Lala Jagat Naryan Story: इस प्रकार शुरू हुआ लाला जगत नारायण का जेल जीवन...

punjabkesari.in Sunday, Jun 02, 2024 - 08:06 AM (IST)

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जेल में जगत नारायण को अपने प्रिय नेता लाला लाजपत राय को बड़ी निकटता से देखने, जानने व समझने का अवसर प्राप्त हुआ। वह अपने एक संस्मरणात्मक लेख ‘लाला जी का वरदहस्त’ में लिखते हैं :

‘‘मैंने लाला लाजपत राय जी को इससे पहले दूर से देखा था और उनके भाषण सुने थे... मेरा बड़ा सौभाग्य था कि उनसे मेरी निकट से भेंट हो रही थी... मेरे कॉलेज के विद्यार्थी जीवन के चार-पांच बड़े निकट के साथी भी जेल में ही थे। उन्होंने जब मेरे हाथों में हथकड़ियां देखीं तो वे सब बड़े हैरान हुए और मुझे लाला जी के पास उस जगह ले गए जहां जेल में उनसे भेंट होती थी। उन्होंने लाला जी को कहा कि जगत नारायण हमारा करीबी साथी है अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है और योग्य सेवा करने वाला नवयुवक है। हम इसको आपके हवाले करते हैं, ताकि जेल में यह अच्छी सोसायटी में रहे और यदि आपके चरणों में रहे तो इसको आपसे प्रेरणा मिलती रहेगी।’’

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आगे चल कर उन्होंने और भी लिखा :
‘‘मेरे मामा लालचंद जी को, जो कि आर्य समाज लाहौर के एक बड़े कार्यकर्ता थे, जब मेरी गिरफ्तारी का पता चला तो वह तुरंत जेल पहुंच गए। लाला लाजपत राय जी का उनके साथ गहरा संबंध था... मेरे मामा जी ने कहा कि बाबू जी (घर में लाला लाजपत राय जी को इसी नाम से पुकारा जाता था) यह हमारा इकलौता भांजा है। इसने बगैर किसी को सूचना दिए स्वयं को गांधी जी के आन्दोलन में झोंक दिया है। यह बच्चा है। अब जेल में यह आपके सुपुर्द है। आप की शक्ति और आशीर्वाद इसे जेल में मिल जाए तो यह सोना बन कर जेल से बाहर निकलेगा।’’

इस प्रकार शुरू हुआ लाला जगत नारायण का जेल जीवन। बहुत से कड़वे और मधुर अनुभव उन्हें हुए इस दौरान। वह जेल की कोठरी, जो उनके लिए विशेष रूप से खाली करवाई गई थी, में दाखिल हुए तो ‘वन्देमातरम्’ के नारों से उनका स्वागत किया गया।

अन्य कैदियों को समझ नहीं आ रहा था कि इस नौजवान में आखिर ऐसा क्या है जो लाला लाजपत राय जी का विशेष कृपा पात्र बन गया है ? यह विशेषता थी जगत नारायण का सेवा-भाव। उनके लिए सेवा एक धर्म थी तथा इस सेवा-धर्म का पालन वह अपने सम्पूर्ण जीवन में करते रहे क्योंकि उनका भगवान श्रीकृष्ण के इस कथन में गहरा विश्वास था :

‘‘सेवा धर्म: परम गहनो योगिनामपि दुर्लभम्।’’

अर्थात् सेवा धर्म बहुत कठिन तथा योगियों के लिए भी दुर्लभ है।

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वह जेल में रहते हुए सबके काम आते। अशिक्षित कैदियों को उनके पत्र पढ़कर सुना देते थे या पत्रों के उत्तर लिख देते। गैर-राजनीतिक कैदियों की अपीलें भी लिख दिया करते।

जगत नारायण के माता-पिता व अन्य संबंधी बहुत चिन्तित रहते थे। यह सोचकर, कि यह नौजवान भला कैसे जेल का कठिनाइयों भरा जीवन झेल पाएगा ? वे शायद ही सोच पाए हों कि जेल में लाला लाजपत राय व उन सरीखे कई अन्य नेताओं व बहुत से लोकप्रिय समाचार पत्रों के सम्पादकों व लेखकों के साथ जगत नारायण कैसे स्वतंत्रता के स्वप्न को साकार करने में दिन-रात प्रयासरत हैं।

जेल में उन्हें लाला लाजपत राय के अतिरिक्त बाबा खड़क सिंह, डा. गोपी चंद भार्गव, डा. किचलू, मोहम्मद जफर अली खां, मौलवी सईद हबीब व आगा मोहम्मद सफदर जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों के साथ रहने का भी अवसर मिला। जेल में सदैव ही राजनीतिक बातें नहीं होती थीं। कभी-कभी हंसी-मजाक के क्षण भी आते थे। लाला दुनी चंद जब जेल में पुस्तक पढ़ रहे होते तो अवसर मिलते ही जगत नारायण पुस्तक के पृष्ठों में फेरबदल कर देते तथा लाला दुनी चंद को फिर से वे पृष्ठ पढऩे पड़ते, पर लाला दुनी चंद की देशभक्ति, उनकी सादगी व सरलता के सदैव प्रशंसक रहे जगत नारायण।

लगभग अढ़ाई वर्ष जेल में रहने के बाद 1924 में जगत नारायण जेल से रिहा हुए। वह जब रिहा होकर घर पहुंचे तो युद्ध क्षेत्र से विजयी लौटने वाले योद्धा की तरह उनका स्वागत व अभिनन्दन किया गया। जगत नारायण स्मरण करते हैं कि लाला लाजपत राय को किस प्रकार देश तथा देशवासियों से अत्यधिक लगाव था और यह प्रभाव वह उन लोगों में भी भर देते थे जो उनके सम्पर्क में आते थे। अन्याय के विरुद्ध जोरदार ढंग से लड़ना उनका स्वभाव था। अपने साथियों से भी वह पूरी तरह जुड़े रहते। निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी तथा साथ ही गजब की शक्ति थी उनकी कलम में।

जगत नारायण ने एक और घटना का भी उल्लेख किया है। लाला जी को एक बार कैथरीन मेयो द्वारा लिखित ‘मदर इंडिया’ पुस्तक पढ़ने को मिली, जिसमें उसने भारत और भारतीयों के बारे में कई आपत्तिजनक बातें लिखी थीं। लाला जी ने तुरंत ब्रिटिश सरकार को एक ज्ञापन भेजकर इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। वह भारत की आन, बान और शान के लिए संघर्ष करने में कभी पीछे नहीं हटे। वह प्राय: जगत नारायण से इस प्रकार के विषयों पर बातचीत कर लिया करते थे जो उनका विश्वासपात्र था।

जब उन्होंने देखा कि इस आपत्तिजनक पुस्तक संबंधी उनकी मांग पर कुछ नहीं किया गया तो उन्होंने इस पुस्तक का उत्तर स्वयं देने की ठान ली। 

जेल में रहते हुए जगत नारायण ने ‘यंग इंडिया’ का उर्दू अनुवाद करने में भी लाला जी की सहायता की, परन्तु यह कार्य अधिक समय तक नहीं चल पाया क्योंकि कुछ समय बाद दोनों को एक साथ रहने की अनुमति नहीं मिली। जगत नारायण के युवा मन पर ये घटनाएं प्रभाव छोड़ती चली गईं तथा इन प्रभावों ने ही लाला जगत नारायण के महान व्यक्तित्व का निर्माण किया।

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Content Editor

Prachi Sharma

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