संत पुरन्दर दास से जुड़ा ये धार्मिक प्रसंग है प्रेरणात्मक, जरूर पढ़ें

punjabkesari.in Wednesday, Nov 24, 2021 - 10:52 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
विजयनगर के कृष्णदेव राय ने जब राजगुरु वायसराय से संत पुरन्दर दास के सादगी भरे जीवन और निर्लोभता की प्रशंसा सुनी, तो कृष्णदेव राय ने संत की परीक्षा लेने की ठानी। संयोगवश पुरन्दर दास ने उसी स्थान पर आकर ‘नारायण हरि’ की ध्वनि दी, जिसके निकट कृष्णदेव राय जी का महल था। राय ने मुट्ठी भर चावल लिए, उसमें कुछ हीरे-मोती मिलाए और भिक्षा संत पुरन्दर दास जी के भिक्षापात्र में डाल दी। भिक्षा लेकर संत वापस चले आए, भिक्षा की झोली अपनी पत्नी सरस्वती देवी को दे दी। देवी ने झोली में चावल देखे, उन्हें साफ करने लगी तो चावलों में हीरे दिखाई दिए।

देवी, ‘‘पतिदेव! आज भिक्षा कहां से लाए हैं?’’ 

पुरन्दर, ‘‘देवी! राजमहल से।’’ 

यह सुनकर सरस्वती देवी ने चावल साफ किए और हीरे निकाल कर कुटिया के एक ओर रख दिए। ऐसा क्रम एक सप्ताह तक चलता रहा। सप्ताह के अंत में राजा ने वायसराय जी से कहा, ‘‘महाराज!  मुझे तो पुरन्दर दास लोभी दिखाई देता है।’’

व्यास राय जी ने कहा, ‘‘राजन! संत जी के घर चलिए और सच्चाई को अपनी आंखों से देखिए।’’ 

दोनों संत की कुटिया में पहुंचे। उन्होंने देखा कि सरस्वती देवी चावल की सफाई कर रही है। कृष्णदेव राय ने कहा, ‘‘बहन! चावल बीन रही हो?’’ 

देवी ने कहा, ‘‘हां भैया! क्या करें। कोई गृहस्थ भिक्षा में ये कंकर डाल देता है, बीनने पड़ते हैं।

राजा ने कहा, ‘‘बहन! तुम बहुत भोली हो, ये तो बहुत मूल्यवान हीरे हैं।’’ 

सरस्वती देवी, ‘‘भैया! ये हीरे आपको मूल्यवान दिखाई देते हैं, हमारे लिए तो ये कंकर-पत्थर ही हैं।’’ 

यह कौतुक देखकर कृष्णदेव गद्गद् हो उठे।
—स्वामी ईश्वरदास शास्त्री


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Jyoti

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