अन्नकूट के साथ संपन्न हुआ पांच दिवसीय दिवाली का पर्व, जाते-जाते ज़रूर पढ़ लें ये जानकारी

punjabkesari.in Wednesday, Oct 26, 2022 - 06:23 PM (IST)

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अन्नकूट के साथ संपन्न हुआ पांच दिवसीय दिवाली का पर्व, जाते-जाते ज़रूर पढ़ लें ये जानकारीआज 26 अक्टूर को गोवर्धन पूजा व अन्नकूट पर्व के साथ पांच दिवसीय दिवाली पर्व का समापन हो गया। हालांकि भाई दूज की बात करें तो ये भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक ये पर्व 26 अक्टूबर दिन बुधवार दोपहर 2.29 से शुरु हुआ जो 27 अक्टूबर दिन गुरुवार 12.45 तक रहेगा। हर साल की तरह इस साल भी देश में ये पांचों त्यौहार बेहद धूम धाम से मनाए गए। जिसके बाद आपको लग रहा होगा कि अब इससे जुड़ी जानकारी आप तक पहुंचाने का हमारा सिलसिला यकीनन खत्म हो गया होगा लेकिन आपको बता दें ऐसा नहीं है, आज पांच दिवसीय पर्व के आखिरी त्योहर के समापन के साथ हम आपको जाते-जाते भी इन से जुड़ी खास जानकारी प्रदान करने जा रहे हैं। तो आइए बिना देर किए जानते हैं- 
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स्कंद पुराण के अनुसार पूरे कार्तिक मास में भगवान दामोदर की प्रसन्नता के लिए स्नान आदि से पवित्र होकर प्रतिदिन सायंकाल में दीपदान करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। ब्रह्मा जी कहते हैं कि कार्तिक मास में दीपदान से मनुष्यों के सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। दीपदान देते समय दामोदराय विश्वाय विश्वरूप धराय च। नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीप हरिप्रियम॥ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। भारतीय दर्शन में दीपक पवित्रता का प्रतीक तथा शुभ कर्मों का साक्षी माना गया है। दीपक के प्रकाश से स्वच्छता एवं सत्यता की अनुभूति होती है। दीपमंत्र इस प्रकार है।

शुभंकरोति कल्याणम् आरोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते॥

दीपावली पर्व मूल रूप से पांच पर्वों का त्यौहार है। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस तथा एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी का पर्व होता है। इस प्रकाश पर्व की शृंखला के पर्वों के दौरान लोगों का उत्साह पराकाष्ठा पर होता है। पुराणों के अनुसार कार्तिकअमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में मां महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आकर प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। इसलिए इस दिन घर-बाहर को खूूब साफ-सुथरा करके सजाया-संवारा जाता है। इस प्रकार ऐसी दृढ़ आस्था है कि दीपावली मनाने से धन-धान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी प्रसन्न होकर स्थायी रूप से सद्गृहस्थों के घर में निवास करती हैं। रात्रि के समय प्रत्येक घर में महालक्ष्मी जी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। कार्तिकअमावस्या को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनके राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था।
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प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी।
जनित बियोग बिपति सब नासी॥
प्रेमातुर सब लोग निहारी।
कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी॥

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प्रभु को देखकर अयोध्यावासी सब हर्षित हुए। वियोग से उत्पन्न सब दुख नष्ट हो गए। सब लोगों को प्रेम विह्वल देखकर कृपालु श्री रामजी असंख्य रूपों में प्रकट हो गए और सबसे (एक ही साथ) यथायोग्य मिले। श्री रघुवीर जी ने कृपा की दृष्टि से देखकर सब नर-नारियों को शोक से रहित कर दिया। श्री जानकी जी के सहित रघुनाथ जी को देखकर मुनियों का समुदाय अत्यंत हर्षित हुआ। तब ब्राह्मणों ने वेदमंत्रों का उच्चारण किया। आकाश में देवता और मुनि जय हो, जय हो ऐसी पुकार करने लगे।

अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। तब से आज तक समस्त  भारतवासी प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। घरों के द्वारों को तथा मंदिरों को दीप प्रज्ज्वलित कर प्रकाशमान किया जाता है। दीपावली की रात्रि को यह दृश्य देख कर हर कोई उत्साहित और हर्षोल्लास से परिपूर्ण होता है। मूल रूप से दीपावली पर्व का मूल भाव है आसुरी भावों अर्थात नाकारात्मक शक्तियों का नाश। दीपावली के ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़े कई प्रसंग हैं। जब राजा बलि ने भगवान विष्णु जी से उसके पाताल लोक की रक्षा हेतु वहीं रहने का वर मांगा, तो प्रभु वहीं ठहर गए। तब मां लक्ष्मी जी की प्रार्थना पर राजा बलि ने दीपावली पर्व पर मां लक्ष्मी जी को अपने पति श्री हरि विष्णु जी को आदर सहित ले जाने की आज्ञा दी। तब तीनों लोकों में दीपोत्सव पर्व मनाया गया। कठोपनिषद् में वॢणत यम-नचिकेता के संवाद में यम जी से ब्रह्म का अनश्वर ज्ञान लेकर जब नचिकेता पृथ्वी लोक पर लौटे तो इस प्रसन्नता में दीपावली पर दीप जलाए गए।

दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण जी की आज्ञा से ब्रजवासियों से इंद्र की बजाय गोवर्धन की पूजा करने को कहा, इन्द्र ने अहंकारवश इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी। भगवान श्री कृष्ण जी ने ब्रजवासियों को इंद्र द्वारा की गई मूसलधार वर्षा से रक्षा करने के लिए लगातार सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। अपने कृत्य से इंद्र अत्यंत लज्जित हुए और भगवान गोविन्द से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी, इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट पर्व के नाम से मनाया जाने लगा।
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Content Writer

Jyoti

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