Inspirational Story: वक्त कहां ठहरता है किसी की खातिर...

punjabkesari.in Monday, Mar 27, 2023 - 01:00 PM (IST)

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Inspirational Story: वह एक बूढ़ा व्यक्ति था। उसके चेहरे पर संन्यासियों की तरह बड़ी-बड़ी दाढ़ी-मूछें थीं। उसके कपड़े हमेशा फटे-पुराने होते थे। वह दो-दो, तीन-तीन कमीज-पायजामे पहने रहता था। उसके दाएं कंधे पर एक लाठी होती थी। उस लाठी के सहारे उसकी पीठ पर एक गठरी-सी लटकी रहती थी। उसमें न जाने क्या-क्या बांधे रखता था वह। दिन भर गलियों में इधर-उधर भटकता रहता था और रात होने पर नजदीक के एक मंदिर की सीढिय़ों पर जा लेटता। कोई कुछ दे देता तो खा लेता।

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बच्चे उसे पागल कह कर पुकारा करते पर वह ऐसा कहे जाने पर चिढ़ता नहीं था। कोई कुछ भी कह ले, वह ध्यान ही नहीं देता लेकिन अपने पास से गुजरने वाले हर व्यक्ति से वह पूछे बिना नहीं रहता, ‘‘भाई मेरे, तुम्हें पता है कि वक्त की कीमत क्या है? 

माता जी, क्या आप वक्त की कीमत बता सकती हैं ? अरे ओ बेटा, ओ बिटिया, क्या तुम मुझे वक्त की कीमत बता सकते हो?’’

पास से गुजरने वाले अधिकतर लोग उसके इन प्रश्नों को सुनकर भी अनसुना कर देते। कुछ लोग जवाब में सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाते तो कुछ कह देते, ‘‘बाबा, समय बहुत कीमती होता है।’’

स्कूल में आते-जाते वक्त नवल को वह बूढ़ा व्यक्ति रास्ते में जरूर मिलता। नवल छठी कक्षा का विद्यार्थी था। उससे भी वह वक्त की कीमत के बारे में प्रश्र जरूर पूछता। नवल बिना कुछ बोले समीप से निकल जाता। उसके मन में आता कि वह पागल बूढ़ा हर किसी से सिर्फ यही सवाल क्यों पूछता है ? बहुत सोचने पर भी वह इसका उत्तर नहीं ढूंढ पाया।

नवल के मन में जब भी कोई जिज्ञासा जन्म लेती तो वह उसका समाधान अपने दादा जी से करवाता। उसके मम्मी-पापा के पास तो ऐसी बातों का जवाब देने के लिए समय ही नहीं होता था। दादा जी भी नवल से खूब प्यार करते और हर मामले में उसकी सहायता करते थे।

नवल ने एक दिन दादा जी से पूछ ही लिया, ‘‘दादा जी, क्या आप मुझे वक्त की कीमत बता सकते हैं?’’

प्रश्र सुनकर दादा जी हंस पड़े। वह समझ गए थे कि नवल को गली-गली घूमने वाले उस पागल बूढ़े की बात परेशान किए हुए है इसीलिए उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘बेटे, वक्त बहुत कीमती होता है। जो आदमी अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ इसका सही उपयोग करता है, वही इसकी असली कीमत को आंक सकता है।’’

‘‘मैं समझा नहीं, दादा जी, कृपया मुझे ठीक से समझाइए।’’ नवल ने अनुरोध किया।

‘‘देखो बेटा, वक्त में एक खास गुण होता है। वह यह है कि जो इसका आदर करता है, वक्त भी उसका आदर करता है। जो इसे कीमती समझ कर इससे काम लेता है, वक्त बदले में उसे भी कीमती बना देता है। जो लोग समय की बेइज्जती करते हैं, समय उनकी बेइज्जती करता है, चोट पहुंचाता है।’’ दादा जी बोले।

‘‘पर कैसे? क्या उस पागल बूढ़े ने वक्त को बेइज्जत किया था? क्या इसीलिए वह हर किसी से समय की कीमत पूछता है?’’ इस बार नवल ने सीधे मतलब की बात पर आते हुए कहा।

‘‘हां बेटे, उसने कभी भी वक्त का आदर नहीं किया। वह बहुत ताकतवर था। उसे अपनी ताकत पर खूब घमंड था। वह कहा करता था कि समय तो मेरी मुट्ठी में है। मैं समय के पीछे नहीं चलूंगा। समय को मेरे पीछे चलना होगा, एक गुलाम की तरह इसीलिए उसने कभी कोई भी काम समय पर नहीं किया। आखिर समय ने उस पर चोट करके बदला ले ही लिया।’’ दादाजी ने लम्बी सांस छोड़ते हुए बताया।

‘‘वक्त ने उससे किस तरह से बदला लिया? जल्दी से बतलाइए न दादा जी।’’ एकदम से सब कुछ जान लेना चाहता था नवल।

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‘‘बेटा उसके पास खेती की जमीन थी, दुकान थी पर न तो खेती कर सका और न ही ठीक से दुकान चला सका। ये दोनों चीजें वक्त की पाबंदी मांगती हैं? नौकरी की, तो वहां भी यही बात। वह भी इसीलिए छोडऩी पड़ी। उसकी पत्नी खूब मेहनत करती थी इसलिए गुजारा ठीक से चलता रहा। उसका लड़का-लड़की पढ़ते थे।

लड़का तो इतना योग्य निकला कि उसे जर्मनी में पढऩे के लिए वजीफा मिल गया था। जर्मनी के लिए उसे दिल्ली से हवाई जहाज में जाना था। बुकिंग हो चुकी थी। दिल्ली तक उसे रेलगाड़ी से जाना था। उसे विदा करने के लिए दिल्ली तक पूरा परिवार साथ जा रहा था परन्तु इस बूढ़े के समय पर तैयार न होने के कारण रेलगाड़ी छूट गई। ये लोग टैक्सी करके दिल्ली के लिए चले। रास्ते में थोड़ी देर के लिए ट्रैफिक जाम में फंस गए।

इसका लड़का परेशान था कि कहीं जर्मनी की फ्लाइट भी मिस न हो जाए इसलिए वह टैक्सी वाले पर तेज चलने के लिए दबाव डालता रहा। इसी हड़बड़ाहट में एक साइकिल वाले को बचाने के प्रयास में टैक्सी उलट कर मुख्य मार्ग से नीचे जा पड़ी। इसका बेटा, बेटी, पत्नी और ड्राइवर वहीं चल बसे। सिर्फ यह और इसकी बूढ़ी मां बच गए। टैक्सी की खिड़की खुलकर ये दोनों एक ओर जा गिरे थे।’’

‘‘जब बर्बादी का यह नजारा इसने अपनी आंखों से देखा तो इसके दिल पर बहुत चोट पहुंची। इसी वजह से यह सब हुआ था। तभी से यह पागल हो गया। उसी दिन से वक्त की कीमत पूछता घूम रहा है। ये सारी बातें इसकी मां ने हमें बताई थीं।’’

‘‘वह बेचारी भी इस सदमे को सहन न कर पाई और जल्द ही स्वर्ग सिधार गई। समय के हाथों सजा तो इसे ही मिलनी थी पर दुर्भाग्यवश इसके परिवार को भी उस सजा में भागीदारी बनना पड़ा।’’

नवल ने देखा कि दर्दभरी कहानी सुनाते-सुनाते दादा जी की आंखें भर आई हैं, जिन्हें वे चुपके से पोंछ रहे थे।  

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Content Writer

Niyati Bhandari

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