‘जैन धर्म में प्रकाशोत्सव का है महत्व’

punjabkesari.in Wednesday, Nov 03, 2021 - 12:16 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
फिरोजपुरझिरका: प्रकाशोत्सव का कई धर्मो में अपना विशेष महत्त्व है।लेकिन जैन धर्म मे इसका बड़ा उल्लेख के साथ महत्त्व बताया गया है। जैन समाज नगीना के पूर्व युवाध्यक्ष,व सामाजिक नेता रजत जैन ने बताया कि कार्तिक माह कि अवामावस्य को प्रात:काल जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त हुआ था। 

रजत ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी के प्रथम गणधर गौतम स्वामी को 2548 ,वर्ष पूर्व, ईसा पूर्व 527, में संध्याकालीन  समय में केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।गौतम स्वामी को केवल ज्ञान की प्राप्ति होने की अपार खुशी में जैन धर्म के अनुयायी प्रकाशोत्सव (दीपावली)का पर्व मानते हैं। गौतम स्वामी का जन्म ईसा पूर्व607 में मगध राज्य के गांव गोच्चर में हुआ।इनके पिता का नाम वसुपति,माता का नाम पृथ्वी था।।

इनका जन्म का नाम इंद्र भूति था। रजत ने बताया कि गौतम स्वामी का भगवान महावीर स्वामी से मिलन मध्यम अपापापुरी में हुआ।30 वर्ष तक ये भगवान महावीर स्वामी के गणधर के पद पर आसीन रहे। 80 वर्ष की आयु में इन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। 12 वर्षों तक केवल ज्ञानी रहे। जिनेन्द्र प्रभु से ब्रह्मांड की सुख, शांति, समृद्धि, उन्नति, खुशहाली, संप्रभुता की मंगल की कामना करते हैं। 

जिससे कि जगत का प्रत्येक प्राणिमात्र भयमुक्त व खुशहाल रह सके। देश की एकता व अखंडता के लिए भगवान जिनेन्द्र प्रभु से विशेष प्रार्थना करते हैं।इसी भावना व कामना के साथ प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर प्रत्येक प्राणी को सद्बुद्धि व ज्ञानरुपी प्रकाश प्रदान करे, जिससे वो ज्ञानरुपी प्रकाश के सागर में अपनी आत्मा को डुबोकर अपना आत्म कल्याण कर सके।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Jyoti

Recommended News

Related News