जानें, बचपन में कौन सा खेल खेलना पसंद करते थे Premanand Maharaj और क्या खाते थे खास
punjabkesari.in Tuesday, Dec 02, 2025 - 02:29 PM (IST)
Premanand Maharaj: वृंदावन के पूज्य संत प्रेमानंद महाराज आज अपने मधुर वचनों और कठोर वैराग्य के कारण पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। भक्त उनके आध्यात्मिक जीवन और दिनचर्या के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन उनके बचपन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें भी हैं, जो उनके एक साधारण बालक से महान संत बनने के सफर को दर्शाती हैं। महाराज जी का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे एक बालक जिसने खेल-कूद और कुछ खास व्यंजनों का स्वाद लिया, वह आगे चलकर पूर्णतः कृष्ण भक्ति में लीन एक महान संत बन गया। तो आइए, उनके बचपन के उस दौर को जानते हैं जब वे आध्यात्म की राह पर नहीं चले थे और बचपन में उनका पसंदीदा खेल क्या था और कौन-सी चीज़ उन्हें खाने में सबसे ज़्यादा प्रिय थी।

बचपन में किस खेल के शौकीन थे?
बचपन में प्रेमानंद महाराज का रुझान शारीरिक शक्ति और पहलवानी की ओर था। उनके बचपन के मित्रों के अनुसार, वह कुश्ती के बहुत शौकीन थे और इस खेल में काफी अच्छे थे। यह शौक उस समय के ग्रामीण परिवेश को दर्शाता है, जहां बच्चे अक्सर खेलों और दंगल में हिस्सा लेते थे, लेकिन साथ ही उनके मन में बचपन से ही साधना और वैराग्य का भाव भी प्रबल था।
कई संत-महात्माओं के विपरीत, जो बचपन से ही पूरी तरह एकांत में रहते थे, प्रेमानंद महाराज के जीवन में भी एक सामान्य बालक की तरह खेल-कूद का यह पहलू मौजूद था, जो आगे चलकर पूरी तरह से भक्ति मार्ग में बदल गया।

खाने में सबसे अच्छी क्या लगती थी?
ब्राह्मण परिवार से होने के कारण और सामान्य रूप से भी, प्रेमानंद महाराज को बचपन में मीठा भोजन अधिक पसंद था। उनके गांव के लोगों के अनुसार, उन्हें लड्डू बहुत प्रिय थे। एक समय तो ऐसा भी आया जब उन्होंने जीवन यापन के लिए रवे के लड्डू बेचने का काम शुरू किया था, हालांकि बताया जाता है कि वे बेचते कम और खाते ज्यादा थे!
संत बनने के बाद
घर छोड़ने और संत जीवन अपनाने के बाद उन्होंने सात्विक और तपस्वी जीवनशैली अपना ली। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक केवल गंगाजल पीकर या भिक्षा में मिला सूखा भोजन खाकर ही रहना पड़ता था। वृंदावन में निवास के दौरान, उनके एक सहयोगी बताते हैं कि उन्हें खाने में बहुत सादा भोजन, जैसे कि हाथ की बनी खुश फुलका और उबली हुई घिया की सब्जी बहुत अच्छी लगती थी। वे कभी-कभी विशेष आग्रह करके भी हाथ की बनी रोटी बनवाते थे, जो उनके प्रिय भोजन में शामिल थी।

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