भारत में नहीं पाकिस्तान के इस शहर में मनाई गई थी सबसे पहले होली

punjabkesari.in Tuesday, Mar 10, 2020 - 10:46 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आज यानि 10 मार्च फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को दुनिया के कई हिस्सों में होली का त्यौहार मनाया जा रहा है। बता दें वैसे मुख्य रूप से ये त्यौहार भारत और नेपाल में मनाया जाता है। मगर आज की बात करें ये त्यौहार लगभग हर जगह मनाया जाता है। कहा जाता है इस त्यौहार से जुड़ी काफ़ी धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। जिनके बारे में अधिकतर लोग जानते हैं। मगर आज हम आपको होली के इस पर्व से जुड़ी ऐसी बात बताने वाले हैं जिसके बारे में यकीनन आप नहीं जानते होंगे। इससे पहले कि आप सोचने लगे कि ऐसी कौन सी मान्यता है। तो बता दें हम पाकिस्तान की होली की बात कर रहे हैं। जी हां, आप ने कुछ गलत नहीं पढ़ा। बल्कि कहा ये भी जाता है असल में होली का जितना गहरा नाता पाकिस्तान की इस जगह से किसी और जगह से नहीं है। तो चलिए देर न करते हुए जानते हैं कि भारत के साथ-साथ पाकिस्तान से कैसे होली का संबंध जुड़ा हुआ है। 
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अगर यहां के प्रचलित लोक मान्यताओं की मानें तो असल में होली की शुरुआत भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान से हुई। इसके पीछे बेहद ही खास वजह बताई जाती है और जो जुड़ी है पाकिस्तान के मुल्तान शहर में मौज़ूद प्रल्हादपुरी मंदिर से। ऐस कहा जाता है हिरण्यकश्यप के बेटे प्रल्हाद ने भगवान नरसिंह (विष्णु के अवतार) के सम्मान में एक मंदिर बनवाया था जो आज के समय में पाकिस्तान के शहर मुल्तान में है। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान नरसिंह ने खंभे से प्रकट हो अपने भक्त प्रल्हाद को दर्शन दिए थे तथा उसके पिता से उसके प्राणों की रक्षा की थी। बताया जाता है इसी मंदिर से होली की शुरुआत हुई थी। जहां दो दिनों तक होलिका दहन उत्सव और पूरे नौ दिन तक होली का पर्व मनाया जाता था। 

इसके अलावा होली वाले दिन जनमाष्टमी की तरह मटकी फोड़ी जाती है। जिस दौरान मटकी को ऊंचाई पर लटकाया जाता है। फिर पिरामिड के आकार में एक के ऊपर एक चढ़कर मटकी फोड़ी जाती है। इसकी खासियत ये है कि जन्माष्टमी के जैसे मटकी में मक्खन और मिश्री भरी जाती है। बता दें पाकिस्तान के मुल्तान में इस पर्व को चौक-पूर्णा त्योहार कहा जाता है।
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इसके साथ ही बताते चलें स्पीकिंग ट्री के मुताबिक भारत में बाबरी मस्जिद को गिराने के बाद पाकिस्तान में कई हिंदू मंदिरों को गिराया गया, जिनमें से एक प्रल्हादपुरी मंदिर भी था। मगर कहा जाता है अब इस मंदिर में रखी भगवान नरसिंहा की मूर्ति हरिद्वार में है, जिसे उस समय बाबा नारायण दास बत्रा भारत में लाए थे। आपकी जानकारी के लिए बता दें नारायण दास प्रसिद्ध वयोवृद्ध संत हैं, जिन्होंने भारत में कई स्कूलों और कॉलेजों का निर्माण करवाया। 


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Jyoti

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