रामकृष्ण परमहंस से जानिए क्या होती है सच्ची तीर्थयात्रा

punjabkesari.in Tuesday, Sep 27, 2022 - 12:35 PM (IST)

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एक बार रामकृष्ण परमहंस तीर्थयात्रा पर निकले थे। उनके साथ दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के प्रबंधक मथुर बाबू और परिवार के कुछ लोग थे। अपनी यात्रा क्रम में एक बार पूरी टोली देवघर में ठहरी। उन दिनों वह पूरा नगर तथा आसपास के गांव भयंकर अकाल की चपेट में थे, वहां के स्थानीय आदिवासी संथाल लोग कई दिनों से भूखे थे। उनमें से कुछ लोग भोजन के अभाव में परलोक सिधार चुके थे।

दुर्बलता के कारण उन लोगों के शरीर अस्थिपिंजर जैसे दिखते थे। उनके पास तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े भी नहीं थे। रामकृष्ण इस दृश्य को सहन नहीं कर सके। वह भी उन संथालों के बीच बैठकर रोने लगे। उन्होंने मथुर बाबू से उनके कष्टों को दूर करने को कहा। 

मधुर बाबू बोले यहां तो बहुत सारे गरीब लोग हैं, मैं इन सब लोगों की सहायता कैसे कर सकता हूं? फिर हमें काशी, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों का खर्च भी निपटाना होगा।
 

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रामकृष्ण ने कहा-इन अकाल पीड़ितों को इस हाल में छोड़कर मैं तीर्थयात्रा पर नहीं जाना चाहता। ये जगदम्बा की संतान हैं। मैं भी इनके साथ आमरण उपवास करूंगा। तुम्हारी तीर्थयात्रा की मैं बिल्कुल भी परवाह नहीं करता।

हार मानकर मथुर बाबू को उन संथाल आदिवासियों को खिलाने और वस्त्र देने में काफी धन खर्च करना पड़ा और तभी श्री रामकृष्ण आगे की यात्रा जारी रखने को सहमत हुए।


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Content Writer

Jyoti

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