हमारे हाथ है धरती पर स्वर्ग-नरक बनाना, जानें कैसे व्यक्ति हैं आप

punjabkesari.in Tuesday, Nov 15, 2016 - 01:13 PM (IST)

एक आलीशान कमरे में एक बड़ी गोल मेज थी, जिसके चारों ओर कु्र्सियों पर लोग बैठे थे। उनके सामने नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन सजे थे, जिन्हें देख लोगों के मुंह पानी से भर आए थे लेकिन विडंबना यह कि उन सभी की कोहनियां कुर्सी की बांहों से बंधी थीं। हर किसी के हाथ में एक-एक बड़ा चम्मच था, जो सामने रखे भोजपात्रों तक पहुंच सकता था, पर उनकी कोहनियां चूंकि बंधी थीं, इसलिए वे भरे हुए चम्मच को अपने मुख तक नहीं ले जा सकते थे। अजब लाचारी थी! वे बेचारे भूख से बेहाल थे।


उस कमरे के बगल में वैसा ही दूसरा कमरा था। उसमें भी उसी तरह की गोल मेज थी, कुॢसयां थीं, लोग बैठे थे जिनकी कोहनियां कुर्सी की बांहों से बंधी थीं। हाथ में चम्मच था और सामने भोजपात्रों में स्वादिष्ट व्यंजन सजे थे, फिर भी ये लोग खुश थे, चेहरों पर चमक थी और इन सबके शरीर ऊर्जावान थे। अंतर था तो मात्र इतना कि दोनों कमरों के लोगों के जीवन के प्रति नजरिए अलग-अलग थे। पहले कमरे में बैठे लोग खुदगर्ज थे, मन से कृपण, उनकी दुनिया अपने तक ही सिमटी थी। वे चम्मच को बार-बार मुख तक ले जाने का प्रयत्न करते, पर कोहनियां बंधी होने के कारण थक-हार चुके थे। इसके विपरीत दूसरे कमरे में बैठे लोग उदार मानसिकता के धनी थे। दूसरों के सुख में उन्हें बेइंतहा खुशी मिलती। अत: उन्होंने एक आसान रास्ता खोज निकाला था। 


उन्हें यह समझते देर न लगी कि उनकी कोहनियां जिस प्रकार बंधी हैं, उनसे अपने मुख तक तो नहीं पहुंचा जा सकता, पर साथ बैठे साथी के मुख तक पहुंच पाना मुश्किल नहीं। नतीजा यह हुआ कि सभी एक-दूसरे की भूख शांत करने में जुट गए और थोड़ी ही देर में सबके पेट में भोजन पहुंचने लगा। उनके बीच कोई भूखा न रहा। सचमुच क्या ये दो कमरे नरक और स्वर्ग की ही जीती-जागती मिसाल नहीं? क्या हमारे आत्मकेंद्रित होने, दूसरों के सुख में सुख न पाकर ईर्ष्या के पाताल में डूबने, दूसरों का गलत-सलत चरित्रहनन करने से यह सुंदर, भरी-पूरी पृथ्वी नरक का रूप नहीं लेती जा रही? हर कोई सुखी रहे, हर कोई निरोगी रहे और इसमें आपकी सांझेदारी हो, चारों ओर प्रेम, सौहार्द और सद्भावना के फूल खिले हों तो क्या यही धरती एक बार फिर स्वर्ग नहीं बन जाएगी?


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