Matsya Dwadashi Katha: क्यों भगवान विष्णु ने लिया मत्स्य रूप ? जानिए वेदों के रक्षा की कहानी
punjabkesari.in Tuesday, Dec 02, 2025 - 07:18 AM (IST)
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Matsya Dwadashi Katha: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाने वाली मत्स्य द्वादशी भगवान विष्णु के प्रथम अवतार की स्मृति का दिन है। मान्यता है कि इस तिथि पर मत्स्य रूप में विष्णुजी की पूजा करने से साधक को शांति, समृद्धि और संकटों से रक्षा का आशीर्वाद मिलता है। इसी अवसर से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा प्रचलित है।
सत्यव्रत और दिव्य मछली की अद्भुत कथा
एक समय की बात है। सत्यव्रत नाम का एक धर्मपरायण और शक्तिशाली राजा नदी में स्नान करने गया। सूर्य देव को अर्घ्य देते समय अचानक उसकी हथेलियों में एक नन्ही-सी मछली आ गिरी। राजा उसे वापस नदी में छोड़ने लगा, तभी मछली मानो मनुष्य की तरह बोली राजन, नदी में बड़े जीव मुझे निगल सकते हैं, कृपया मेरी रक्षा करिए।
दया से भर उठे राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया और अपने महल ले आए।
एक छोटी मछली का रहस्य
अगले दिन जब राजा ने देखा तो चकित रह गए—मछली का आकार कमंडल से बड़ा हो चुका था। मछली बोली—“राजन, मैं यहां नहीं रह सकती। मुझे बड़ा स्थान दें।”
राजा ने उसे बड़े मटके में रखा, परंतु वह भी दो ही दिनों में छोटा पड़ गया। फिर मछली को तालाब में डाला गया, लेकिन बढ़ते आकार के कारण तालाब भी छोटा हो गया। अंततः राजा ने उसे समुद्र में छोड़ दिया, लेकिन कुछ ही समय में समुद्र भी उसके लिए तंग पड़ने लगा। अब राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है।
मछली नहीं, स्वयं भगवान विष्णु थे
राजा ने नम्रता से पूछा- हे दिव्य रूपधारी! आप कौन हैं ?"
तभी विशाल मछली के रूप से विष्णु भगवान प्रकट हुए और बोले-
मैं हयग्रीव नामक दैत्य को परास्त करने आया हूं। उसने वेदों की चोरी कर ली है, और ज्ञान के अभाव से संसार अंधकार में डूब गया है। विष्णु भगवान ने यह भी बताया कि सात दिनों के बाद पृथ्वी पर प्रलय आएगी। उन्होंने राजा सत्यव्रत को आदेश दिया- एक नाव में सप्त ऋषियों, औषधियां, बीज और अनाज लेकर बैठ जाना। समय आने पर मैं स्वयं मार्गदर्शन करने आऊंगा।
प्रलय, नाव और वेदों की रक्षा
ठीक सातवें दिन भयंकर जल-प्रलय आया। राजा ने विष्णुजी के आदेश अनुसार नाव तैयार की और सप्त ऋषियों सहित आवश्यक चीजें उसमें रख लीं।
प्रलय के बीच उन्हें फिर मत्स्य रूप में भगवान के दर्शन हुए। भगवान विष्णु ने हयग्रीव राक्षस का वध किया, उससे वेदों को वापस प्राप्त किया और वेदों को पुनः ब्रह्मा जी को सौंप दिया ताकि संसार में ज्ञान का प्रकाश फिर से फैल सके।
