Shibbo Thaan Temple: शिब्बोथान मंदिर में ब्रिटिश शासक भी झुकाते थे शीश, सर्पदंशित व्यक्ति पर नहीं आती कोई आंच

punjabkesari.in Friday, Nov 15, 2024 - 09:13 AM (IST)

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Shibbo Thaan Temple: कांगड़ा जिले के भरमाड़ कस्बे में स्थित सिद्धपीठ शिब्बोथान धाम हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। देवभूमि हिमाचल की इस पावन स्थली भरमाड़ को सिद्ध संप्रदाय गद्दी, सिद्ध बाबा शिब्बोथान और सर्वव्याधि विनाशक के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर के संदर्भ में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं और कई इतिहासकारों ने भी इसकी विशेष मान्यता को लेकर अपने विचार प्रकट किए हैं।

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There are idols of many gods and goddesses in the sanctum sanctorum गर्भ गृह में मौजूद हैं कई देवी-देवताओं की पिंडियां
महंत रामप्रकाश वत्स के अनुसार, धार्मिक स्थल बाबा शिब्बोथान के गर्भ गृह में मछंदर नाथ, गोरखनाथ, क्यालू बाबा, अजियापाल, गूगा जाहरवीर मंडलिक, माता बाछला, नाहर सिंह, काम धेनु बहन गोगड़ी, बाबा शिब्बोधान, बाबा भागसूनाग, शिवलिंग, 10 पिंडियां और बाबा जी के 12वीं शताब्दी के लोहे के 31 संगल मौजूद हैं। इन संगलों की 101 लड़ियां हैं।

जब बाबा शिब्बोथान को जाहरवीर जी ने वरदान दिए और वह अपने स्थान पर वापस जाने लगे तो अपने अंश को सगलों (शंगल) के रूप में रखकर वह अपनी मंडली सहित यहां विराजमान हो गए। ये संगल केवल गूगा नवमी को ही निकाल कर बाबा शिब्बोथान के थड़े पर रखे जाते हैं। इन संगलों को छड़ी भी कहा जाता है। नवमी के दिन पुन: इन्हें अगली गूगा नवमी तक लकड़ी की पेटी में रख दिया जाता है।

The well was constructed by British ruler Warren Hastings ब्रिटिश शासक वारेन हेस्टिंग्स ने करवाया था कुएं का निर्माण
महंत बताते हैं कि ब्रिटिश शासक वारेन हेस्टिंग्स 18वीं शताब्दी में यहां दर्शनार्थ आए थे और उन्होंने मंदिर के पास अपनी चारपाई लगा ली थी, लेकिन इसी दौरान उन्हें एक सांप ने जकड़ लिया। मौके पर मौजूद महंत ने अरदास की और सांप ने उन्हें छोड़ दिया। उन्होंने इस दरबार के चमत्कार से प्रभावित होकर मंदिर के समीप एक कुएं का निर्माण करवाया। यह कुआं आज भी मंदिर के पास मौजूद है।

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Baba Shibbothan is considered to be the incarnation of Lord Shiva भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं बाबा शिब्बोथान
महंत बताते हैं कि बाबा शिब्बोथान कलियुग में भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। मुगलकालीन शैली में निर्मित इस मंदिर में सभी धर्मों के लोग दर्शनार्थ आते हैं। कहा जाता है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व भरमाड़ के निकट सिद्धपुरथाड़ के आलमदेव के घर में शिब्बू नामक बालक ने जन्म लिया। बाबा शिब्बो जन्म से पूर्ण रूप से दिव्यांग थे। उन्होंने जाहरवीर गूगा जी की दो वर्षों तक घने जंगलों में तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर जाहरवीर गुग्गा पीर ने बाबा शिब्बो को तीन वरदान दिए।

प्रथम वरदान में उन्होंने कहा कि यह स्थान आज से शिब्बोथान नाम से प्रसिद्ध होगा। दूसरे वरदान में उन्होंने कहा कि तुम नागों के सिद्ध कहलाओगे और इस स्थान से सर्पदंशित व्यक्ति पूर्ण रूप से ठीक होकर जाएगा। तुम्हारे कुल का कोई भी बच्चा अगर यहां पानी की तीन चूलियां जहर से पीड़ित व्यक्ति को पिला देगा तो पीड़ित व्यक्ति जहर से मुक्ति पाएगा और स्वस्थ हो जाएगा। तीसरे और अंतिम वर में उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर बैठकर तुमने तपस्या की है, उस स्थान की मिट्टी जहरयुक्त स्थान पर लगाने से विदेश में बैठा व्यक्ति भी जहर से मुक्ति पाएगा। मंदिर के महंत बताते हैं कि जिस बेरी और बिल के पेड़ के नीचे बैठकर बाबा शिब्बो ने तपस्या की, वह कांटों से रहित हो गई है। यह बेरी आज भी मंदिर परिसर में हरी-भरी है।

मंदिर के समीप ही सिद्ध बाबा शिब्बोथान का भंगारा स्थल भी मौजूद है, जहां से लोग मिट्टी अर्थात भंगारा अपने घरों में ले जाते हैं और इसे पानी में मिलाकर अपने घरों के चारों ओर छिड़क देते हैं। लोगों की आस्था है कि बाबा जी का भंगारा घरों में छिड़कने से घर में सांप, बिच्छू या अन्य घातक जीव-जंतु प्रवेश नहीं करते। मंदिर परिसर के नजदीक हनुमान और शिव मंदिर भी हैं, जहां पर लोग पूजा-अर्चना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर में अपनी श्रद्धानुसार गेहूं, नमक व फुल्लियों का प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिर में माथा टेकने के बाद लोग मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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