Inspirational Context: इस तरह पाएं अपने ईर्ष्या, क्रोध और अपमान पर विजय
punjabkesari.in Monday, May 20, 2024 - 09:53 AM (IST)
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शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Inspirational Context: जापान की राजधानी टोक्यो के निकट एक महान मास्टर रहते थे। वह अब वृद्ध हो चुके थे और अपने आश्रम में रह कर ही शिक्षा देते थे। एक दिन एक नौजवान योद्धा, जिसने कभी कोई युद्ध नहीं हारा था, ने सोचा कि अगर मैं मास्टर को लड़ने के लिए उकसा कर उन्हें लड़ाई में हरा दूं तो मेरी ख्याति और भी फैल जाएगी और इसी विचार के साथ वह एक दिन आश्रम पहुंचा ।
‘‘कहां है वह मास्टर ! हिम्मत है तो सामने आए और मेरा सामना करे।’’ योद्धा की क्रोध भरी आवाज पूरे आश्रम में गूंजने लगी।
देखते-देखते सभी शिष्य वहां इकठ्ठे हो गए और अंत में मास्टर भी वहीं पहुंच गए। उन्हें देखते ही योद्धा उन्हें अपमानित करने लगा, उसने जितना हो सका, उतने अपशब्द मास्टर को कहे, पर मास्टर फिर भी चुप और शांति से वहां खड़े रहे।
बहुत देर तक अपमानित करने के बाद भी जब मास्टर कुछ नहीं बोले तो योद्धा कुछ घबराने लगा, उसने सोचा ही नहीं था कि इतना सब कुछ सुनने के बाद भी मास्टर उसे कुछ नहीं कहेंगे। उसने अपशब्द कहना जारी रखा और मास्टर के पूर्वजों तक को भला-बुरा कहने लगा, पर मास्टर तो मानो बहरे हो चुके थे। वह उसी तरह शांति के साथ वहां खड़े रहे और अंतत: योद्धा थक कर खुद ही वहां से चला गया।
उसके जाने के बाद वहां खड़े शिष्य मास्टर से नाराज हो गए, ‘‘भला आप इतने कायर कैसे हो सकते हैं।
आपने उस दुष्ट को दंडित क्यों नहीं किया, अगर आप लड़ने से डरते थे, तो हमें आदेश दिया होता, हम उसे छोड़ते नहीं।’’ शिष्यों ने एक स्वर में कहा।
मास्टर मुस्कुराए और बोले, ‘‘यदि तुम्हारे पास कोई कुछ सामान लेकर आता है और तुम उसे नहीं लेते हो तो उस सामान का क्या होता है ?’’
‘‘वह उसी के पास रह जाता है जो उसे लाया था।’’ उनमें से एक शिष्य ने उत्तर दिया।
‘‘यही बात ईर्ष्या, क्रोध और अपमान के लिए भी लागू होती है।’’
मास्टर बोले, ‘‘जब इन्हें स्वीकार नहीं किया जाता तो वे उसी के पास रह जाती हैं, जो उन्हें लेकर आया था।’’