Jaya Kishori Wisdom : क्या पत्नी के व्रत और पूजा से चमकती है पति की किस्मत? जया किशोरी ने बताई अर्धांगिनी के पुण्यों की असली हकीकत

punjabkesari.in Thursday, Dec 25, 2025 - 04:48 PM (IST)

Jaya Kishori Wisdom : हिंदू धर्म में पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है, जिसका अर्थ है शरीर का आधा हिस्सा। अक्सर घरों में देखा जाता है कि महिलाएं पूजा-पाठ, व्रत और धार्मिक अनुष्ठानों में अधिक सक्रिय रहती हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल हमेशा उठता है। क्या पत्नी की भक्ति का पुण्य फल पति के खाते में जाता है? मशहूर आध्यात्मिक वक्ता जया किशोरी जी ने अपने प्रवचनों में इस विषय पर बहुत ही तार्किक और सुंदर बात कही है। तो आइए जानते हैं उनकी बताई हुई सच्चाई के बारे में-

Jaya Kishori Wisdom

कर्म का व्यक्तिगत सिद्धांत
जया किशोरी जी स्पष्ट करती हैं कि अध्यात्म का सबसे बड़ा नियम 'स्वयं का कर्म' है। जैसे भूख लगने पर खाना खुद को ही खाना पड़ता है, वैसे ही आत्मा की उन्नति के लिए भक्ति भी स्वयं करनी पड़ती है। मुख्य रूप से, जो पूजा करता है, मानसिक शांति और आध्यात्मिक गहराई उसी को प्राप्त होती है।

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अर्धांगिनी होने का विशेष लाभ
भले ही पुण्य व्यक्तिगत हो, लेकिन जया किशोरी जी बताती हैं कि विवाह के बाद पति-पत्नी का भाग्य एक-दूसरे से जुड़ जाता है। शास्त्र कहते हैं कि यदि पत्नी सात्विक है और धर्म के मार्ग पर चलती है, तो उसके पुण्य कर्मों का एक निश्चित हिस्सा पति को स्वतः ही प्राप्त होने लगता है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में किसी भी बड़े धार्मिक अनुष्ठान में पति के साथ पत्नी का बैठना अनिवार्य माना गया है।

दुआ और प्रार्थना की शक्ति
पुण्य साझा हो या न हो, लेकिन दुआ हमेशा काम करती है। जया किशोरी जी के अनुसार, जब एक पत्नी सच्चे मन से भगवान से अपने पति की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और तरक्की के लिए प्रार्थना करती है, तो वह प्रार्थना एक 'रक्षा कवच' बन जाती है। पति के कार्यों में आने वाली रुकावटें पत्नी के संकल्प से दूर होने लगती हैं।

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घर के वातावरण का प्रभाव
जया किशोरी जी का मानना है कि जिस घर की महिला भक्तिभाव वाली होती है, वहां की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। जब घर में क्लेश नहीं होता और शांति रहती है, तो पति का मन काम में बेहतर लगता है। परोक्ष रूप से  पत्नी की पूजा पति की सफलता का आधार बनती है।

एक जरूरी चेतावनी
जया किशोरी जी एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी जोड़ती हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि पति अधर्म करे और पत्नी की पूजा उसे बचा लेगी। यदि पति जानबूझकर गलत काम करता है, अपशब्द बोलता है या दूसरों को सताता है, तो पत्नी के पुण्यों का लाभ उसे कभी नहीं मिलता। ईश्वर केवल तब फल साझा करते हैं जब पति-पत्नी के बीच प्रेम और सम्मान का भाव हो।

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Content Editor

Sarita Thapa

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