Ashadha Amavasya 2025: जून 2025 में आषाढ़ अमावस्या कब है ? जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
punjabkesari.in Saturday, Jun 21, 2025 - 03:15 PM (IST)

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Ashadha Amavasya 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है। आषाढ़ मास की अमावस्या को आषाढ़ अमावस्या कहा जाता है। यह तिथि न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व रखती है बल्कि पितरों की शांति के लिए भी अत्यंत फलदायी मानी जाती है। इस दिन व्रत, पूजा, स्नान, दान और तर्पण जैसे कर्म करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
आषाढ़ अमावस्या 2025
वर्ष 2025 में आषाढ़ अमावस्या का आगमन बुधवार, 25 जून 2025 को हो रहा है।
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 24 जून 2025 को शाम 6:59 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त: 25 जून 2025 को शाम 4:00 बजे तक
इस प्रकार, 25 जून को दिन भर आषाढ़ अमावस्या की पूजा और तर्पण कर्म किया जा सकता है।
धार्मिक महत्व
पितृ तर्पण और श्राद्ध का उत्तम दिन:
आषाढ़ अमावस्या को पितरों की आत्मा की शांति के लिए जल अर्पण किया जाता है। यह तिथि पितृ दोष को शांत करने में सहायक मानी जाती है।
नेगेटिव ऊर्जा से मुक्ति:
ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है। इस दिन पूजा, उपवास और मंत्र जप से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
पुण्य व्रत और दान का अवसर:
इस दिन किए गए दान का फल सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना अधिक मिलता है।
आषाढ़ अमावस्या की पूजा विधि-
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करना शुभ माना जाता है।
पवित्र जल में काले तिल, कुश और चावल डालकर पूर्वजों का स्मरण करते हुए जल अर्पित करें।
पीपल पूजन करें: पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और सात बार उसकी परिक्रमा करें।
भगवान शिव और विष्णु की आराधना करें: शिवलिंग पर जल व बेलपत्र अर्पित करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
दान करें: अन्न, वस्त्र, तिल, आटा, गुड़, और दक्षिणा का दान गरीबों, ब्राह्मणों, गायों और जरूरतमंदों को करें।
व्रत और उपवास: इस दिन व्रत रखने से मानसिक और शारीरिक शुद्धि होती है।
विशेष मंत्र जाप-
पितृ तर्पण मंत्र: ॐ पितृदेवाय नमः
गायत्री मंत्र: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
महामृत्युंजय मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