Geeta Jayanti 2025 : कुरुक्षेत्र से विश्व तक गीता का ज्ञान, जिसकी ज्योति आज भी करती है दिशाएं रोशन
punjabkesari.in Monday, Dec 01, 2025 - 10:46 AM (IST)
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Geeta Jayanti 2025 : महाभारत के युद्ध में कर्त्तव्य मार्ग से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त वेदों, उपनिषदों के सारगर्भित ज्ञान को मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी के दिन श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में प्रदान किया। कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि पर अर्जुन अपने सगे-संबंधियों को देखकर अपने कर्तव्य मार्ग के प्रति मोहग्रस्त हो गए।
तब श्रीभगवान ने अर्जुन को कौरवों के भ्रष्ट तंत्र का स्मरण कराया और उसे भगवद्गीता का उपदेश सुनाकर पाप और अधर्म से बचा लिया। आनंद कंद भगवान श्री कृष्ण जी ने विश्व शांति एवं मानव कल्याण के उद्देश्य से जो उपदेश दिया, वह उपदेश श्रीमद्भगवद्गीता जी के रूप में सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण तथा उत्थान करने के लिए मार्गदर्शन कर रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण जी ने सभी धर्म ग्रंथों में वर्णित मानव कल्याण के सारगर्भित तत्व को ज्ञान योग और निष्काम कर्म योग के माध्यम से बतला कर सम्पूर्ण विश्व को जागृत किया है। भगवद्गीता हमें कर्त्वय परायण बनाती है तथा हमें कत्र्तव्य पलायनता से बचाती है। श्री भगवान अर्जुन को इस सृष्टि के सबसे अनिवार्य तत्व को कर्म तत्व के रूप बतलाते हुए कहते हैं कि नि:संदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता, क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा ‘परवश’ हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है।
महाऋषि वेदव्यास जी सम्पूर्ण धर्म ग्रंथों की रचना कर यह घोषणा करते हैं कि-
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः: शास्त्रविस्तरैः:।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता॥
अर्थात जो साक्षात कमलनाभ श्रीविष्णु भगवान जी के मुखकमल से निकली हुई है उस गीता शास्त्र का भली-भांति अर्थ सहित स्वाध्याय करना चाहिए, अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है ?
वराह पुराण में भगवान विष्णु पृथ्वी देवी से कहते हैं :
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि गीता मे चोत्तमं गृहम्:
गीताज्ञानमुपाश्रित्य त्रीँल्लोकान् पालयाम्यहम्॥
अर्थात : मैं गीता जी के आश्रय में रहता हूं, गीता मेरा उत्तम घर है और गीता के ज्ञान का आश्रय करके मैं तीनों लोकों का पालन करता हूं।

वाराहपुराण में ही महाऋषि वेदव्यास जी ने भगवद्गीता जी की महिमा में जो कुछ सूत जी महाराज से कहा, उसे सूत जी शौनक आदि ऋषियों से कहते हैं :
‘‘भरतखंड में चार वर्णों में मनुष्य देह प्राप्त करके भी जो अमृतस्वरूप गीता नहीं पढ़ता या नहीं सुनता, वह हाथ में आया हुआ अमृत छोड़कर कष्ट से विष का ही सेवन करता है किन्तु जो मनुष्य गीता सुनता है और पढ़ता है, वह इस लोक में गीतारूपी अमृत का पान करके मोक्ष प्राप्त कर सुखी होता है।’’
गीता में उच्च और नीच मनुष्य विषयक भेद ही नहीं हैं क्योंकि गीता ब्रह्मस्वरूप है, अत: उसका ज्ञान सबके लिए समान है। गीता के अर्थ को परम आदर से सुन कर जो आनंदवान नहीं होता, वह मनुष्य प्रमाद के कारण इस लोक में फल नहीं प्राप्त करता, किन्तु व्यर्थ श्रम ही प्राप्त करता है।
श्रीभगवान स्वयं ही गीताजी के विषय में वैष्णवीयतंत्रासार में कहते हैं :
-हे अर्जुन! गीता मेरा हृदय है, गीता मेरा उत्तम तत्व है, गीता मेरा अत्यंत तेजस्वी और अविनाशी ज्ञान है, गीता मेरा उत्तम स्थान है, गीता मेरा परमपद है, गीता मेरा परम गोपनीय रहस्य है और मेरी यह गीता श्रद्धालु जिज्ञासुओं के लिए अत्युत्तम गुरु है।
गीता, इस शब्द मात्र का उच्चारण करके मरने वाला मनुष्य सद्गति को प्राप्त होता है। भगवान कहते हैं कि जहां श्री गीता का विचार, पठन, पाठन तथा श्रवण होता है, वहां हे पृथ्वी! मैं अवश्य निवास करता हूं।
इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान के दीपक को अनंतकाल तक जलाए रखना प्रत्येक सनातन धर्मावलम्बी का परम कर्तव्य बनता है कि हम सर्वलोकाधिपति भगवान श्रीकृष्ण जी द्वारा सम्पूर्ण वेदों-उपनिषदों के सारगर्भित ज्ञान श्रीमद्भगवद्गीता को श्री गीता जयंती के पावन अवसर पर धारण करने का प्रण करें और अपने गृह निवास में इसकी प्रतिष्ठा करके इसका नित्य पठन-पाठन और स्वाध्याय करें। दया और करुणा जैसे मानवीय धर्म का ज्ञान है भगवद्गीता में।
विश्व मानवीय संस्कृति की एकता की संदेशवाहक है श्रीमद्भगवद्गीता एवं श्री गीता जयंती महापर्व। अत: विश्व समुदाय को श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेश से लाभ लेना चाहिए तथा श्री गीता जयंती महापर्व को विश्व शांति एवं सद्भावना दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए।
आज सम्पूर्ण विश्व इस ज्ञान का अध्ययन कर लाभान्वित हो रहा है। ज्ञान के प्रकाश का यह श्री गीता जयंती महापर्व आज संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है। भगवद् गीता में आत्म कल्याण तथा विश्व शांति के अटल शाश्वत सिद्धांत तथा मानवीय जीवन की हर संभव तथा असंभव जटिलताओं का समाधान हमें प्राप्त होता है जिसका अनुसरण कर मानव जीवन में कल्याण निश्चित है।

