किसी कारणवश आप भी नहीं रख पाए इस बार महालक्ष्मी व्रत तो...
punjabkesari.in Wednesday, Aug 26, 2020 - 02:23 PM (IST)
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जैसे कि सब जानते हैं कि 25 अगस्त से इस साल के महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो चुके हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सनातन धर्म में मनाया जाने वाला ये व्रत महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी रखते हैं। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से घर-परिवार की सुख समृद्धि में बढ़ती हैं। परंतु कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो किसी न किसी कारशवश ये व्रत नहीं रख पाते। ऐसे में कह जाता है कि अगर केवल महालक्ष्मी व्रत की केवल कथा सुन ली जाए तो भी महालक्ष्मी मां की कृपा होती है। मगर अब आप में से बहुत से ऐसे भी लोग होंगे जिन्हें इनसे जुड़ी कथा के बारे में भी पता नहीं होगा। तो चलिए हम आपको बताते हैं मां लक्ष्मी से जुड़ी इस कथा के बारे में जिससे पढ़ने-सुनने मात्र से आप पर देवी लक्ष्मी आप पर निश्चित ही प्रसन्न होंगी।
व्रत कथा-
एक बार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था. वह ब्राह्मण नियमित रुप से श्री विष्णु का पूजन किया करता था. उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्री विष्णु ने दर्शन दिये और ब्राह्मण से अपनी मनोकामना मांगने के लिए कहा। ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की. ये सुनकर श्री विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बता दिया। जिसमें श्री हरि ने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है जो यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना और वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है।
देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। यह कहकर श्री विष्णु चले गए। अगले दिन वह सुबह चार बजे ही मंदिर के सामने बैठ गया. लक्ष्मी जी उपले थापने के लिए आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया।ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है।
लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा, लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूरा किया। उस दिन से यह व्रत इस दिन विधि-विधान से करने व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।
तो वहीं दूसरी कथा के अनुसार। एक बार महालक्ष्मी का त्यौहार आया. हस्तिनापुर में गांधारी ने नगर की सभी स्त्रियों को पूजा का निमंत्रण दिया परन्तु कुन्ती से नहीं कहा। गांधारी के 100 पुत्रों ने बहुत सी मिट्टी लाकर एक हाथी बनाया और उसे खूब सजाकर महल में बीचों बीच स्थापित किया।
सभी स्त्रियां पूजा के थाल ले लेकर गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर कुन्ती बड़ी उदास हो गई। जब पांडवों ने कारण पूछा तो उन्होंने बता दिया कि मैं किसकी पूजा करूं?
अर्जुन ने कहा मां! तुम पूजा की तैयारी करो मैं तुम्हारे लिए जीवित हाथी लाता हूं। अर्जुन इन्द्र के यहां गए और अपनी माता के पूजन के लिए वह ऐरावत को ले आए.
माता ने सप्रेम पूजन किया। सभी ने सुना कि कुन्ती के यहां तो स्वयं इंद्र का ऐरावत हाथी आया है तो सभी कुन्ती के महल की ओर दौड़ पड़े और सभी ने वहां जाकर पूजन किया। इस व्रत पर सोलह बोल की कहानी सोलह बार कही जाती है और चावल या गेहूं अर्पित किए जाते हैं। आश्विन कृष्णा अष्टमी को सोलह पकवान बनाएं जाते हैं ‘सोलह बोल’ की कथा है:
'अमोती दमो तीरानी, पोला पर ऊचों सो परपाटन गांव जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी, कहे कहानी. सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी।