Shatarupa Pauranik Katha : क्यों ब्रह्मा जी को देखने पड़े थे देवी शतरूपा के 100 रूप, जानिए चौंकाने वाली वजह
punjabkesari.in Saturday, Dec 20, 2025 - 03:48 PM (IST)
Shatarupa Pauranik Katha : हिंदू धर्मग्रंथों में सृष्टि की रचना से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं जो सुनने में जितनी अद्भुत लगती हैं, उनके पीछे छिपे अर्थ उतने ही गहरे होते हैं। ऐसी ही एक कथा है सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा और उनके द्वारा सृजित पहली स्त्री शतरूपा की। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के विस्तार के लिए अपने मन और शरीर से कई मानस पुत्रों को जन्म दिया, तब उन्होंने अपने ही शरीर के एक भाग से एक अत्यंत सुंदर स्त्री की रचना की। तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों ब्रह्मा जी को उस स्त्री को देखने के लिए पांच मुख धारण करने पड़े और शतरूपा का रहस्य क्या था।
शतरूपा: 100 रूपों वाली देवी का जन्म
शतरूपा का शाब्दिक अर्थ होता है। वह जिसके सौ रूप हों। मत्स्य पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब उन्हें बनाया, तो उनकी सुंदरता और तेज इतना अधिक था कि स्वयं ब्रह्मा जी भी मोहित हो गए। शतरूपा को देवी सरस्वती का ही एक रूप माना जाता है, जिन्हें सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए 'प्रज्ञा' और 'प्रकृति' के रूप में प्रकट किया गया था।
चार दिशाओं में चार मुख का रहस्य
कथा के अनुसार, जब शतरूपा ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हुईं, तो ब्रह्मा जी उन्हें एकटक देखते रह गए। ब्रह्मा जी के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए शतरूपा उनके चारों ओर परिक्रमा करने लगीं। जब वह ब्रह्मा जी के दाईं ओर गईं, तो उन्हें देखने की लालसा में ब्रह्मा जी के दाईं ओर एक मुख प्रकट हो गया। जब वह पीछे गईं, तो पीछे की ओर एक मुख निकल आया। इसी तरह जब वह बाईं ओर गईं, तो बाईं दिशा में भी एक मुख प्रकट हो गया। इस प्रकार, चार दिशाओं में ब्रह्मा जी के चार मुख बन गए ताकि वे शतरूपा को हर दिशा से देख सकें।
आकाश की ओर क्यों प्रकट हुआ पांचवां मुख?
शतरूपा ब्रह्मा जी की दृष्टि से बचने के लिए आकाश की ओर जाने लगीं। तभी ब्रह्मा जी ने आकाश की दिशा में उन्हें देखने के लिए पांचवां मुख धारण कर लिया। यह मुख उनके मस्तक के ऊपर स्थित था। ब्रह्मा जी का शतरूपा के प्रति यह आकर्षण सृष्टि के नियम के विरुद्ध माना गया, क्योंकि शतरूपा उनकी अपनी ही रचना (पुत्री के समान) थीं।
शिव द्वारा पांचवें मुख का छेदन
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने देखा कि ब्रह्मा जी मोह के वश में होकर अपनी मर्यादा भूल रहे हैं, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। शिव ने 'भैरव' रूप धारण किया और ब्रह्मा जी के उस पांचवें मुख को काट दिया जो ऊपर की ओर देख रहा था। शिव ने उन्हें दंड स्वरूप यह भी शाप दिया कि उनकी पूजा संसार में नहीं की जाएगी।
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