Kajari Teej: अखंड सुहाग और मनचाहा प्यार देगी कजरी तीज की ये पूजा
punjabkesari.in Tuesday, Aug 20, 2024 - 11:30 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Kajari Teej 2024: 22 अगस्त को कजरी तीज का त्यौहार मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग प्रणाली के अनुसार साल के छठे महीने को भाद्रपद कहा जाता है। भाद्रपद अर्थात भादों का पूरा माह भगवान विष्णु के श्री कृष्ण की आभा लिए हुए अवतारों को संबोधित है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी अर्थात कजली तीज के नाम से जाना जाता है। इस दिन आसमान में घुमड़ती काली घटाओं के कारण इस पर्व को कजली अथवा कजरी तीज के नाम से पुकारते हैं। इस पर्व में परविद्धा तृतीया ग्राह्य है। यदि इस तिथि को पूर्वाभाद्रपद या उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो इसका महत्व और बढ़ जाता है।
भाद्रपद के दो नक्षत्रों में से उत्तराभाद्रपद शनि का नक्षत्र है। इस नक्षत्र में भगवान विष्णु के श्याम वर्ण लिए विग्रह का पूजन करने का विधान है। किसी भी भाद्रपद नक्षत्र में शनिदेव व भगवान श्रीकृष्ण के पूजन का विधान है। शब्द कजली का अर्थ है काले रंग से। शास्त्रों में शनिदेव का स्थान काले मेघों के बीच माना जाता है तथा शब्द भाद्रपद से ही शनि की बहन भद्रा उत्पन्न हुई थी। शब्द भाद्रपद का अर्थ है, जिनके श्री चरण सुंदर हों अर्थात श्रीकृष्ण व शनिदेव। कजरी अर्थात कजली तीज पर भगवान विष्णु के शामल वर्ण लिए विग्रह का पूजन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
कजरी तीज पर सुहागने तथा कंवारी कन्याएं पार्वती के भवानी स्वरूप का पूजन भी करती हैं। कजरी तीज पर तीन बातें त्याज्य मानी जाती हैं पहला पति से छल कपट, दूसरा मिथ्याचार एवं दुर्व्यावहार तथा तीसरा परनिंदा। सुहागने कजरी तीज को अपने पीहर अथवा अपने मामा के घर मनाती हैं। इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर सुहागने अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करती हैं। यदि सास न हो तो जेठानी या किसी वयोवृद्धा को देना शुभ होता है। कजरी तीज पर पैरों में मेहंदी लगाने का विशेष महत्व है।
लोक मान्यता के अनुसार, इसी दिन गौरा अर्थात पार्वती विरहाग्नि में तपकर काली हो गई थी तथा इसी दिन उन्होंने अपना काल रंग त्यागकर पुनः शिव से मिलन किया था। इस दिन मां पार्वती जी की सवारी बड़ी धूम-धाम से निकाली जाती है। पीपल, कदंब और बरगद के पत्ते मां भवानी, श्री राधाकृष्ण और शनिदेव का पूजन कर चढ़ाएं जाते हैं।
Kajari Teej 2024 Puja: क्या करें इस दिन: मां भवानी, श्री राधाकृष्ण और शनिदेव का विधिवत षोडशोपचार पूजा करें, उनकी दिव्य कथाओं एवं चरित्रों का श्रवण करते हुए "ॐ गौरीशंकराय नमः", "ॐ नमो भगवाते वसुदेवाय", तथा "ॐ शनिदेवाय नमः"
आदि मंत्रों का जप करें। इसी क्रम में विशिष्ट हविद्रव्य जैसे की पीपल, कदंब तथा बरगद से हवन करें। इस दिन हर घर में झूला डाला जाता है। सुहागने पति हेतु व कुंवारी कन्याएं अच्छे पति हेतु व्रत रखती हैं। इस दिन गेहूं, जौ, चना व चावल के सत्तू में घी मिलाकर पकवान बनाते है। व्रत शाम को चंद्रोदय के बाद खोलते हैं और ये पकवान खाकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन काली गाय की पूजा की जाती है तथा आटे की 7 रोटियां बनाकर उस पर गुड़ चना रखकर काली गाय को खिलाया जाता है। कजरी तीज के प्रभाव से मानव के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की सहज प्राप्ति होती है। मां भवानी, श्री राधा-कृष्ण और शनिदेव की कृपा से आर्थिक साधन सुलभ होते हैं। सुख-संपत्ति, आयुष्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।