Sarv pitru Amavasya 2020: 17 सितंबर को है आश्विन अमावस्या, ऐसे करें अपने पितरों से क्षमा याचना
punjabkesari.in Wednesday, Sep 16, 2020 - 05:31 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
17 सितंबर, अश्विन मास की अमावस्या तिथि को इस साल के पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा। हालांकि इस बार इसके खत्म होने के बाद इस बार बहुत वर्षों के बाद ऐसा हो रहा है कि कि पितृ पक्ष के समापन के साथ नवरात्रि आरंभ नहीं होंगे। इसका कारण है इस बार चार्तुमास का बढ़ना। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 17 सितंबर को अमावस्या तिथि के ठीक अगल दिन से अधिक मास शुरू हो जाएगा। बता दें शास्त्रों में इसके बारे में वर्णन किया गया है कि प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिस मास लगता है। ऐसे में इस बार की अमावस्या तिथि भी बहुत ही लाभदायक साबित होगी। बता दें पितृ पक्ष में पड़ने वाली इस अमावस्या तिथि को बड़मावस तथा दर्श अमावस्याके नाम से भी जाना जाता है। बता दें पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि का आरंभ 16 सितंबर को ही हो जाएगा मगर पितृ पक्ष का आखिरी श्राद्ध 17 सितंबर को ही संपन्न होगा। तो चलिए जानते हैं इसके उपलक्ष्य में इस दिन किन लोगों का श्राद्ध किया जाता है। साथ ही जानें इस तिथि का महत्व तथा पितरों से क्षमा याचना करने की विधि-
किस का होता श्राद्ध-
मान्यता है कि इस दिन मुख्यतः उन लोगों का श्राद्ध करना अच्छा होता है जिनके परिजनों को अपने पितर-पूर्वजों की मृत्यु की तिथि न पता हो। इसके अलावा इस दिन उन महिलाओं का श्राद्ध करना भी लाभदायक होता है जिनकी मृत्यु अपने पति के रहते होती है, यानि वे सौभाग्यवती होकर अपने प्राण त्यागते हैं। अमूमन शास्त्रों में माता व महिलाओं का श्राद्ध करने के लिए पितृ पक्ष की नवमी तिथि श्रेष्ठ मानी जाती है।
महत्व
उपरोक्त बताई गई जानकारी के अलावा इस दिन वो लोग भी अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर सकते हैं, जोकिसी कारण वश सही तिथि पर अपने पितरों का पिंडदान आदि न कर पाए हों। ऐसे में इस तिथि के दिन श्राद्ध के करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद बरसाते हैं, जिससे जातक के जीवन में खुशियां व सुख-समृद्धि बढ़ती हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन व्यक्ति को आदर पूर्वक अपने पितरों का तर्पण करना चाहिए।
ऐसे करें पितरों से क्षमा याचना
पितरों को स्मरण करते हुए जाने अंजाने में किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा मांगे और परिवार के सभी सदस्यों पर आर्शीवाद बनाए रखने की प्रार्थाना करें। इसके अलावा शाम को एक दीपक जलाकर हाथ में रखकर एक कलश में जल लें तथा घर में चार दीपक जलाकर चौखट पर रख दें। इसके बाद पितरों का आभार व्यक्त करते हुए दीपक को मंदिर में रख दें और जल पीपल के वृक्ष पर चढ़ा दें।