Sawan 2022: एक लोटा जल लेकर हो जाओ तैयार, आ गया है सावन का त्यौहार

punjabkesari.in Tuesday, Jul 12, 2022 - 11:22 AM (IST)

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Sawan ka mahina 2022: हमारी सनातन संस्कृति में पूरे वर्ष अनेक प्रकार के पर्व, व्रत, उपवास आदि मनाए जाते हैं जो मनुष्य के मानस पटल को धर्म तत्व आत्मसात करने की प्रेरणा देते हैं। श्रावण मास का भी हमारे सनातन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। प्रकृति का कण-कण इस श्रावण मास में सौंदर्य, नव ऊर्जा से युक्त होता है। 

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पौराणिक ग्रंथों में श्रावण मास को सर्वोत्तम मास कहा गया है। मार्कंडेय ऋषि ने इस महीने में दीर्घायु के लिए घोर तप कर शिव जी की कृपा प्राप्त की थी। श्रावण भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, इसी महीने में वह अपने ससुराल गए जहां उनका स्वागत अर्घ्य तथा जलाभिषेक के साथ किया गया था। 

समुद्र मंथन की घटना भी सावन मास में ही हुई थी जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में समाहित कर देवताओं की रक्षा की थी। श्रावण मास में जलाभिषेक एवं रुद्राभिषेक के माध्यम से शिव जी की आराधना उत्तम फल प्रदान करने वाली कही गई है। 

शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। जो जल समस्त प्राणियों में जीवन शक्ति का संचार करता है, वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। श्रावण मास साधना, आहार, आचार, विचार से आत्मिक, मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों को बढ़ाने का समय है  जो अंत:करण पर पड़े  पापमयी एवं क्षुद्र विचारों को शिव जी की भक्ति के माध्यम से परिमार्जित करने की ऊर्जा प्रदान करता है। मनुष्य का मन चंचल है। प्रतिपल सांसारिकता तथा प्रकृति का प्रभाव हमारे मानसिक धरातल पर पड़ता रहता है।  

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कुसंस्कार तथा अशुभ संकल्प हमारी आत्मिक उन्नति में बाधा उत्पन्न करते हैं। इन सब से निवृत्ति के लिए ही ऋषियों ने व्रत, पर्व, उपवास, साधना तथा संयम का पालन करने का संदेश हमारे शास्त्रों में दिया है। सावन मास भी हमारी आत्मिक तथा मानसिक विकृतियों को शिव भक्ति की साधना से दूर करने का समय है। 

वैदिक चिंतन परम्परा में श्रावण मास का संबंध वेद शास्त्रों के अध्ययन, श्रवण, पठन-पाठन तथा उनके चिंतन-मनन से है। श्रवण का अर्थ है सुनना अर्थात प्राचीन काल में गृहस्थी जन ऋषि-मुनियों के मुखारविंद से इस श्रावण मास में अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को सुना करते थे तथा स्वयं भी वेद आदि ग्रंथों का स्वाध्याय किया करते थे। 

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इसी मास में प्राचीन काल में ऋषि-मुनि बड़े-बड़े यज्ञों का अनुष्ठान करते थे। ऋषियों ने श्रावण मास की पूर्णिमा को श्रावणी पर्व मनाने का इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए विधान किया था। इस प्रकार श्रावण मास सनातनी तथा वैदिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। वैदिक ऋषियों ने इस मास को जप, तप, साधना, संयम का उत्तम समय माना है। सावन मास मनुष्य को जीवन में सदैव कल्याण के पथ पर चलने की प्रेरणा देता है।  ईश्वर भक्ति तथा उपासना मनुष्य को ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के मार्ग पर ले जाती है। 

शिव का अर्थ है कल्याण इसलिए श्रावण मास में की गई साधना, संयम से मनुष्य अपने जीवन में सत्याचरण के पालन से आत्मिक कल्याण को प्राप्त करता है। 

यह मास आध्यात्मिक वैदिक यज्ञ का प्रतीक है जो मनुष्य के दैविक, दैहिक तथा भौतिक कष्टों को दूर करता है। यह मास आध्यात्मिक शक्तियों को परिष्कृत करके शिवत्व के अलौकिक पथ पर बढ़ने तथा अपने जीवन में भी शिवत्व को आत्मसात करने की पुण्य बेला है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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