Ramayan Katha: राम सेतु निर्माण के दौरान श्री राम ने बताया पुरुषार्थ और भगवान की कृपा में अंतर
punjabkesari.in Thursday, Mar 06, 2025 - 02:33 PM (IST)

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Ramayan Katha: खड़े होकर सब दृश्य देख रहे थे। सब बंदर-भालुओं ने पुल बनाया। पुल बहुत पतला और संकरा बना। इस पतले और संकरे पुल को देख कर दशरथनंदन भगवान श्रीराम को लगा कि इतनी बड़ी सेना इस पतले पुल से पार कैसे होगी ? ऐसा हो पाएगा भी कि नहीं? कहीं ऐसा न हो कि यह पुल टूट ही जाए।
भरत भ्राता श्रीराम जी ने विचार किया कि सबसे पहले मैं इस पुल पर चल कर देखता हूं। जैसे ही वह पुल पर खड़े हुए तो जितने जलचर थे वे सारे ऊपर आ गए और सभी ने पुल के साथ जुड़कर पुल को और प्रशस्त कर दिया।
देखते-देखते सारे जलचर साथ जुड़ते गए। वानर सेना के अधिकारियों ने देखा तो घबरा गए कि सभी जलचर ऊपर आ गए हैं। कहीं ऐसा न हो कि प्रभु श्रीराम इस पुल पर अपने पांव रखें और उन्हें कोई नुक्सान पहुंचे।
प्रभु श्री राम मुस्कुराते हुए पुल पर चलते रहे और पूरी सेना उस पुल से पार हो गई।
जब सारी सेना पार पहुंच गई तो जामवंत जी ने प्रभु श्रीराम से कहा, ‘‘हे प्रभु, जब सब कुछ आपने ही करना था तो हम सबसे ये पत्थर ढुलवाने की क्या आवश्यकता थी ?
हमारे बनाए संकरे एवं कमजोर पुल पर आपके पैर रखने की देर थी कि पुल मजबूत एवं चौड़ा हो गया। यह सब आपकी कृपा ही तो है।’’
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम बोले, ‘‘यह कृपा भी तब होती है, जब पुरुषार्थ हो। पुरुषार्थ आपने किया, अगर आप पुरुषार्थ नहीं करते तो कृपा भी नहीं होनी थी।’’ कृपा दिखाई नहीं देती, पुरुषार्थ दिखाई देता है।
पुरुषार्थ सीमित होता है, कृपा असीम होती है, इसलिए दिखाई नहीं देती। मंदिर में प्रसाद गिर भी जाए तो हम उसे उठाकर पहले माथे से लगाते हैं, फिर उसे खाते हैं लेकिन घर या बाहर कोई खाने वाली वस्तु गिर जाए तो हम उठाते तक नहीं।
क्योंकि वह प्रसाद है। प्रसाद कृपा से मिला है। प्रसाद का अर्थ ही यही है कि ‘प्र’ से प्रभु, ‘सा’ से साक्षात और ‘द’ से दर्शन और कृपा का अर्थ होता है ‘कर’ और ‘पा’।
आप नहीं करते। करता कोई और है और पाते आप हैं। करते गुरु हैं और पाते हम हैं। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि इस संसार की आठ अरब से ज्यादा आबादी है, जिसमें अगर दस-बीस लाख लोग आपको देखकर मुस्करा देते हैं और अपने दुख भूल जाते हैं तो कितना बड़ा जादू है।
आप उन लोगों की परिस्थिति भले ही न बदल पाएं, पर आप उनकी मन:स्थिति बदल देते हैं। यही तो कृपा है।