भगवान की भी बुद्धि फेरने की शक्ति रखती हैं ये देवी

punjabkesari.in Monday, Sep 25, 2017 - 01:39 PM (IST)

नारी शक्ति की प्रतिरूपा है और यह शक्ति मात्र उसके प्रचंड, चंडी के रूप में ही नहीं मां के कोमल हृदय और पतिव्रता के बहते आंसुओं के रूप में भी दिखती है। त्याग, तपस्या एवं सहनशीलता की मूर्ति के कारण नारी अपने हर रूप में अपनी स्थिति-परिस्थिति के साथ पूर्ण न्याय करती है और यही उसकी शक्ति का परिचय है। नारी की इसी शक्ति का वर्णन इस लेख में किया गया है।

पार्वती : गौरी यानी पार्वती, भगवान शिव की अर्धांगिनी जिनके बिना भोलेनाथ भी अधूरे हैं। इन दोनों का साथ जन्म-जन्मांतरों का है। पूर्व जन्म में गौरी ही शिव की पत्नी सती थीं। पिता दक्ष द्वारा पति का अपमान होते सहन नहीं कर पाईं और हवन कुंड में जलकर भस्म हो गईं परन्तु पति मोह को फिर भी न त्याग सकीं और हिमालय राज के घर पुनर्जन्म लेकर पार्वती के रूप में पैदा हुईं। घोर तपस्या कर भगवान शिव को पुन: पति रूप में पाया और न केवल शक्ति का पर्याय बनी अपितु अपने तेज से गणेश जैसे तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।

लक्ष्मी : समुद्र मंथन में 14 रत्नों में से एक थीं लक्ष्मी, जिनके रूप और गुण की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। देवता और असुर दोनों ही उन्हें देखकर चकित थे। लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को पतिरूप में चुना। लक्ष्मी के बिना हर कार्य अधूरा है। लक्ष्मी धन व शुभ प्रतीक हैं। हर खुशहाली उनके चरणों के आगमन से आती है। प्रत्येक व्यक्ति उनकी कामना करता है परन्तु लक्ष्मी अपने स्वामी विष्णु की चाह करती हैं। क्षीरसागर में शेषनाग पर लेटे विष्णु जी के चरण दबाती लक्ष्मी यही संदेश देती हैं कि पति-पत्नी एक-दूसरे के पूरक होते हैं जिनमें कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। लक्ष्मी यही कहती हैं कि मैं सदैव उनकी पूजा स्वीकारती हूं जो मुझसे पहले मेरे पति विष्णु जी को पूजते हैं।

ब्रह्मणी : ब्रह्म जी की पत्नी हैं ब्रह्मणी। एकदम शांत स्वभाव की यह देवी त्रिदेवियों में से एक हैं।

इंद्राणी : इंद्र की पत्नी हैं इंद्राणी जो इंद्रासन पर इंद्र के साथ विराजती हैं और कार्यों में इंद्र को सलाह-मशविरा देती हैं।

सरस्वती : ज्ञान की देवी हैं सरस्वती, जो ज्ञान की वर्षा करती हैं तथा व्यक्ति को सही रास्ता दिखाती हैं। सरस्वती मानव तो क्या भगवान की भी बुद्धि फेरने की शक्ति रखती हैं। तभी तो कहते हैं कि हे सरस्वती, हम पर सदैव कृपा दृष्टि रखना, सदैव बुद्धि को शुद्ध व सही दिशा में अग्रोषित करना।

गायत्री : गायत्री संगीत व सद्ज्ञान  की देवी हैं जोकि सदैव यही कहती हैं कि सत्य व सच्चाई के मार्ग पर चलो। गायत्री मंत्र एक कीलिक मंत्र है जिसके जपने मात्र से ही मानव के चारों ओर सुरक्षा कवच बन जाता है जो चारों ओर से रक्षा करता है।

रति : रूप सौंदर्य की देवी मानी जाती हैं रति। रति कामदेव की पत्नी हैं। भोलेनाथ की क्रोधाग्रि में भस्म हो जाने पर रति ने पति कामदेव की भस्म पर हजारों वर्षों तक तपस्या करके शिव जी को न केवल प्रसन्न किया अपितु कृष्ण पुत्र प्रद्युम्र के रूप में अपने पति कामदेव को पुन: प्राप्त किया।

