अपनी असफलता का कारण हम खुद हैं कोई और नहीं...
punjabkesari.in Thursday, Mar 05, 2020 - 11:35 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जिंदगी में महत्वहीन लगने वाली बातों को ठीक से समझकर न केवल हम अपनी सोच व सामथ्र्य को विकसित कर सकते हैं बल्कि सफल एवं सार्थक जीवन का मार्ग भी बना सकते हैं। हर आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी उससे कुछ उम्मीदें रखती है। कुछ दायित्वों को निभाने की अपेक्षा रखती है। उन्हें हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। कहा जाता है कि कोई और नहीं, हम खुद ही अपने सबसे पहले दुश्मन होते हैं। हमारी समस्याएं, दूसरों की वजह से कम, हमारी अपनी वजहों से ज्यादा खड़ी होती हैं।
अब सवाल यह है कि हम खुद से दुश्मनी को छोड़ कर अपना दोस्त कैसे बन सकते हैं?
लाइफ कोच एंड्रयू केन कहते हैं, ‘‘आप अपने साथ उतने ही उदार और सहयोगी बनें, वैसा ही व्यवहार करें, जैसा अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ करना पसंद करते हैं।’’
विडम्बना है कि हमने जीवन के वास्तविक स्वरूप को भूलकर आज जीवन के अनेक मुखौटे विकसित कर लिए हैं। जीवन जीने की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं गढ़ ली हैं, इसके भिन्न-भिन्न स्वरूप बना लिए हैं जिनसे जीवन का सार ही विलुप्त हो गया है।
सच पूछिए तो वास्तविक जीवन तो स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार ही है। जीवन की सफलता-असफलता का जिम्मेदार स्वयं व्यक्ति और उसके कार्य हैं। इन कार्यों को एवं जीवन के आचरणों को आदर्श रूप में जीना और उनकी नैतिकता-अनैतिकता, उनकी अच्छाई-बुराई आदि को स्वयं के द्वारा विश्लेषण करना, यही जीवन का मूल स्वरूप है और यही सफल जीवन का सार है।
शुद्ध आधार, शुद्ध विचार और शुद्ध व्यवहार से जुड़ी चारित्रिक व्याख्याएं ही जीवन के वास्तविक स्वरूप हैं जिनमें जीवन और दर्शन का सही दृष्टिकोण सिमटा हुआ है। उनमें जागतिक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। हम जीवन की सार्थक संरचना चाहते हैं, पर उसके लिए साधन गलत चुनते हैं, आचरण गलत करते हैं।