Shastra Gyan: भारतीय संस्कृति में क्या है ‘मौन’ का महत्व

punjabkesari.in Saturday, Nov 20, 2021 - 02:27 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
धार्मिक शास्त्रों में न केवल देवी-देवता से जुड़ी गाथाओं आदि का वर्णन मिलता है, बल्कि इसमें सनातन धर्म से जुड़ी अन्य प्रकार की जानकारी है। जैसे कि त्यौहार, विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, परंपराएं आदि। तो चलिए जानते हैं धार्मिक शास्त्रों में वर्णित जानकारी।

भारतीय संस्कृति में ‘मौन’
मैथुन काल में, मूत्र उत्सर्ग करते समय, श्राद्ध काल में, भोजन के समय, दातुन करते समय व्यक्ति को चुप रहना चाहिए। शौच एवं लघुशंका के समय भी मौन रहना चाहिए। विद्वानों की सभा में, शोक के समय में, बात समझ में न आने पर भी व्यक्ति को मौन रहना चाहिए।

ॐ शब्द का उच्चारण सदैव क्यों होता है- 
श्रीमद् भागवत में लिखा है कि विधि विधान से लेकर वस्तु की न्यूनता आदि की त्रुटि जो भी हो, वह केवल हरिओम कहने से दूर हो जाती है। ॐ  प्रणव है। इसकी तीनों भुजाओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास है। वेद-पुराण की ऋचनाओं, मंत्रों के अशुद्ध उच्चारण पर जो महापातक जैसा भयंकर दोष लगता है वह भी हरिओम कहने से दूर हो जाता है। वेद, पाठ, मंत्र, जप या अन्य शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले हरिओम कहने की सनातन परम्परा है। ओम, जिसे देखें तो केवल अढ़ाई अक्षर हैं, समझें तो पूरे ब्रमांड का सार है। यह हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म जैसे कुछ धर्मों में एक पारम्परिक प्रतीक और पवित्र ध्वनि के रूप में प्रकट होता है।

शरणागत का अर्थ- 
शरणागत का दूसरा अर्थ है समर्पित हो जाना। मनुष्य को सर्वप्रथम प्रभु के, इसके पश्चात गुरु के और फिर समाज, जिसमें सभी आ जाते हैं, के समॢपत होना चाहिए।
मनुष्य को ऐसा लगता है कि अगर चिंताओं से मुक्ति मिल जाए, चिंताएं दूर हो जाएं तो जीवन सुखमय हो। यह मुश्किल अवश्य है लेकिन असंभव नहीं।
बस एक संकल्प करना होगा कि हर स्थिति में हमें चिंतामुक्त रहना है। हमें कोई चिंता न सताए, इसके लिए हर संभव आवश्यक उपाय करना है। सबसे बड़ा उपाय है-कर्म करके परमात्मा की शरण में जाना, ईश्वर को समर्पित हो जाना, प्रभु पर अटूट विश्वास करना। जो परमेश्वर पर पूरी तरह से आश्रित होते हैं वे कभी चिंतानहीं करते।
जो सत्य मार्ग पर चलते हैं वे सतोगुणी होते हैं। वे स्वभाव में संत और सात्विक होते हैं। वे प्रकृति के विरोधी नहीं होते। उनका श्रेष्ठ आचरण उन्हें पूर्ण धार्मिक बना देता है, इसलिए वे पापाचार से बचते हैं। अत: उन्हें व्यर्थ की चिंताएं नहीं सताती क्योंकि वह शरण ग्रहण कर चुके होते हैं। मनुष्य को इसलिए ही शरणागत होना चाहिए।

जानिए ‘ॐ’ की महिमा
ॐ भारतीय धर्म का मूल, सर्वोत्तम, कभी नाश न होने वाला, अवधि जीवन का स्रोत ब्रह्म, परम कल्याणकारी, महामंत्र है। ॐ पूर्ण ब्रह्मांड का आधार, निर्गुण तथा सगुण ब्रह्म, सृष्टि का कत्र्ता (ब्रह्मा), पालनहार (विष्णु), प्रलयकारी (महेश) है।

ॐ भगवान के जितने भी अनंत रोचक नाम हैं उनकी व्याख्यता का स्वरूप है। भगवान के केवल अंश मात्र से अनेक ब्रह्मांड उत्पन्न होते हैं, स्थित हैं, उसी में लीन हो बार-बार पैदा होते हैं।

ॐ परम प्रकाश रूप तमोगुण रहित, सर्वज्ञ, अतिसूक्ष्म, महान से महान, देश, काल और वस्तु की हद से परे, अविनाशी महाप्रभु का निजी नाम है जिसकी तुलना का कोई दूसरा नहीं है। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा, ‘ओम इति एकाक्षरम ब्रह्म’ मतलब एक अक्षर ओम पूर्ण ब्रह्म, अविनाशी है। ‘अदिति इति ओम’ अर्थात ओंकार उस प्रभु का नाम है जो रक्षा करता है।

ॐ हमारे धर्मग्रंथों, वेदों के सभी मंत्रों के आरंभ में लिखा गया है और उच्चारण किया जाता है। ॐ रूपी सूर्य का ध्यान, सिमरन, जप, अज्ञान और अंधकार का नाश करने वाला स्रोत है।

ॐ को विश्व में आत्मास्वरूप से उस ब्रह्म के समस्त नामों से भी कहीं अधिक श्रेष्ठ, पवित्र, पापरहित और ध्यान करने योग्य सर्वोत्तम नाम माना गया है।


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Content Writer

Jyoti

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