Jeen Mata Mandir: हजारों सालों से है जलता दीपक, जहां देवी करती हैं स्वयं रक्षा

punjabkesari.in Sunday, Jun 08, 2025 - 09:19 AM (IST)

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Jeen Mata Mandir: राजस्थान के सीकर-जयपुर मार्ग पर गोरिया के पास जीणमाता गांव में देवी स्वरूपा जीण माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। माता दुर्गा की अवतार हैं। घने जंगल से घिरा मंदिर तीन छोटे पहाड़ों के संगम पर स्थित है। जीण माता का यह मंदिर प्राचीन शक्ति पीठ है। मंदिर दक्षिणमुखी है लेकिन मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों व वाममार्गियों की मूर्तियां लगी हैं, जिससे यह भी सिद्ध होता है कि उक्त सिद्धांत के मतावलंबियों का इस मंदिर पर कभी अधिकार रहा है या उनकी यह साधना स्थली रही है।

मंदिर के देवायतन का द्वार सभा मंडप में पश्चिम की ओर है। यहां जीण भगवती की अष्टभुजी आदमकद मूर्ति प्रतिष्ठापित है। सभा मंडप पहाड़ के नीचे है। मंदिर में ही एक और मंदिर है, जिसे गुफा कहा जाता है, जहां जगदेव पंवार का पीतल का सिर और कंकाली माता की मूर्ति है।

मान्यता है कि यह मंदिर एक हजार साल पुराना है, लेकिन कई इतिहासकार 8वीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं। मंदिर में अलग-अलग आठ शिलालेख लगे हैं, जो मंदिर की प्राचीनता के सबल प्रमाण हैं।  उपरोक्त में सबसे पुराना शिलालेख सम्वत् 1029 का है जिस पर मंदिर के निर्माण का समय नहीं लिखा गया है, इसलिए यह मंदिर उससे भी अधिक प्राचीन है।

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एक जनश्रुति के अनुसार, देवी जीण माता ने सबसे बड़ा चमत्कार मुगल बादशाह औरंगजेब को दिखाया था। औरंगजेब ने शेखावाटी के मंदिरों को तोड़ने  के लिए एक विशाल सेना भेजी थी। यह सेना हर्ष पर्वत पर शिव व हर्षनाथ भैरव का मंदिर खंडित कर जीण मंदिर को खंडित करके आगे बढ़ी, तो कहते हैं कि मंदिर के पुजारियों के मां से विनय करने पर मां जीण ने भंवरे (बड़ी मधुमखियां) छोड़ दिए, जिनके आक्रमण से औरंगजेब की शाही सेना लहूलुहान हो भाग खड़ी हुई।

स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई, तब उसने हाथ जोड़ कर मां जीण से क्षमा-याचना कर मां के मंदिर में अखंड दीप के लिए दिल्ली से सवा मन तेल भेजने का वचन दिया। कई वर्षों तक माता के मंदिर में दीपक के लिए दिल्ली से तेल आता रहा, फिर दिल्ली के बजाय जयपुर से आने लगा। बाद में जयपुर महाराजा ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्रों के समय भिजवाना आरंभ कर दिया और महाराजा मान सिंह जी के समय तेल के स्थान पर नकद 20 रुपए 3 आने प्रतिमाह कर दिए, जो निरंतर प्राप्त होते रहे।

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औरंगजेब को चमत्कार दिखाने के बाद जीण माता भंवरों की देवी भी कही जाने लगीं। मंदिर में बारह मास अखंडदीप जलता रहता है। हर मंदिर के कपाट चंद्र ग्रहण के दौरान बंद रहते हैं क्योंकि इस दौरान नकारात्मक शक्तियां बढ़ जाती हैं और सकारात्मक शक्तियां कमजोर पड़ जाती हैं लेकिन जीण माता मंदिर के कपाट हमेशा खुले रहते हैं।

लोक कथाओं के अनुसार, जीण माता का जन्म अवतार राजस्थान के चूरू जिले के घांघू गांव के अधिपति एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था। माता जीण को शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवान शिव का। कहते हैं कि दोनों बहन-भाइयों में बहुत स्नेह था, लेकिन किसी बात पर दोनों में मनमुटाव हो गया। तब जीण माता यहां आकर तपस्या करने लगीं।

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पीछे-पीछे हर्षनाथ भी अपनी लाडली बहन को मनाने के लिए आए लेकिन जीण माता ने जिद कर साथ जाने से मना कर दिया। हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और वह भी वहां से कुछ दूर जाकर तपस्या करने लगे। दोनों भाई-बहन के बीच हुई बातचीत का सुलभ वर्णन आज भी राजस्थान के लोक गीतों में मिलता है। भगवान हर्षनाथ का भव्य मंदिर आज भी राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में स्थित है।

जीणमाता मंदिर काजल शिखर की 300 फुट ऊंचाई पर है। बुजुर्ग, दिव्यांग, महिलाओं, बच्चों का यहां पहुंच पाना मुश्किल रहता था। इन सबकी सुविधा के लिए अब रोप वे शुरू हो गया है। शिखर तक पहुंचने में अब तक 2 घंटे लगते थे, लेकिन रोप वे से यह दूरी 5 मिनट में तय हो जाती है।        

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Content Editor

Prachi Sharma

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