Sardar Vallabhbhai Patel birth anniversary: कुछ ऐसा था सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन का सफर...
punjabkesari.in Tuesday, Oct 31, 2023 - 07:32 AM (IST)
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Sardar Vallabhbhai Patel birth anniversary: 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करके भारत का निर्माण करने वाले लौह पुरुष के नाम से विख्यात भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कार्य की कहीं मिसाल नहीं मिलती। आजाद भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में कार्य करने वाले वह एक ऐसे अधिवक्ता और राजनेता थे, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक स्वतंत्र राष्ट्र के एकीकरण का मार्गदर्शन किया। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।
उनका जन्म गुजरात के खेड़ा जिले में 31 अक्टूबर, 1875 को लेवा पटेल (पाटीदार) जाति में पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाडबा देवी की कोख से चौथी संतान के रूप में हुआ। उनकी शिक्षा मुख्यत: स्वाध्याय से ही हुई। उसके बाद लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई की और फिर स्वदेश लौट कर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में किसानों के खेड़ा संघर्ष में हुआ, जिसमें सरकार को झुकना पड़ा और उस वर्ष के करों में राहत दी गई। 1928 के बारडोली सत्याग्रह में लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार को लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत करना पड़ा। इस आंदोलन के सफल होने पर महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।
देश के बंटवारे के बाद ज्यादातर नेता और प्रांतीय कांग्रेस समितियां सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थीं, परंतु केवल गांधी जी की इच्छा ने नेहरू जी को प्रधानमंत्री बना दिया, जिस कारण नेहरू जी के साथ इनके संबंध तनावपूर्ण ही रहे। इन्हें उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया। गृह मंत्री के रूप में इनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था, जिसे इन्होंने बिना कोई खून बहाए पूरा कर दिखाया। सौराष्ट्र के पास जूनागढ़ एक छोटी रियासत थी और चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहां के नवाब ने 15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत में विलय चाहती थी। नवाब का बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवंबर, 1947 को जूनागढ़ भी भारत में मिल गया।
हैदराबाद के निजाम के विरुद्ध 1948 में किए ऑपरेशन पोलो में 4 दिन की सैनिक कार्रवाई से विलय हो गया। इसी प्रकार भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हें ‘भारत का लौह पुरुष’ के रूप में जाना जाता है। गृहमंत्री के रूप में वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता और कश्मीर की समस्या भी आज देश के गले की हड्डी न बनी होती। 13 नवंबर,1947 को सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण का संकल्प लिया और प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद स्वयं इसके स्थापना समारोह में शामिल हुए।
15 दिसंबर, 1950 को हृदयाघात की वजह से मुंबई में 75 वर्ष की आयु में इनका देहांत हो गया। भारत सरकार ने इनके सम्मान में केवड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ नाम से 182 मीटर ऊंची प्रतिमा के रूप में विशेष यादगार बनाई है। इसकी ऊंचाई स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी है और यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नाम भी सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र रखा है। 1991 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से इन्हें सम्मानित किया गया और 2014 से इनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।