बगलामुखी जयंती: तंत्र पीठ का एहसास करवाता, संसार का एकमात्र मंदिर
punjabkesari.in Friday, May 01, 2020 - 02:06 PM (IST)
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Maa baglamukhi jayanti 2020: उत्तर प्रदेश के झांसी शहर के पास मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा जनपद है-दतिया, जो अपनी आध्यात्मिक संचेतना से छोटी काशी के रूप में प्रसिद्ध है। इस शहर के बारे में एक अति प्रसिद्ध कहावत है, ‘झांसी गले की फांसी दतिया गले का हार, ललितपुर कबहुं न छोडि़ए, जब तक मिले उधार’।
जन-जन के गले का हार दतिया आज समूचे विश्व में प्रसिद्ध तांत्रिक सिद्धपीठ-पीताम्बरा पीठ के कारण जाना जाता है। इस पीठ पर यहां की अधिष्ठात्री देवी भगवती पीताम्बरा (बगलामुखी) और पीठ के संस्थापक पूज्यपाद श्री स्वामी जी महाराज की असीम कृपा है। यहां समस्त दैवीय शक्तियां प्रतिपल विद्यमान रहती हैं। इस बात को यहां से दीक्षित साधक प्रत्यक्ष रूप से अनुभव कर लाभान्वित होते हैं जिससे इस कलिकाल में आध्यात्मिक शक्तियों के प्रति उनकी आस्था दृढ़ से दृढ़तर होती चली जाती है।
इस पीठ के संस्थापक श्री स्वामी जी महाराज एक सर्वतंत्र स्वतंत्र, अखंड ब्रह्मचारी संत थे। वह शंकर भगवान के अवतार थे, उन्होंने वर्तमान पीठ जो पहले श्मशान भूमि थी, को महाभारतकालीन गुरु द्रोणाचार्य के अमृतजीवी पुत्र अश्वत्थामा के कहने पर अपनी लीला भूमि बनाया। उन्होंने तपोबल से इसे शुद्ध करके यहां पीताम्बरी माता के पवित्र विग्रह को स्थापित किया। तंत्र के अनुसार शक्ति मतानुयायी दस महाविद्याएं मानते हैं। काली, तारा, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, घूमावती बगला, मातंगी और कमला। देवी बगलामुखी सम्मोहन की मातृशक्ति हैं।
दस महाविद्याओं में सबसे उग्र घूमावती को पीताम्बरा पीठ में स्थान देने का श्रेय पूज्यपाद श्री स्वामी जी को है। श्मशान वासिनी श्री घूमावती की गति अनुलोभ है। यह संसार को अपनी शक्ति द्वारा उनके कर्मों के अनुसार दंडित करती हैं।
अपने तामसी रूप में प्रतिष्ठित श्री घूमावती का शरीर कंकाल मात्र है। इसका रंग काला विधवा वेश और वाहन कौआ है। समूचे विश्व में मां घूमावती का यह एक मात्र मंदिर है। यहां प्रात: व संध्या के समय ही मां के दर्शन होते हैं। शेष समय श्री विग्रह पर काला पर्दा पड़ा रहता है। घूमावती माई ने महाराज जी को दर्शन दिए और कहा, ‘‘हमने तुम्हारा काम कर दिया, अब तुम हमारा काम करो।’’
उन्होंने पीठ में अपना मंदिर बनवाने का आदेश दिया। ऐसा ही एक आदेश शाक्त धर्म के आद्याचार्य भगवान परशुराम ने महाराज जी को दिया था। अत: दोनों शक्तियों को पीताम्बरा पीठ में ससम्मान स्थान दिया गया। पीताम्बरा पीठ में अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं। इस दिव्य स्थल पर आस्था, श्रद्धा और विश्वास एवं भक्ति भावना से आए दर्शनार्थियों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
यहां आने वाले असाध्य रोगी, भूत-प्रेतादि कष्टों तथा घोर पाप से भी मुक्ति मिल जाती है। यह पीठ सच्चे अर्थों में तंत्र पीठ का एहसास कराती है। जगदम्बा पीताम्बरा के दरबार में प्रवेश करते ही आपको लगेगा कि आप किसी सिद्धपीठ में आ गए। सायंकाल भारी संख्या में भक्तगण मां के दर्शनार्थ आते हैं। जगदम्बा का दरबार सिद्ध है। संस्थापक स्वामी की समाधि तथा उसके समीप बने हुए धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष स्थल की रमणीयता अत्यधिक आकर्षक और सम्मोहक है। वास्तव में भगवती जगदम्बा संपूर्ण सृष्टि की नियामक है। तंत्र उनकी उपासना की निधि है उसे पाने के बाद सब कुछ शुभ हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई शक्ति उस स्थल पर जागृत अवस्था में विद्यमान है। निश्चय ही इसी कारण भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती होंगी।