार को तथा पूर्णा तिथि शनिवार को आए तो बेहद कष्टकारी योग होता है। इस योग में कार्य करने से ज्यादातर मामलों में असफलता ही मिलती है।


मास शून्य तिथियां
चैत्र मास में दोनों पक्ष की अष्टमी और नवमी वैशाख में दोनों पक्षों की द्वादशी और ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष को चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की षष्ठमी व शुक्ल पक्ष की सप्तमी, श्रावण मास में दोनों पक्षों की तृतीया व द्वितीया आश्विन में दोनों पक्षों की दशमी व एकादशी कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी मृगशिर मास में दोनों पक्षों की सप्तमी व अष्टमी पौष मास  में दोनों पक्षों की चतुर्थी व पंचमी माघ मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की षष्ठी फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी व शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि मास शून्य तिथियां होती हैं। इन तिथियों के अंदर कोई शुभ काम न करें।


राहु काल का रखें ध्यान
रोजाना राहुकाल वेला को भी ध्यान में रखना चाहिए, जो साधारणत: स्थानीय समयानुसार सोमवार को सुबह 7.30 से 9 तक, मंगलवार को 15.00 से 16.30 तक, बुधवार को 12 से 13.30  तक, वीरवार को 13.30 से 15.00 तक, शुक्रवार को 10.30 से 12.00 तक, शनिवार को 9.00 से 10.30 तक व रविवार को सायं 16.30 से 18.30 बजे के काल में रहता है। इन योगों को देखकर काम करना चाहिए।


चंद्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। इसका मान सूर्य व चंद्रमा के बीच के अंतर अंशों से निकाला जाता है। प्रतिदिन 12 अंशों का भ्रमण सूर्य व चंद्रमा के भ्रमण में होता है, जिसकी गणना हम पक्षों को लेकर करते हैं। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां शुक्ल पक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियां कृष्ण पक्ष की होती हैं। हमें तिथियों की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए।
 


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