Rabindra nath tagore jayanti: दो देशों का राष्ट्रगान लिखने वाले बहुप्रतिभाशाली ‘रवींद्रनाथ टैगोर’

punjabkesari.in Sunday, May 07, 2023 - 12:36 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Rabindra nath tagore birthday 2023: देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित, एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता एवं एकमात्र कवि, जिनकी दो रचनाओं को दो देशों के राष्ट्रगान, भारत का ‘जन गण मन’ और बंगलादेश का ‘आमार सोनार बांग्ला’ बनने का सौभाग्य मिला, रवीन्द्रनाथ टैगोर उर्फ गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध इस महान विभूति ने अपनी साहित्य कला के माध्यम से भारत की संस्कृति और सभ्यता को पश्चिमी देशों में फैलाया। बंगला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान फूंकने वाले युगदृष्टा वही थे।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें 

PunjabKesari Rabindra nath tagore birthday 2023

बहुप्रतिभाशाली गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी की तेरहवीं संतान रूप में हुआ था। इनके पिता ब्रह्म समाज के एक नेता थे जबकि दादा द्वारकानाथ टैगोर एक अमीर जमींदार और समाज सुधारक थे। छोटी आयु में ही मां के निधन के कारण इनका पालन-पोषण मुख्य रूप से नौकरों और नौकरानियों द्वारा किया गया। आठ वर्ष की उम्र में इन्होंने अपनी पहली कविता लिखी तथा सोलह वर्ष की उम्र में कहानियां और नाटक लिखने आरंभ कर दिए थे। 

इनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। बैरिस्टर बनने की इच्छा से इन्होंने 1878 में इंगलैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया, फिर लंदन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया। वहां शेक्सपियर के कई नाटकों तथा अंग्रेजी, आयरिश तथा स्कॉटिश साहित्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का अध्ययन करने के बाद 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश लौट आए।

PunjabKesari Rabindra nath tagore birthday 2023 

22 वर्ष की आयु में 9 दिसम्बर, 1883 को मृणालिनी देवी से शादी के बाद इनके पांच बच्चे हुए। इन्होंने 1000 कविताएं, 8 उपन्यास, 8 कहानी संग्रह और विभिन्न विषयों पर अनेक लेख लिखे। ये संगीतप्रेमी भी थे और इन्होंने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों के अलावा कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएं, यात्रावृत्त और नाटक भी लिखे। इन्होंने इतिहास, भाषाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखीं। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत ‘वास्तविकता की प्रकृति पर नोट’ भी प्रकाशित हुई। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध लघु कथाएं हैं- ‘काबुलीवाला’, ‘खुदिता पासन’,  ‘हेमंती’ और ‘मुसलमानिर गोलपो।’

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाल की जनता को एकजुट करने के लिए ‘बांग्लार माटी बांग्लार जोल’ गीत लिखा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने जातिवाद के विरुद्ध ‘राखी उत्सव’ आरंभ किया। इनसे प्रेरित होकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे। 

1910 में बंगाली भाषा में सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘गीतांजलि’ प्रकाशित हुआ। इसमें प्रकृति, आध्यात्मिकता और जटिल मानवीय भावनाओं पर आधारित 157 कविताएं शामिल थीं। 51 वर्ष की उम्र में वह अपने बेटे के साथ समुद्री मार्ग से इंगलैंड जा रहे थे। समय काटने के लिए उन्होंने अपने काव्य संग्रह ‘गीतांजलि’ की नोटबुक में स्वयं अंग्रेजी अनुवाद करना आरंभ किया। लंदन में इनके अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेंस्टिन को जब यह पता चला कि ‘गीतांजलि’ का स्वयं इन्होंने अनुवाद किया है तो उन्होंने उसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। ‘गीतांजलि’ पढ़ते ही रोथेंस्टिन उस पर मुग्ध हो गए। 

उन्होंने अपने मित्र डब्ल्यू. बी. यीट्स को इसके बारे में बताया और वही नोटबुक उन्हें भी पढ़ने के लिए दी। यीट्स ने स्वयं ‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी के मूल संस्करण की प्रस्तावना लिखी। जल्द ही ‘गीतांजलि’ के शब्द माधुर्य ने संपूर्ण विश्व को सम्मोहित कर लिया, जिसके लिए 14 नवम्बर, 1913 को इन्हें साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। 

PunjabKesari Rabindra nath tagore birthday 2023

इनके गीतों को ‘रवींद्रसंगीत’ के नाम से जाना जाता है। जॉर्ज पंचम ने 3 जून, 1915 को इन्हें नाइटहुड की उपाधि दी थी, जिसे 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इन्होंने लौटा दिया। 20 दिसम्बर, 1915 को कलकत्ता विश्वविद्यालय ने इन्हें साहित्य में इनके योगदान के लिए ‘डॉक्टर’ की उपाधि से सम्मानित किया। 1940 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि से सम्मानित किया तथा 1954 में भारत सरकार ने इन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च  ‘भारत रत्न’ सम्मान प्रदान किया। गांधी जी ने इन्हें ‘गुरुदेव’ की उपाधि दी थी।

1901 में टैगोर शांतिनिकेतन आश्रम चले गए, जहां उन्होंने उपनिषदों से पारम्परिक ‘गुरु-शिष्य’ शिक्षण विधियों पर आधारित एक प्रायौगिक विद्यालय की स्थापना की। उनका प्रकृति के साथ विशेष लगाव था, इसलिए शान्तिनिकेतन में उन्होंने पेड़-पौधों के बीच पुस्तकालय बनवाया। 1921 में इन्होंने ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ की स्थापना की। इनके जीवन के अंतिम चार वर्ष कष्ट में बीते। लंबे समय तक बीमार रहने के बाद 7 अगस्त, 1941 को कोलकाता में ‘जोरासांकी हवेली’ में इनका निधन हो गया।

PunjabKesari kundli


 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News