सबसे पहले यहां हुई थी शिवलिंग की पूजा, क्या आप जानते हैं ये जगह

punjabkesari.in Saturday, Apr 11, 2020 - 07:29 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
न केवल देश में बल्कि पूरी दुनियाभर में हिंदू धर्म से जुड़े कई धार्मिक स्थल हैं जिनमें से अधिकतर मंदिर शिव जी से संबंधित है। आज हम आपको एक ऐसे ही शिव जी के प्राचीन मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसके बारे में मान्यता है कि दुनिया में शिवलिंग की पूजा का सबसे पहला गवाह यही मंदिर है। दरअसल ये मंदिर उत्तारखंड के अल्मोडा जिले के मुख्यालय से करीब 40 कि.मी दूर देवदार पेड़ों के घने जंगलों के बीचो-बीच स्थित है। जिसमें देवी मृत्युंजय यानि भगवान शंकर के साथ देवी पार्वती, हनुमान जी, भैरव, देवीदुर्गा तथा अन्य 124 मंदिर स्थित है। कहा जाता है इन समस्त मंदिरों में पुजारियों द्वारा विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।

भारतीय पुरातत्व विभाग की मानें तो इस मंदिर को देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता ह है बल्कि बकायदा इसकी घोषणा करता एक शिलापट्ट भी यहां लगा हुआ मिलता है। मंदिर के पुजारियों की मानें तो एक सचाई यह भी है कि इसी मंदिर से ही भगवान शिव की लिंग पूजा के रूप में शुरूआत हुई थी। तथा यहा शिव जी के पदचिह्न भी हैं। प्रचलित किंवदंतियों की मानें तो शिव जी के पदचिह्न
वहीं देवभूमि, उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने प्राचीन काल में अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

जिसके बाद से यहां शिव जी के लिंग रूप की पूजा का आरंभ हुआ। जिसके बाद पूरी दुनिया में शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। इसलिए ऐसा कहा जाता है इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं निर्मित यानि अपने आप उत्पन्न हुआ है, इसकी किसी न स्थापना नहीं की। और इसकी पूजा कब से शुरू हुई है इस बार में भी किसी को पूरी जानकारी नहीं है। लेकिन यहां के अन्यभव्य मंदिरों का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था। जो घने जंगलों के बीच विशाल परिसर में स्थापित है। इनमें देवी (पार्वती), नवदुर्गा, कालिका, नीलकंठेश्वर, सूर्य, नवग्रह सहित अन्य 124 मंदिर शामिल हैं।

बता दें हिंदू धर्म के शास्त्रों में 12 ज्योर्तिलिंगों से संबंधित जो श्लोक लिखा है उसमें इस मंदिर का नाम दिया गया है।
सोराष्ट्र सोमनाथ च श्री शेले मलिकार्जुनम ।
उज्जयिन्या महाकालमोकारे परमेश्वर ।
केदार हिमवत्प्रष्ठे डाकिन्या भीमशंकरम ।।<
वाराणस्या च विश्वेश त्रम्ब्कम गोमती तटे।।
वेधनात चिताभुमो नागेश दारुकावने ।
सेतुबंधेज रामेश घुश्मेश तु शिवालये ।।
द्वादशे तानि नामानि: प्रातरूत्थया य पवेत ।
सर्वपापै विनिमुर्कत : सर्वसिधिफल लभेत ।।

इसे दोहे में एक शब्द है "नागेश दारुकावने" इस शब्द की एक व्याख्या कुछ इस प्रकार हैं, दारुका के वन में स्थापित ज्योतिर्लिंग, दारुका देवदार के वृक्षों को कहा जाता हैं, तो देवदार के वृक्ष तो केवल जागेश्वर में ही है।


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Jyoti

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