Secrets of third eye activation: हर व्यक्ति के पास होती है तीसरी आंख, जानें इसका रहस्य

punjabkesari.in Saturday, Jul 12, 2025 - 02:00 PM (IST)

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Secrets of third eye activation: कहते हैं कि ‘चेहरा हमारे मन का सूचकांक है और आंखें आत्मा का दर्पण हैं’। कितना सत्य कथन है यह? सही मायनों में देखा जाए तो हमारी आंखें हमारे भीतर जो कुछ भी चल रहा है, उसे बखूबी प्रकट कर देती हैं। तभी तो कहते हैं कि चेहरा झूठ बोल सकता है पर आंखें नहीं और अक्सर यह भी देखा गया है कि जब किसी से सच बुलवाना होता है तब उसे यह कहा जाता है कि ‘मेरी आंखों में आंखें डालकर सच-सच बताओ’।

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हम आंखों से ही किसी को स्वीकार भी करते हैं तो किसी को नजरअंदाज भी। बिना आंखों के जैसे सब कुछ बेरंग-सा लगने लगता है। आंखों में वह कशिश है कि हम आंखों के माध्यम से बात भी कर सकते हैं। तभी तो परमात्मा के लिए यह कहा जाता है कि ‘नजरों से निहाल करने वाला’।

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आंखों द्वारा हम प्यार का इजहार, घृणा, सहानुभूति और कई ऐसी भावनाओं को, जोकि हमारे भीतर निरंतर विकसित होती रहती हैं, प्रकट करते हैं। हमारे मन की स्थिति अपनी पसंद और नापसंद, गर्व और पूर्वाग्रहों के अनुसार कार्य करने के लिए हमारी आंखों को निर्देशित करती है। एक दूषित मन वाला व्यक्ति अपनी आंखों का प्रयोग वासना, क्रोध, लोभ, लगाव इत्यादि जैसे दुराचारी उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए करता है, जबकि एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति अपनी आंखों द्वारा प्रेम, दया, प्रशंसा, सहानुभूति, शुभकामनाएं और आशीर्वाद जैसी शुद्ध भावनाओं को प्रदर्शित करेगा।

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याद रखें! हम खुद को ‘सभ्य’ अर्थात सिविलाईज्ड तभी कहला सकते हैं जब हमारी आंखें सिविल अर्थात सभ्य या पवित्र होंगी। यदि हम दुराचारी व आपराधिक दृष्टिकोण वाले बनकर रहेंगे तो हमारे कर्म अधर्मी और पापमय होंगे, जिसके परिणामस्वरूप हम स्वयं तो दुखी होंगे ही, लेकिन हमारे आसपास रहने वाले लोग भी खूब पीड़ित होंगे।

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हमारे शरीर के पांच संवेदी अंगों में से आंखें सबसे अधिक शक्तिशाली हैं क्योंकि ये आत्मा की अनुभूति का द्वार हैं, जिसके माध्यम से आत्मा हर चीज की अनुभूति करती है। अमूमन, आंखों के विषय में जब बात होती है, तब हमारी दो आंखों की ही बात होती है, मगर हम सभी के पास एक ‘तीसरी आंख’ भी है, उसके बारे में कभी कोई चर्चा नहीं होती। भला ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि वह गैर-भौतिक है इसलिए उसे ‘अदृश्य आंख’ भी कहा जाता है, जिसे भौतिक आंखों से देखा नहीं जाता, अपितु उसके लिए ‘दिव्य बुद्धि’ या ‘दिव्य अंतर्दृष्टि’ की आवश्यकता पड़ती है, जो केवल सर्वशक्तिमान परमात्मा से ही प्राप्त की जा सकती है।

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जब हमारी ‘तीसरी आंख’ अर्थात ज्ञान का नेत्र खुलता है, तब प्रकाश हमारे जीवन में आता है और हमारी सोच में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। हमें प्राप्त हुई इस नई दृष्टि के द्वारा हम स्वयं के एवं अन्य के वास्तविक रूप को स्पष्ट रूप से देखने लगते हैं। दया, सत्य और प्रेम हमारे विचारों में समाविष्ट हो जाते हैं और सर्व के प्रति हमारी दृष्टि बिना कोई द्वंद्व के स्वच्छ और आत्मीय बन जाती है।

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भला इस तीसरी आंख को खोलने की विधि क्या है? क्या यह इतना सहज है? जी हां, यह बिल्कुल सहज है और इसके लिए हमें केवल ध्यान का नियमित रूप से अभ्यास करना होगा क्योंकि ध्यान द्वारा हमें स्वयं को अधिक गहराई से समझने की शक्ति प्राप्त होती है, जो हमें अपने आप को आंतरिक रूप से बहाल करने में मदद करती है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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