Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas: पढ़िए, क्यों श्री गुरु तेग बहादर जी को कहा जाता है हिंद दी चादर’

punjabkesari.in Thursday, Jan 02, 2025 - 09:47 AM (IST)

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Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2025: सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी विश्व के एकमात्र ऐसे धार्मिक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने किसी दूसरे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। इनका प्रकाश श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के गृह में 1621 ई. को माता नानकी जी की कोख से गुरु के महल अमृतसर साहिब में हुआ। ये बचपन से ही वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। एकांत में घंटों प्रभु की भक्ति में लीन रहते। 

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पहले इनका नाम त्याग मल्ल था परंतु करतारपुर साहिब में गुरु हरगोबिंद साहिब जी के साथ मुगलों की हुई लड़ाई में इन्होंने अपनी तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने खुश होकर इनका नाम त्याग मल्ल जी से बदलकर (गुरु) ‘तेग बहादर’ रख दिया। बचपन से ही इनके द्वार पर जो भी कुछ मांगने के लिए आता वह खाली हाथ नहीं जाता था। इनके पास जो भी होता वह गरीबों को दे देते। इनके बड़े भ्राता बाबा गुरदित्ता जी की शादी के समय इनके लिए बहुत ही सुंदर वस्त्र तथा गहने बनाए गए, परंतु एक जरूरतमंद ने जब आपके कपड़ों की ओर लालसा भरी निगाहों से देखा तो इन्होंने गहने व कीमती कपड़े उसे दे दिए। 

गुरु जी की शादी लाल चंद सुभिखिया की बेटी (माता) गुजरी जी से जालंधर के निकट करतारपुर साहिब में हुई। गुरु हरगोबिंद साहिब जी के बाद तेग बहादर जी के भतीजे गुरु हरिराय जी को गुरुगद्दी मिली तथा उनके बाद इनके पौत्र गुरु हरिकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु बने। गुरु हरिकृष्ण जी ने अपने दादा गुरु तेग बहादर जी को गुरु गद्दी दी। गुरु तेग बहादर जी ने कई वर्ष बाबा बकाला नगर में घोर तपस्या की। यहीं पर मक्खन शाह लुबाना ‘गुरु लाधो रे’ कहते हुए इन्हें गुरु के रूप में दुनिया के सामने लाए। 

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गुरु जी के घर पुत्र हरगोबिंद राय जी का प्रकाश हुआ जो बाद में दशम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी बने। गुरु तेग बहादर जी ने सतलुज नदी के किनारे पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीदी तथा आनंदपुर साहिब नामक नगर बसाया। यहीं औरंगजेब, जो हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था, के सताए हुए कुछ कश्मीरी ब्राह्मण पंडित कृपा राम जी के नेतृत्व में प्रार्थी बनकर अपना धर्म बचाने के लिए फरियाद लेकर गुरु जी के पास आए। निवेदन स्वीकार करते हुए गुरु जी ने अपना बलिदान देने का निश्चय कर लिया। गुरु जी के साथ गए सिखों में से भाई मतीदास जी को औरंगजेब के आदेश पर आरे से जिंदा चीर दिया गया, भाई सतीदास जी को कपास में जिंदा लपेट कर आग लगा दी गई तथा भाई दयाला जी को देग (वलटोही) में पानी डालकर उसमें उबाल दिया गया। 

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Martyrdom of Guru Tegh Bahadur: गुरु जी को भी करामात दिखाने को कहा गया, परंतु इन्होंने इंकार कर दिया। आखिर 1675 ई. में इन्हें चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। लोगों को इन्होंने सदैव यही संदेश दिया कि मनुष्य का यह प्रमुख कार्य है कि वह प्रभु की भक्ति करे। इनका कहना था कि माया के मोह में फंसा हुआ मनुष्य प्रभु के सिमरन की जगह माया ही मांगता रहता है। मनुष्य दूसरों को ठगने की सोचता रहता है परन्तु अचानक ही मौत का फंदा उसके गले में डल जाता है।

श्री गुरु तेग बहादर जी ने लोगों को समझाया कि कोई भी मनुष्य यदि परमात्मा की भजन-बंदगी छोड़कर तथा तीर्थ-स्नान करके, व्रत रखकर, दान पुण्य करके अपने मन में अहंकार करता है कि मैं धर्मी पुरुष बन गया हूं तो उसके सभी पुण्य कर्म ऐसे व्यर्थ चले जाते हैं जैसे हाथी द्वारा किया गया स्नान। हाथी स्नान करने के बाद अपने शरीर पर दोबारा मिट्टी फैंक लेता है। अहंकारी मनुष्य का भी यही हाल होता है।

श्री गुरु तेग बहादर जी द्वारा हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने के कारण इन्हें ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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