काली : मां दुर्गा का ही एक रूप काली हैं। दस भुजाओं वाली और अपने दस हाथों में खड्ग, खप्पर, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिधि, शूल, भुशुण्डि, मस्तक, शंख धारण करती हैं। अपने सारे अंगों में दिव्य आभूषण पहने रहती हैं। इनका रंग काला है व जीभ बाहर निकली है, इनके शरीर से नीलमणि जैसी आभा निकलती है।

दुर्गा : जयंती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्रि, स्वाहा, स्वधा इन सभी नामों से पुकारी जाती हैं माता दुर्गा जोकि मधु कैटभ, महिषासुर का वध करती हैं, रक्तबीज, चंडमुंड व शुंभ-निशुंभ का नाश करती हैं और भक्तों की रक्षा करती हैं। 

दुर्गा देवी की शक्ति के आगे देवता, असुर, मानव सभी झुकते हैं। शेर की सवारी करने वाली व अष्ट भुजाओं वाली माता दुर्गा को जो भी सच्चे मन से देखता है या भजता है, वह उसका कष्ट दूर कर देती हैं।

नव दुर्गा : दुर्गा जी के ही नौ रूप हैं - 1. शैल पुत्री, 2. ब्रह्मचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कूष्मांडा, 5. स्कंद माता, 6. कात्यायिनी, 7. कालरात्रि, 8. महागौरी और 9. सिद्धिधात्री।

अब स्मरण करते हैं उन देवियों का जो शरीर के विभिन्न अंगों की चहुं ओर से रक्षा करती हैं हमारे शरीर की पूर्व दिशा में है एन्द्री। अग्रि कोण में अग्रि शक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही, नैऋत्य में खड्ग धारिणी, पश्चिम दिशा में कौमारी, ईशानकोण में शूलधारिणी, ऊपर की ओर  से ब्रह्मणी, नीचे की ओर से वैष्णवी साथ ही दसों दिशाओं से चामुंडा देवी रक्षा करती हैं। 

उद्योतनी शिखा की, उमा मस्तक की, ललाट की मालादरी, भौंहों की यशाविनी, भौंहों के मध्य भाग की त्रिनेत्रा। नथुनों की यमघंटा देवी रक्षा करती हैं, दोनों नेत्रों के मध्य भाग की शड्गिनी, कानों की द्वार वासिनी, कपोलों की कालिका देवी, शांकरी कानों के मूलभाग की रक्षा करती हैं। 

नासिका में सुगंधा, होंठों की चर्चिका व अमृतकला देवी, जिह्वा में सरस्वती देवी, दांतों की कौमारी, कंठ प्रदेश की चंडिका, गले की चित्र घंटा, तालु की महामाया देवी रक्षा करें। 
ठोडी की कामाक्षी, वाणी की सर्वमंगला, ग्रीवा भद्रकाली, मेरुदंड की धनुर्धरी, कंधों की खडिगनी, दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी, हाथों की दंडिनी, अंगुलियों में अम्बिका, नखों की शूलेश्वरी, पेट की कुलेश्वरी, शोक निवासिनी देवी मन की रक्षा करती हैं। 

हृदय की ललिता, उदर की शूलधारिणी, नाभि की कामिनी, विध्यावासिनी घुटनों की, महाबला दोनों पिंडलियों की, श्रीदेवी पैरों की उंगलियों की। 

ऊर्ध्वकेशिनी केशों की, त्वचा की बागेश्वरी, पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस-हड्डी की रक्षा करती हैं। आंतों की कालरात्रि, पित्त की मुकुटेश्वरी व अमेधा देवी शरीर के सभी जोड़ों की रक्षा करती हैं। क्षत्रेश्वरी छाया की, धर्म धारिणी हमारे अहंकार, मन, बुद्धि, वज्रहस्ता देवी प्राण, अपान, व्यान उदान की रक्षा करती है। कल्याणशोभना प्राणों की रक्षा करती हैं। योगिनी देवी सत्त्वगुण, रजोगुण, तमोगुण की रक्षा करती हैं। 

वाराही आयु की रक्षा करती हैं। वैष्णवी धर्म की रक्षा करती हैं। चक्रिणी यश, र्कीत, धन, लक्ष्मी, विधा की रक्षा करती हैं। गौत्र की रक्षा करती हैं इंद्राणी, चंडिके पशुओं की रक्षा करती हैं। विजया देवी सभी भयों से हमारी रक्षा करती हैं।
 


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