Kundli Tv- शरद पूर्णिमा के दिन व्रत न रख सकने वाले करे ये काम
punjabkesari.in Tuesday, Oct 23, 2018 - 01:48 PM (IST)
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ज्योतिष के अनुसार अाश्विन मास की शुक्ल पक्ष को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है। इसके साथ ही इस दिन कोजगरा व्रत भी मनाया जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो इस साल की शरद पूर्णिमा दिन में लग रही है। ऐसे में प्रश्न ये बना हुआ है कि शरद पूर्णिमा 23 अक्टूबर को है या 24 अक्टूबर को। तो आइए जानते हैं कि इस विषय में पंचांग और शास्त्र क्या कहते हैं और किस दिन शरद पूर्णिमा का व्रत पूजन करना चाहिए। इसलिए है 24 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा शरद पूर्णिमा की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति के बारे धर्म सिंधु नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि-
श्लोक-
आश्विनपौर्णमास्यां कोजागर व्रतम्।।
केचित्पूर्वदिने निशीथव्याप्तिमेव परदिने प्रदोषव्याप्तिरेव तदा परेत्याहुः।।
कहने का अर्थ यह है कि शरद पूर्णिमा व्रत प्रदोष और निशीथ दोनों में व्याप्त पूर्णिमा के दिन किया जाता है। लेकिन पहले दिन पूर्णिमा का व्रत केवल निशीथ काल यानि मध्य रात्रि में हो और दूसरे दिन प्रदोष काल में करना चाहिए। इस साल यही स्थिति है। मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन से शरद ऋतु शुरु की शुरुआत हो जाती है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त रहता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्रमा से अमृतवर्षा होती है। कहा जाता है कि इस दिन सच्चे मन से चंद्रमा के सामने मांगी हुई हर मनोकामना पूरी होती है।
ज्योतिष के अनुसार शरद पूर्णिमा का दिन व्यक्ति को धन, प्रेम और स्वास्थ्य तीनों प्रदान करता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसलिए धन प्राप्ति के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। इसके साथ ही वहीं इस दिन के साथ यह भी मान्यता जुड़ी हुई है कि प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने अपनी गोपियों के साथ इसी दिन महारास रचाया था, इसलिए यह दिन प्रेम के लिए उत्तम माना जाता है। अगर आप निरोगी काया, सच्चा प्रेम व धन प्राप्ति चाहते हैं तो इस दिन विशेष प्रयोग करके व कुछ खास सावधानियों का पालन करके इन सभी को पा सकते हैं।
चंद्रमा के नीचे खीर रखना
लगभग सभी जानते होंगे कि शरद पू्र्णिमा की रात को खुले आसमान के नीचे खीर का प्रसाद बनाकर रखने का महत्व है। इसके पीछे एके बहुत ही सटीक कारण है, जिसके अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। बता दें कि वहीं खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है और विषाणु दूर होते हैं।
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा धरती के बहुत करीब होता है। इस समय चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में मौजूद रासायनिक तत्व सीधे-सीधे धरती पर आकर गिरते हैं, जिससे इस रात रखे गए प्रसाद में चंद्रमा से निकले लवण व विटामिन जैसे पोषक तत्व समाहित हो जाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं, ऐसे में इस प्रसाद को दूसरे दिन खाली पेट ग्रहण करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। सांस संबंधी बीमारियों में लाभ मिलता है और मानिसक पेरशानियां दूर होती हैं।
मान्यता के अनुसार इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने चाहिए।
अगर आप इस दिन उपवास नहीं रख रहे हैं तो कोशिश करें कि इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें।
इस पावन दिन को शरिर को जितना शुद्ध और खाली रखना बेहतर माना जाात है। कहा जाता है कि इससे आप अमृत को बेहतर तरीके से प्राप्त कर पाते हैं।
हो सकें तो इस दिन सफेद रंग के कपड़े या चमकदार वस्त्र ही पहनें, यह बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। इससे आपको पॉजिटिव ऊर्जा प्राप्त होती है।
इस दिन आप चांद की रोशनी में सुई में धागा अवश्य पिरोएं।
कहते हैं इस दिन राधा-कृष्ण को खुश करने के लिए गोपी गीत गाना चाहिए।
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