Dharmik Katha: तीर्थ नहीं, विचार बदलो

punjabkesari.in Saturday, Oct 08, 2022 - 12:10 PM (IST)

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एक कसाई एक पाड़े को लेकर जा रहा था। उसके पीछे-पीछे एक आचार्य अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे। आगे कसाई और उसके पीछे गुरु अपने शिष्य के साथ चल रहे थे कि बाल मुनि ने कहा, ‘‘गुरुदेव! यह कसाई इस पाड़े को घर ले जाकर 

अभी इसकी हत्या करेगा। अत: भगवन! इस भयंकर हिंसा से इसकी क्या गति होगी?’’

आचार्य भगवन ज्ञानी थे, उन्होंने कहा ‘‘वत्स! यह कसाई अल्प समय में केवली बनेगा।’’

शिष्य को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-यह कैसे होगा भगवन! 

गुरु ने कहा-मन एव मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयो! वत्स तुम जाओ इसके पीछे-पीछे। वहां खड़े होकर चुपचाप देखना कि इसे केवल ज्ञान कैसे होता है?

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कसाई घर आया। पाड़े को मारने हेतु तलवार ऊपर उठाई। पाड़ा चमक कर रस्सी तुड़ाकर भागा। इस हड़बड़ी में कसाई के हाथ की तलवार छूटी और उसके पैर के अंगूठे पर गिरी। अंगूठा कट गया। वेदना से छटपटाने लगा।

उसकी वेदना से कसाई के हृदय में चिंतन की चिंगारी जल उठी। स्व की वेदना में सर्व वेदना के दर्शन हुए। पश्चाताप की आग हृदय में प्रज्वलित हो गई। अपने कर्मों के प्रति भयंकर पछतावा और सर्व जीवों के प्रति क्षमायाचना के भाव। इन शुभ अध्यवसायों से सारा कलिमल धुल गया और उच्च भावों में रमण करने के कारण अल्प समय में ही केवल ज्ञान हो गया। कसाई केवली बन गया। पापी परमेश्वर बन गया।

इसलिए कहते हैं पापी कब परमेश्वर बन जावे कुछ कहा नहीं जा सकता। आवश्यकता है मन बदलने की, भाव बदलने की, हृदय बदलने की और आत्मज्ञान का दीया जलाने की।
 


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Content Writer

Jyoti

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