Shri Vashishtha Mandir: मनाली का 4000 वर्ष प्राचीन वशिष्ठ मंदिर, गर्म पानी के चश्मे के लिए है प्रसिद्ध
punjabkesari.in Sunday, Feb 16, 2025 - 09:11 AM (IST)
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Shri Vashishtha Mandir: हिमाचल प्रदेश के मनाली में प्राकृतिक पर्यटन स्थलों के साथ-साथ धार्मिक पर्यटन स्थल भी बहुत हैं, जो पर्यटकों और आस्थावान लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। मनाली शहर से 3 कि.मी. की दूरी पर रोहतांग जाने वाले मार्ग के करीब स्थित वशिष्ठ मंदिर अपने गर्म पानी के चश्मे के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के अंदर ऋषि वशिष्ठ की काले ग्रेनाइट पत्थर की मूर्ति प्रतिष्ठित है।
मंदिर का इतिहास
वशिष्ठ मंदिर 4000 साल पुराना बताया जाता है, जो महान ऋषि गुरु वशिष्ठ को समर्पित है, जो सबसे पुराने और सबसे सम्मानित वैदिक ऋषियों में से एक हैं। ऋषि वशिष्ठ तथा विश्वामित्र के बीच इच्छापूर्ति गाय कामधेनु को लेकर दुश्मनी थी। किंवदंती है कि विश्वामित्र ने वशिष्ठ के सभी बच्चों को मार डाला था, जिस कारण वे इतने दुखी थे कि उन्होंने नदी में कूदकर अपनी जान देने की कोशिश की, लेकिन नदी ने उन्हें बचा लिया। ऋषि वशिष्ठ विपाशा नदी (विपाशा शब्द का अर्थ है बंधन से मुक्ति) के किनारे बसे गांव में बस गए।
गांव का नाम वशिष्ठ रखा गया और विपाशा नदी को बाद में ब्यास नदी के नाम से जाना जाने लगा। बाद में उसी स्थान पर ऋषि को समर्पित मंदिर बनाया गया जहां वह ध्यान किया करते थे। इस प्रकार वशिष्ठ मंदिर अस्तित्व में आया।
खौलते पानी के चश्मे
छोटा-सा यह खूबसूरत गांव गर्म पानी के चश्मों और उनकी ठीक बगल में बने वशिष्ठ मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। चश्मे, जिसे गर्भ कुंड कहा जाता है, के पानी में बहुत ही उपचारात्मक शक्ति है, जो कई त्वचा रोगों और अन्य संक्रमणों को ठीक कर सकता है। यहां तुर्की शैली के स्नानघर उपलब्ध हैं, जिनमें चश्मों का गर्म पानी होता है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अलग-अलग स्नानघर हैं। चश्मों के पानी का तापमान 110 से 123 डिग्री फारेनहाइट के बीच रहता है और माना जाता है कि यह हिमालय के अधिकांश हिस्सों में मौजूद गहरे ग्रेनाइट जमाव से निकलता है। यह ग्लेशियल खनिजों से भरपूर है और पानी में सल्फर की गंध आती है।
कुंड के किनारे लगे नोटिस के अनुसार, यह पवित्र कुंड है और पूरी कुल्लू घाटी के देवी-देवताओं को उनकी पालकियों में बैठाकर पवित्र स्नान के लिए यहां लाया जाता है इसलिए कुंड में साबुन, तेल या नहाने के अन्य सामानों के इस्तेमाल पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाया गया है।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर का निर्माण विशिष्ट हिमालयी ‘काठ कुनी’ स्थापत्य शैली में किया गया है, जो एक स्वदेशी तकनीक है, जो ज्यादातर हिमालयी इलाकों में प्रचलित है, खास तौर पर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड क्षेत्रों में। इसे सूखी चिनाई खास तौर पर देवदार के सांचों से बिना घोल के इस्तेमाल किया जाता है। लकड़ी की जटिल नक्काशी ‘काठ कुनी’ वास्तुकला की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है।
प्राचीन बावड़ी के अवशेष और वशिष्ठ मंदिर का प्राचीन मंदिर स्पष्ट रूप से मध्ययुगीन मंदिर वास्तुकला की विशेषताओं का चित्रण है। मंदिर के अंदरूनी हिस्से को पारंपरिक भित्तिचित्रों, चित्रों और मूर्तियों से सजाया गया है, जो हिमाचल प्रदेश के मंदिरों की खासियत है।
वशिष्ठ मंदिर, मनाली जाने का सबसे अच्छा समय
मनाली एक ऐसा गंतव्य है जो हर मौसम में सबसे अच्छा रहता है। चूंकि यहां का मौसम सुहावना रहता है और यहां का तापमान पूरे साल 15-20 डिग्री के बीच रहता है, सिवाय ठंडी सर्दियों के महीनों के, जब तापमान शून्य से 2 डिग्री नीचे चला जाता है, इसलिए गर्मियों के मौसम में यहां आना सबसे अच्छा है।
वशिष्ठ मंदिर कैसे पहुंचें
मनाली देश के प्रमुख भागों से परिवहन के सभी साधनों के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मनाली के सबसे नजदीकी प्रमुख शहर और केंद्र दिल्ली, चंडीगढ़, शिमला, लेह, कुल्लू और धर्मशाला हैं और यहां परिवहन के सभी साधनों के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।