कहां है कर्णफूल, कैसे शिव-पार्वती से जुड़ा है इसका रहस्य?
punjabkesari.in Wednesday, Sep 08, 2021 - 02:28 PM (IST)
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सनातन धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग जानते हैं कि माता सती ने अपने पिता के यज्ञ में कूदकर अपने आप को भस्म कर लिया था। जिस पर क्रोधित होकर भगवान शंकर उनके जलते हुए शरीर को लेकर ब्राह्मांड में विचरण करने लगे थे। धार्मिक कथाओं के अनुसार इस दौरान एक-एक करके माता सती के शरीर के अंग विभिन्न जगहों पर गिरे। जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हुए। तो वहीं इसके अलावा एक ऐसा भी धार्मिक स्थल जहां एक बार माता पार्वती का एक आभूषण गिरा था। असल में आज हम आपको एक ऐसी ही जगह के बारेे में बताने जा रहे हैं जहां माता पार्वती के कर्णफूल यानि कान की बालियां गिरीं थीं। जिस कारण इस स्थल का नाम मणिकर्ण पड़ा। बताया जाता है कर्णफूल शेषनाग के पास था, जिसके बारे में मान्यता है यही कर्णफूल शेषनाग के पास था जो शिव जी प्राप्त हो गया जिससे महादेव क्रोधित हो गए थे। परंतु क्यों? इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा-
सबसे पहले बता दें कि कर्णफूल मंदिर भारत के हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और देवी पार्वती नदियों के मध्य बसा है। जो समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित है। कहा जाता है हिंदू सिक्ख दोनों ही तरह के लोग यहां पहुंते हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर माता पार्वती का कर्णफूल यानी कि कान की बाली गिरी थी इसलिए यह जगह कर्णफूल कहलाई।
इस स्थान से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती और शिव जी विहार पर निकले थे। उसी विहार के दौरान माता पार्वती का कर्णफूल अर्थात कान की बाली खो गई। तब स्वयं भोलेनाथ ने मां पार्वती के कर्णफूल ढूंढने का काम किया। लोक मत है कि कर्णफूल पाताल लोक में जाकर शेषनाग के पास पहुंच गई। तब शिव शंकर अत्यंत क्रोधित हुए। शेषनाग ने कर्णफूल वापस कर दिया था। इसके अलावा इस समय से जुड़ी हुई एक अन्य मान्यता है कि शेषनाग जब कर्णफूल नहीं दे रहे थे तब उन्होंने फुंकार भरी। जिससे इस स्थान पर गर्म पानी के स्रोतों का निर्माण हुआ।
इसे लेकर एक मान्यता ये भी प्रचलित हैै कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी, यहां रघुनाथ नामक एक मंदिर भी स्थापित है। कहते हैं कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। इसके अलावा इस स्थान पर स्थापित शिवजी के मंदिर में कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ आते रहते हैं।