Dharmik Katha: हर छोटी बात में छिपा है बड़ा संदेश

punjabkesari.in Monday, Jun 06, 2022 - 05:01 PM (IST)

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राजा गोपीचंद का मन गुरु गोरखनाथ के उपदेश सुन कर सांसारिकता से उदासीन हो गया। मां से अनुमति लेकर राजा गोपीचंद साधु बन गए। साधु बनने के कुछ दिन बाद एक बार वह अपने राज्य में लौटे और भिक्षा पात्र लेकर अपने महल में पहुंच कर आवाज लगाई, ‘‘अलख निरंजन’’।
PunjabKesari Guru Gorakhnath, गुरु गोरखनाथ, Dharmआवाज सुन कर उनकी मां भिक्षा देने के लिए महल से बाहर आईं। गोपीचंद ने अपना भिक्षा पात्र मां के आगे कर दिया और कहा, ‘‘मां मुझे भिक्षा दो।’’

मां ने भिक्षा पात्र में चावल के तीन दाने डाल दिए। गोपीचंद ने जब इसका कारण पूछा तो मां बोली, ‘‘मैं तुम्हारी मां हूं। चावल के तीन दाने मेरे तीन वचन हैं। तुम्हें इसका पालन करना होगा।

‘‘पहला वचन, तुम जहां भी रहो, वैसे ही सुरक्षित रहो, जैसे पहले मेरे घर में रहते थे। दूसरा वचन, जब खाओ तो वैसा ही स्वादिष्ट भोजन खाओ जैसे राज महल में खाते थे। तीसरा वचन उसी तरह निद्रा लो जैसे राज महल में अपने आरामदेह पलंग पर लेते थे।’’

गोपीचंद इन तीनों वचनों के रहस्य को नहीं समझ सके और कहने लगे, ‘‘मां मैं जब राजा नहीं रहा तो कैसे सुरक्षित रह सकता हूं?’’
PunjabKesari Raja Gopichand, Gopichand ji, राजा गोपीचंद
मां ने कहा, ‘‘तुम्हें इसके लिए सैनिकों की आवश्यकता नहीं। तुम्हें क्रोध, लोभ, माया, घमंड, कपट जैसे शत्रु घेरेंगे। इन्हें पराजित करने के लिए अच्छी संगत, अच्छे विचार, अच्छा आचरण रखना होगा।
गोपीचंद ने फिर पूछा, ‘‘वन में मेरे लिए कौन अच्छा भोजन पकाएगा?’’

मां ने कहा, ‘‘जब ध्यान योग में तुम्हारा पूरा दिन व्यतीत होगा तो तुम्हें तेज भूख लगेगी। तब उस स्थिति में जो भी भोजन उपलब्ध होगा वह स्वाद वाला ही होगा और रही सोने की बात तो कड़ी मेहनत से थक कर चूर होने के बाद जहां भी तुम लेटोगे, गहरी निद्रा तुम्हें घेर लेगी।’’

मां के इन तीनों वचनों ने गोपीचंद की आंखें खोल दीं। इसके बाद वह फिर से ज्ञान की तलाश में आगे निकल पड़े। जीवन में कोई-सी छोटी बात भी हमें बड़ा संदेश दे जाती है।
 


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Content Writer

Jyoti

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