Guru Tegh Bahadur: जानें, क्यों कहा जाता है गुरु तेग बहादुर जी को हिन्द की चादर
punjabkesari.in Sunday, Dec 17, 2023 - 01:37 PM (IST)

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Guru Tegh Bahadur: श्री गुरु तेग बहादुर जी को ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है। गुरु जी विश्व के एकमात्र ऐसे धार्मिक महापुरुष हुए, जिन्होंने अन्य धर्म की रक्षा हेतु अपने प्राण न्यौछावर किए। गुरु जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे, परन्तु हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अपना बलिदान देने में आप जी ने एक पल भी न लगाया। गुरु जी का प्रकाश श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के गृह में 1621 ई. को माता नानकी जी की कोख से गुरु के महल, अमृतसर साहिब में हुआ। आप बचपन से ही वैराग की मूरत थे। एकांत में बैठ कर आप घंटों भक्ति में लीन रहते। आपका नाम त्याग मल्ल था, परंतु करतारपुर साहिब में गुरु हरगोबिंद साहिब जी के साथ मुगलों की लड़ाई में आपने अपनी तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने खुश होकर आपका नाम त्याग मल्ल जी से बदलकर (गुरु) तेग बहादुर रख दिया।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी आपकी बाल लीला को देख कर अक्सर कहा करते थे कि यह एक सच्चे संत तथा धर्म रक्षक होंगे। बचपन से ही आपके द्वार पर जो भी कुछ मांगने के लिए आता, वह खाली नहीं जाता था। आपके पास जो भी होता था, वह सब कुछ गरीबों को दे दिया करते थे। आपके बड़े भ्राता बाबा गुरदित्ता जी की शादी के समय आप के लिए बहुत ही सुंदर वस्त्र तथा गहने बनाए गए परंतु एक गरीब ने जब आपके कपड़ों की ओर लालसा भरी निगाहों से देखा तो आपने गहने व कीमती कपड़े उसको दे दिए।
एक बार एक मीरासी ने आपसे कुछ धन मांगा। उस समय आप कीमती वस्त्र धारण किए तथा गहने पहने हुए एक बहुत कीमती घोड़े पर बैठे थे। आपने तुरंत वस्त्र, शस्त्र, आभूषण तथा घोड़ा उस मीरासी को दे दिया। गुरु जी की शादी लाल चंद सुभिखिया की बेटी (माता) गुजरी जी के साथ जालंधर के निकट करतारपुर साहिब में हुई। उनका पैतृक गांव लखनौर साहिब है, जो अम्बाला के निकट है। लाल चंद जी बाद में गुरु अर्जुन देव जी द्वारा स्थापित गांव करतारपुर साहिब में आकर बस गए थे।
गुरु हरगोबिंद साहिब जी के बाद आप जी के भतीजे गुरु हरिराय जी को गुरु गद्दी मिली तथा उनके बाद आप जी के पौत्र गुरु हरिकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु बने। गुरु हरिकृष्ण जी ने अपने दादा गुरु तेग बहादुर जी को गुरु गद्दी दी। आपने कई वर्ष तक बाबा बकाला नगर में घोर तपस्या की। आपकी माता नानकी जी तथा पत्नी माता गुजरी भी आपके संग रहे। यहीं पर मक्खन शाह लुबाना आपको ‘गुरु लाधो रे’ कहते हुए गुरु के रूप में दुनिया के सामने लाए।
गुरु तेग बहादुर जी के घर एक पुत्र श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश हुआ। गुरु जी ने सतलुज के किनारे पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीदी तथा आनंदपुर साहिब नामक नगर बसाया। इसी नगर में औरंगजेब के जुल्मों के सताए कुछ कश्मीरी ब्राह्मण पंडित कृपा राम जी के नेतृत्व में प्रार्थी बनकर आप के समक्ष उपस्थित हुए।
दरअसल, औरंगजेब उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था तथा अपना धर्म बचाने के लिए कश्मीरी ब्राह्मïण गुरु जी के पास आए। इनके निवेदन को स्वीकार करते हुए गुरु जी ने अपना बलिदान देने का निश्चय कर लिया। यह बहुत ही विलक्षण बात थी कि कोई मक्तूल (कत्ल होने वाला) अपने कातिल के पास स्वयं चलकर पहुंचे लेकिन गुरु तेग बहादुर जी ने ऐसा ही किया। गुरु जी के साथ गए सिखों में से भाई मतीदास जी को औरंगजेब के आदेश पर आरे से जिंदा चीर दिया गया, भाई सतीदास जी को कपास में जिंदा लपेटकर आग लगा दी गई तथा भाई दयाला जी को देग (वलटोही) में पानी डालकर उसमें उबाल दिया गया। गुरु जी को भी करामात दिखाने को कहा गया परंतु आपने इंकार कर दिया। आखिर 1675 ई. में आप को चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया।
गुरु जी के उपदेश
गुरु जी ने लोगों को सदैव यही संदेश दिया कि मनुष्य का यह प्रमुख कार्य है कि वह प्रभु की भक्ति करे। भक्ति के बगैर मनुष्य अपना कीमती जीवन व्यर्थ गंवा लेता है। मनुष्य अपनी धन-दौलत, सम्पत्ति को सच्चा साथी मान कर उन पर गर्व करता है परन्तु अंत समय में इनमें से कोई उसका साथ नहीं देता।
यह शरीर पंच तत्वों - मिट्टी, हवा, पानी, आग व आकाश से बना है। जिन तत्वों से यह शरीर बना है, अंत में उन्हीं में विलीन हो जाएगा। फिर ऐ मनुष्य इस नश्वर शरीर के साथ मोह क्यों और प्रभु की भक्ति क्यों नहीं।
गुरु जी किसी को भी डराने या किसी से डरने के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार जो व्यक्ति न किसी से डरता है तथा न ही किसी को डराता है, वही ज्ञानी है।
उनका कहना था कि माया के मोह मेें फंसा मनुष्य प्रभु के सिमरन की जगह माया ही माया मांगता रहता है परन्तु भगवान की मर्जी कुछ और ही हो जाती है। वह दूसरों को ठगने की सोचता रहता है परन्तु अचानक मौत का फंदा उसके गले में डल जाता है।