Guru Pradosh Vrat Katha- शत्रुओं व विरोधियों पर विजय प्राप्त करने के लिए आज ज़रूर सुनें और पढ़ें गुरु प्रदोष व्रत कथा

punjabkesari.in Thursday, Jul 18, 2024 - 09:52 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Guru Pradosh Vrat story- एक बार इन्द्र और वृत्रासुर में घनघोर युद्ध हुआ। उस समय देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। अपना विनाश देख वृत्रासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध के लिए उद्यत हुआ। मायावी असुर ने आसुरी माया से भयंकर विकराल रूप धारण किया। उसके स्वरूप को देख इन्द्रादिक सब देवताओं ने इन्द्र के परामर्श से परम गुरु बृहस्पति जी का आवाह्न किया, गुरु तत्काल आकर कहने लगे-हे देवेन्द्र! अब तुम वृत्रासुर की कथा ध्यान मग्न होकर सुनो-वृत्रासुर प्रथम बड़ा तपस्वी कर्मनिष्ठ था, इसने गन्धमादन पर्वत पर उग्र तप करके शिव जी को प्रसन्न किया था। पूर्व समय में यह चित्ररथ नाम का राजा था, तुम्हारे समीप जो सुरम्य वन है वह इसी का राज्य था, अब साधु प्रवृत्ति विचारवान महात्मा उस वन में आनन्द लेते हैं। वह भगवान के दर्शन की अनुपम भूमि है।

PunjabKesari Guru Pradosh Vrat Katha

एक समय चित्ररथ स्वेच्छा से कैलाश पर्वत पर चला गया। भगवान का स्वरूप और वाम अंग में जगदम्बा को विराजमान देख चित्ररथ हंसा और हाथ जोड़कर शिव शंकर से बोला- हे प्रभो ! हम माया मोहित हो विषयों में फंसे रहने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किन्तु देव लोक में ऐसा कहीं नहीं हुआ कि कोई भी सभा में स्त्री सहित बैठें। चित्ररथ के ये वचन सुनकर सर्वव्यापी भगवान शिव हंस कर बोले कि हे राजन् ! मेरा व्यवहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता काल कूट महाविष का पान किया है। फिर भी तुम साधारण जनों की भांति मेरी हंसी उड़ाते हो। तभी पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ की ओर देखती हुई कहने लगी-ओ दुष्ट तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरी भी हंसी उड़ाई है, तुझे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा।

PunjabKesari Guru Pradosh Vrat Katha
उपस्थित सभासद महान विशुद्ध प्रकृति के शास्त्र तत्वान्वेषी हैं और सनक, सनन्दन सनत्कुमार हैं। हे सर्व ! अज्ञान के नष्ट हो जाने पर शिव भक्ति में तत्पर हैं, अरे मूर्खराज ! तू अति चतुर है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के मजाक का दुःसाहस ही न करेगा। अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, तुझे मैं शाप देती हूं कि अभी पृथ्वी पर चला जा। जब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को ये शाप दिया तो वह तत्क्षण विमान से गिरकर, राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और प्रख्यात महासुर नाम से प्रसिद्ध हुआ। तवष्टा नामक ऋषि ने उसे श्रेष्ठ तप से उत्पन्न किया और अब वही वृत्रासुर शिव भक्ति में ब्रह्मचर्य से रहा। इस कारण तुम उसे जीत नहीं सकते, अतएव मेरे परामर्श से यह प्रदोष व्रत करो जिससे महाबलशाली दैत्य पर विजय प्राप्त कर सको।

गुरुदेव के वचनों को सुनकर सब देवता प्रसन्न हुए और गुरुवार त्रयोदशी यानि गुरु प्रदोष व्रत विधि-विधान से व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शान्ति छा गई। जो भी इंसान इस व्रत को करता है और इस कथा का स्मरण करता है उसे शत्रुओं व विरोधियों पर विजय प्राप्त होती है।

PunjabKesari Guru Pradosh Vrat Katha


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News