Mallikarjun jyotirlinga: शास्त्रों से जानें, भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कथाएं
punjabkesari.in Saturday, Jul 20, 2024 - 07:34 AM (IST)
Mallikarjun jyotirlinga temple: देश के अलग-अलग भागों में स्थित भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में श्री मल्लिकार्जुन एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग है। इन्हें द्वादश ज्योर्तिलिंग के नाम से जाना जाता है। इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म- जन्मांतर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं।
आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर दक्षिण का कैलाश कहे जाने वाले श्री शैल पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग स्थित है। यह आंध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग में कुर्नूल जिले के नल्लामल्ला जंगलों के मध्य श्री शैलम पहाड़ी पर स्थित है। यहां शिव की आराधना मल्लिकार्जुन नाम से की जाती है। मंदिर का गर्भ गृह बहुत छोटा है और एक समय में अधिक लोग नहीं जा सकते। इस कारण यहां दर्शन के लिए लम्बी प्रतीक्षा करनी होती है। स्कंद पुराण में श्री शैल कांडनाम का अध्याय है। इसमें उपरोक्त मंदिर का वर्णन है। इससे इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है। तमिल संतों ने भी प्राचीन काल से ही इसकी स्तुति गाई है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी।
महाभारत, शिवपुराण और पद्मपुराण आदि धर्मग्रंथों में इसकी महिमा और महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है। पुराणों में भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग की कथाओं का वर्णन इस प्रकार है-
एक समय की बात है भगवान शंकर जी के दोनों पुत्रों श्री गणेश और श्री कार्तिकेय स्वामी विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे। प्रत्येक का आग्रह था कि पहले मेरा विवाह किया जाए। उन्हें लड़ते-झगड़ते देखकर भगवान शंकर और मां भवानी ने कहा, ‘‘तुम लोगों में से जो पहले पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर यहां वापस लौट आएगा उसी का विवाह पहले किया जाएगा।’’
माता-पिता की यह बात सुनकर श्री कार्तिकेय स्वामी तो अपने वाहन मयूर पर विराजित हो तुरंत पृथ्वी- प्रदक्षिणा के लिए दौड़ पड़े लेकिन गणेश जी के लिए तो यह कार्य बड़ा ही कठिन था। एक तो उनकी काया स्थूल थी, दूसरे उनका वाहन भी मूषक (चूहा) था। भला वह दौड़ में स्वामी कार्तिकेय की बराबरी किस प्रकार कर पाते?
लेकिन उनकी काया जितनी स्थूल थी बुद्धि उसी के अनुपात में सूक्ष्म और तीक्ष्ण थी। उन्होंने अविलंब पृथ्वी की परिक्रमा का एक सुगम उपाय खोज निकाला। सामने बैठे माता-पिता का पूजन करने के पश्चात उनकी सात प्रदक्षिणाएं करके उन्होंने पृथ्वी- प्रदक्षिणा का कार्य पूरा कर लिया। उनका यह कार्य शास्त्रानुमोदित था :
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्राङ्क्षन्त च करोति य:। तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम।
पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर स्वामी कार्तिकेय जब तक लौटे तब तक गणेश जी का दो कन्याओं के साथ विवाह हो चुका था और उन्हें ‘क्षेम’ तथा ‘लाभ’ नामक दो पुत्र भी प्राप्त हो चुके थे। यह सब देख कर स्वामी कार्तिकेय अत्यंत रुष्ट होकर क्रोञ्च पर्वत पर चले गए। माता पार्वती वहां उन्हें मनाने पहुंचींं। पीछे शंकर भगवान वहां पहुंचकर ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और तब से मल्लिकार्जुन-ज्योर्तिलिंग के नाम से प्रख्यात हुए। उनकी अर्चना सर्वप्रथम मल्लिका-पुष्पों से की गई थी। मल्लिकार्जुन नाम पड़ने का यही कारण है।
एक दूसरी कथा यह भी कही जाती है कि इस शैल पर्वत के निकट किसी समय राजा चंद्र गुप्त की राजधानी थी। किसी विपत्ति विशेष के निवारणार्थ उनकी एक कन्या महल से निकल कर इस पर्वत राज के आश्रम में आकर यहां के गोपों के साथ रहने लगी। उस कन्या के पास एक बड़ी ही शुभ लक्षण सुंदर श्यामा गौ थी। उस गौ का दूध रात में कोई चोरी से दुह ले जाता था।
एक दिन संयोगवश उस राज कन्या ने चोर को दूध दुहते देख लिया और क्रुद्ध होकर उस चोर की ओर दौड़ी किन्तु गौ के पास पहुंच कर उसने देखा कि वहां शिवलिंग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। राजकुमारी ने कुछ समय पश्चात उस शिवलिंग पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया। यही शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध है। शिवरात्रि के पर्व पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मल्लिकार्जुन-शिवलिंग का दर्शन पूजन एवं अर्चन करने वाले भक्तों की सभी सात्विक मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। उनकी भगवान शिव के चरणों में स्थिर प्रीति हो जाती है। दैहिक, दैविक, भौतिक सभी प्रकार की बाधाओं से वे मुक्त हो जाते हैं।