Navratri Special Gujarati Garba: आधुनिक युग में बदल रहा है गरबा, पढ़ें इतिहास

punjabkesari.in Friday, Sep 26, 2025 - 03:08 PM (IST)

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Navratri Special Gujarati Garba 2025: प्राचीन भारत में गर्भस्थ दीप को जीवन और शक्ति का प्रतीक माना जाता था। नवरात्रि में मिट्टी का कलश रखकर उसमें दीप जलाया जाता था और उसी के चारों ओर स्त्रियां गीत गाते हुए नृत्य करती थीं। यही धीरे-धीरे गरबा नृत्य कहलाया। गरबा का सबसे प्राचीन और समृद्ध रूप गुजरात में मिलता है।

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लोक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा की आराधना के लिए गांव की स्त्रियां रात को एकत्रित होकर दीप गर्भ (कलश में जलते दीपक) के चारों ओर भक्ति गीत गाती और नृत्य करती थीं। समय के साथ यह परंपरा पूरे गुजरात और फिर भारत के अन्य हिस्सों तक फैल गई।

गरबा का वृत्ताकार नृत्य यह संदेश देता है कि ईश्वर केंद्र है और हम सब उसके चारों ओर घूमते हैं। यह नृत्य हमें याद दिलाता है कि हर प्राणी उस परम शक्ति से जुड़ा है और जीवन का आरंभ व अंत उसी के इर्द-गिर्द होता है। इसलिए शारदीय नवरात्रि में गरबा खेला जाता है। भक्ति, शक्ति की साधना, सामाजिक उत्सव और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने के लिए गरबा सरल माध्यम है। गरबा सिर्फ नृत्य ही नहीं है, बल्कि यह शक्ति उपासना से जुड़ा एक पवित्र और सांस्कृतिक उत्सव भी है। इसे विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि में खेला जाता है। आइए विस्तार से समझते हैं-

Navratri Special Gujarati Garba
गरबा क्या है ?
गरबा शब्द संस्कृत के गर्भ या दीप गर्भ से आया है, जिसका अर्थ है गर्भस्थ जीवन या दीपक का गर्भ। गरबा नृत्य के दौरान बीच में एक मिट्टी का कलश (गरबी) रखा जाता है, जिसमें दीपक जलता है। यह कलश मां शक्ति और सृष्टि के स्रोत का प्रतीक है। दीपक का निरंतर जलना यह दर्शाता है कि जीवन और ब्रह्मांड का मूल आधार दिव्य ऊर्जा ही है।

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शारदीय नवरात्रि में गरबा क्यों खेला जाता है ?
देवी शक्ति की आराधना– शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। गरबा नृत्य को मां दुर्गा की स्तुति और आनंद का माध्यम माना जाता है।

ऊर्जा का प्रतीक– गरबा में गोल-गोल घूम कर नृत्य किया जाता है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है।

भक्ति और सामूहिकता– गरबा केवल पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। सामूहिक नृत्य के जरिए भक्त एकसाथ मां शक्ति की महिमा गाते और नृत्य करते हैं।

रात्रि जागरण का साधन– नवरात्रि में रात्रि के समय देवी जागरण और उपासना होती है। गरबा नृत्य उसी रात्री उपासना का हिस्सा है, जिससे भक्त जाग्रत और उत्साहित रहते हैं।

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शक्ति साधना से जुड़ाव
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। प्राचीन काल में देवी मंदिरों और शक्ति पीठों में गरबा जैसी नृत्य-प्रथा देवी की शक्ति और आनंद की अभिव्यक्ति मानी जाती थी। यह नृत्य ब्रह्मांडीय चक्र (जीवन–मृत्यु–पुनर्जन्म) का प्रतीक बन गया।
मध्यकाल में जब भक्त कवियों और संतों (जैसे नरसिंह मेहता) ने भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाया, तब गरबा केवल नृत्य न रहकर भक्ति-गीत और लोकधर्म का हिस्सा बन गया। उस समय गरबा में गाए जाने वाले गीतों में देवी स्तुति, लोक कथाएं और धार्मिक शिक्षाएं शामिल होने लगीं।

आधुनिक युग में गरबा
पहले गरबा केवल मिट्टी के दीपक और स्त्रियों के सामूहिक नृत्य तक सीमित था। आज गरबा में ढोल, संगीत, लाइटिंग और मंचीय प्रदर्शन जुड़ गए हैं लेकिन इसके मूल में अब भी वही परंपरा है। शक्ति की आराधना और भक्ति का आनंद।

शारदीय नवरात्रि से विशेष संबंध
शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी की गाथा से जुड़ी है।
यह समय शक्ति साधना, जागरण और उत्सव का होता है।
रात को देवी की आराधना करते हुए गरबा नृत्य को देवी के आनंदोत्सव का हिस्सा माना गया।
यही कारण है कि गरबा विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि में ही खेला जाता है।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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