कहां है पुरुषोत्तम क्षेत्र, क्या है इसका रहस्य?
punjabkesari.in Friday, Sep 25, 2020 - 04:42 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार साल में आने वाले प्रत्येक मास का अपना अलग महत्व है। यूं तो हिंदू पंचांग के अनुसार अंग्रेजी मास की तरह 12 ही मास होते हैं। परंतु प्रत्येक तीन साल बाद अधिक मास आता है, जिसे पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। इस माह को भगवान विष्णु का प्रिय मास माना जाता है, यही कारण है कि इस दौरान इनकी पूजा का अधिक महत्व माना जाता है। हालांकि इस मास में मांगलिक कार्य करने शुभ नहीं माने जाते। परंतु इस मास में भगवान विष्णु का पूजन, जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। तो वहीं खास तौर पर कहा जाता है कि भगवान कृष्ण, भगवद्गीता, श्रीराम की आराधना, कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। साथ ही साथ इस माह में धार्मिक तीर्थस्थलों पर जाकर स्नान, दान, पुण्य, यज्ञ, साधना आदि करने से भी मोक्ष और अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। यूं तो हम आपको इससे जुड़ी काफी जानकारी दे चुके हैं, जिससे आपको इसी महत्वता के बारे में पता ही चल चुका है। इसी बीच अब हम आपको बताने वाले हैं कि पुरुषोत्तम मास का सबसे प्रमुथ क्षेत्र। जी हां, हमारे देश में एक ऐसा स्थल है जिसे खासतौर पर पुरुषोत्म मास के लिए जाना जाता है। चलिए जानते हैं-
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सबसे पहले सनातन धर्म से संबंध रखने वाले बल्कि साथ ही साथ अन्य लोगों के लिए भी ये जानना अधिक जरूरी है कि पुरुषोत्त्म से क्या मतलब है तो बता दें इसका अर्थात है पुरुषों में सबसे उत्तम। जो हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोई और नहीं बल्कि भगवान श्री राम को माना जाता है। कहा जाता है इस मास में इनकी पूजा तो की जा सकती है बल्कि लोग इनके विभिन्न मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं। बता दें श्री राम कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु के ही एक अवतार है। बताया जाता है देश में ऐसे बहुत से मंदिर हैं, जहां श्री राम चतुर्भुज के दर्शन होते हैं। इन्ही में से एक है पुरी की शोभा जगन्नाथ, जहां श्री हरि विष्ण, श्री कृष्ण, तथा श्री राम के भी दर्शन करने को मिलते हैं।
बहुत कम लोग हैं जो जानते हैं मगर धार्मिक मान्यताओं के मानें तो जब भगवान विष्णु चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने धाम बद्रीनाथ में पहले स्नान करते हैं, फिर पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र धारण करते हैं, पुरी में भोजन करने के बाद दक्षिण में स्थित रामेश्वरम में विश्राम करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी निवास करने लगे और जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ का रूप ले लिया। बता दें पुरी का जगन्नाथ धाम 4 धामों में से एक है। जहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर स्थित है। जहां यह विशालकाय मंदिर हैं, इसे देश का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है।
पुराणों में वर्णन मिलता है कि इसे धरती का वैकुंठ भी कहा गया है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं की थीं।
तो ब्रह्म और स्कंद पुराण की मानें तो यहां भगवान विष्णु 'पुरुषोत्तम नीलमाधव' के रूप में भी अवतरित हुए थे सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा भी की जाती है तथा पुरुषोत्तम हरि को यहां 'भगवान राम' का रूप माना गया है।
मत्स्य पुराण में वर्णन है कि पुरुषोत्तम क्षेत्र की देवी विमला है, जिस कारण यहां इनकी पूजा की जाती है। रामायण के उत्तराखंड के अनुसार भगवान राम ने रावण के भाई विभीषण को अपने इक्ष्वाकु वंश के कुल देवता भगवान जगन्नाथ की आराधना करने को कहा था। आज भी श्री मंदिर में विभीषण वंदापना की यह परंपरा कायम है। मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। बताया जाता है सबसे पहले सबर आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी जिसके बाद आज भी पुरी के मंदिरों में कईसेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है।
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