Jagannath Rath Yatra: प्रसाद को तैयार करने का ऐसा तरीका नहीं देखा होगा आपने
punjabkesari.in Friday, Jun 27, 2025 - 03:31 PM (IST)

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Jagannath Rath Yatra: 27 जून यानी आज से जगन्नाथ यात्रा का आरंभ हो चुका है। दूनिया भर के लाखों की तादात में भक्त इस यात्रा मे शामिल होने के लिए आते हैं। ये यात्रा आषाढ़ के माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरु होती है। जगन्नाथ में स्वंय भगवान अपने भाई बहनों के साथ विराजते है इसलिए इसे धरती का वैकुंठ भी कहा जाता ही है। यहां के प्रसाद को प्रसाद न कह कर महाप्रसाद का नाम दिया गया है। कहते हैं यहां के महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए देवी-देवता तक को संघर्ष करना पड़ा था। कहते हैं जो भी व्यक्ति इस महाप्रसाद को ग्रहण करता है उसकी सभी मनोकामनाए पूरी होती है और साथ ही भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। जगन्नाथ धाम के महाप्रसाद को बहुत ही अनोखे तरीके से तैयार किया जाता है। तो आइए जानते हैं जगन्नाथ के महाप्रसाद से जुड़ी कुछ अनोखी बातों के बारे में-
जगन्नाथ धाम की रसोई कोई आम रसोई नहीं है। कहा जाता है कि यहां प्रतिदिन 20 हज़ार लोगों के लिए इस साथ खाना बनता है और त्योहारों में ये संख्या बढ़ कर 50 हज़ार तक चली जाती है। लेकिन माना ये भी जाता है कि चाहे यहां लाखों की तादात में लोग ही क्यों न आ जाए यहां प्रसाद कभी भी कम नहीं पड़ता। बता दें की यहां 500 रसोइए और 300 सहयोगियों की मदद से महाप्रसाद तैयार किया जाता है। मान्यता है कि यहां का सारा भोजन माता लक्ष्मी जी की देखरेख में ही तैयार किया जाता है।
यहां कुल 56 प्रकार को भोग हर रोज़ तैयार किए जाते हैं साथ ही भी बता दें कि ये सारा प्रसाद सिर्फ मिट्टी के बर्तनों में ही तैयार किया जाता है। अन्य और किसी भी धातू का इस्तेमाल नहीं किया जाता। कहा ये भी जाता है कि महाप्रसाद बनाने के लिए रोज नए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बता दें कि यहां बहुत ही अनोखे तरीके से प्रसाद को पकाया जाता है।
मंदिर में भोजन को पकाने के लिए 7 मिट्टी के बर्तन एक दूसरे के ऊपर रख दिए जाते हैं। सबसे विचित्र बात ये है खाना ऊपर से नीचे की ओर पकता है यानि के सबसे ऊपर रखें बरतन में भोजन सबसे पहले पकता है और नीचे रखें भोजन में सबसे आखिर में। ये किसी चमत्कार से कम नहीं क्योंकि इसके पीछे की वजह को कोई नहीं जानता।
भगवान जगन्नाथ के लिए महाप्रसाद को बनाने के लिए मंदिर के पास स्थित दो कुओं के पानी का इस्तेमाल किया जाता है और इसी से ही सारा भोग तैयार किया जाता है। इन कुओं को गंगा और जमुना कहा जाता है। इन दोनों कुओं का नाम दो पवित्र नदियों के नाम पर रखा गया है इसलिए इनके पानी से तैयार महाप्रसाद बहुत शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इसी के साथ बता दें कि जगन्नाथ भगवान को 6 वक्त भोग लगाया जाता है। वहीं महाप्रसाद का सबसे पहले भोग यहां जगन्नाथ जी को नहीं लगता बल्कि यहां विमलादेवी यानि के पार्वती माता का मंदिर भी है। सबसे पहले भोग उन्हें लगाया जाता है फिर जगन्नाथ जी को भोग लगाया जाता है।