क्षमा क्यों हैं दयालुता, त्याग और प्रेम का प्रतीक
punjabkesari.in Saturday, Oct 11, 2025 - 09:30 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Story: अंग्रेजी में एक बहुत प्रसिद्ध मुहावरा है First impression is the last impression अर्थात पहला प्रभाव ही आखिरी प्रभाव होता है।’ जरा सोचिए! उपरोक्त मुहावरे के आधार पर सारे दिन में हम हमारे मन में दूसरों की बुराइयों, कमियों, कमजोरियों, दुव्र्यवहार एवं दुश्चेष्टाओं की कितनी सारी स्मृतियां जमा करके रखते हैं?
यदि एक बार किसी के बारे में कोई छाप हमारे मन पर पड़ जाती है तो वह वर्षों-वर्ष तक निकलती नहीं है, फिर भले वह व्यक्ति बदल भी जाए परन्तु उसके बारे में वह छाप मिटाना हमारे लिए असंभव या मुश्किल हो जाता है। वह छाप ऐसी प्रबल बन जाती है जो वह हमारी दृष्टि, वृत्ति और कृति को बिगाड़कर रख देती है और सुखमय जीवन जीने के मार्ग पर हमारे लिए बाधक बन जाती है। भला ऐसा क्यों होता है जो हम उस व्यक्ति को क्षमा का दान नहीं दे पाते यदि उसने किसी बुरे संस्कार के वशीभूत होकर हमसे कोई दुव्र्यवहार किया भी था तो भी इंसानियत के नाते क्यों हम उसे एक मौका सुधरने का नहीं दे पाते?
हम उसकी भूल को अपने मन को पीड़ित करने वाला शूल क्यों बना बैठते हैं। ऐसी पीड़ादायक अवस्था से निजात पाने का एकमात्र सरल उपाय यदि कोई है, तो वह है ‘क्षमा भाव’। जी हां, क्षमाशीलता ही एक ऐसी शक्ति है जिससे हम अपने मन से घृणा, द्वेष, नाराजगी इत्यादि जैसे भावों को दया, करुणा एवं सहिष्णुता में परिवर्तित कर सकते हैं। तभी तो विद्वान एवं गुणीजनों ने सदैव ‘भूलो और माफ करो’ का सूत्र अपने जीवन में अपनाकर आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त किया और दूसरों को भी प्राप्त करवाया। स्मरण रहे! हम सभी के भीतर स्वाभाविक रूप से भुलाने की क्षमता है परन्तु उलट चाल के कारण वह क्षमता कमजोर हो गई है, अत: अब उसका अभ्यास करना जरूरी है क्योंकि जब तक हम भूलेंगे नहीं तब तक क्षमा भी नहीं कर सकेंगे और यदि क्षमा नहीं करेंगे तो भुला भी नहीं सकेंगे और यदि भुला नहीं सकेंगे तो हमारे जीवन में निखार आएगा ही नहीं और हम सुख-चैन की नींद सो भी नहीं पाएंगे। क्षमा न कर सकना यह अपने आप में एक बहुत बड़ी कमजोरी है परन्तु केवल दूसरों को ही क्षमा करना पर्याप्त नहीं है अपितु हमने यदि कुछ अनिष्ट, अयुक्त, अमर्यादित अथवा अभद्रतापूर्ण व्यवहार किसी से किया हो तो हमें भी दूसरों से उसके लिए क्षमा मांगनी चाहिए अथवा खेद प्रकट करना चाहिए वरना न तो हमारा अभिमान मिटेगा और न ही बुरा करने की हमारी आदत मिटेगी। यदि हमसे ऐसा कोई व्यवहार जाने-अनजाने में भी हो जाता है, तब हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम तो बड़े हैं, छोटों को यह क्यों कहें कि ‘क्षमा कीजिए’ अथवा कि ‘हमसे गलती हुई है’।
हमें यह भी नहीं सोचना चाहिए कि गलती मानने से तो सामने वाला व्यक्ति हमारे सिर पर चढ़ जाएगा और इस बात का ढढोरा पीटता फिरेगा कि हमने उनसे माफी मांगी है या मांगी थी। इन सब व्यर्थ विचारों को छोड़, हमें अपने उत्कर्ष के लिए और सम्पूर्णता को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार के संकोच को छोड़ देना चाहिए। फिर भी, यदि कोई व्यक्ति निश्चित रूप से ऐसा है कि वह हमारी ‘क्षमा याचना’ का अनुचित लाभ लेकर हमारे लिए कार्य कठिन कर देगा तो वाणी में न सही, हाव-भाव तो हमें ऐसा प्रकट करना ही चाहिए कि हम अपनी भूल मानते हैं या अमर्यादा के लिए पछताते हैं, क्योंकि जब तक हम किसी भी ठीक युक्ति से अपना क्षमाभाव प्रकट नहीं करेंगे और प्रायश्चित भी नहीं करेंगे, तब तक हमारा मन निर्मल और हल्का नहीं हो पाएगा।
हममें से कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि हम सभी ने अपने जीवनकाल में कहीं न कहीं ईष्या, द्वेष, घृणा, शत्रुता, मनमुटाव, स्वार्थ इत्यादि निकृष्ट भावों के वशीभूत होकर दूसरों को हानि पहुंचाई तो है, दुव्र्यवहार किया तो है, उनकी निंदा-चुगली की तो है, उन्हें पीछे धकेल कर अपने लिए आगे का स्थान जबरदस्ती बनाया तो है, दूसरों को उनके उचित अधिकारों से वंचित किया तो है और अन्याय, अभद्रता तथा अनीति का व्यवहार भी किया तो है। अब इतना सब करने के पश्चात, क्षमा मांगकर हल्का होना उचित है या इस सारे बोझ को अपने साथ बांध कर ऊपर ले जाना उचित है?
क्योंकि ऐसा सुना है कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती और वह हर कर्म का हिसाब लेता है। उनकी अदालत में तो न जमानत होती है और न ही वहां किसी की सिफारिश काम करती है। ऐसे में समझदारी और फायदा दूसरों की बुराई मन से भुलाने और अपनी बुराई के प्रति क्षमाभाव प्रकट कर ‘भुलाने और क्षमा करने की शक्ति’ को धारण करने में ही है। और हां, स्मरण रहे! यह शक्ति हम में तभी आएगी जब हम सभी के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना रखेंगे। तो आज से क्या करेंगे? भूलेंगे और माफ करेंगे या याद रखेंगे?