अपने आप पर Proud करने वाले अवश्य पढ़ें, ये कथा...

punjabkesari.in Wednesday, Dec 04, 2019 - 08:11 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

प्राचीनकाल की बात है, दम्भीद्भव नाम का एक उत्तम राजा था। वह महारथी सम्राट हर रोज़ सुबह उठकर ब्राह्मण और क्षत्रियों से पूछा करता था कि, ‘क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में कोई ऐसा शस्त्रधारी है, जो युद्ध में मेरे समान अथवा मुझ से बढ़कर हो?’

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इस प्रकार कहते हुए वह राजा अपने आप पर बहुत गर्व करता। सारी पृथ्वी पर वह बहुत अभिमान से घुमता था। राजा का ऐसा घमंड देखकर कुछ तपस्वी ब्राह्मणों ने उससे कहा, ‘‘इस पृथ्वी पर ऐसे दो सत्पुरुष हैं, जिन्होंने संग्राम में अनेकों को परास्त किया है। उनकी बराबरी तुम कभी नहीं कर सकोगे।’’

 इस पर उस राजा ने पूछा, ‘‘वे वीर पुरुष कहां हैं? उन्होंने कहां जन्म लिया है? वे क्या काम करते हैं? और वे कौन हैं?’’

ब्राह्मणों ने कहा, ‘‘वे नर और नारायण नाम के दो तपस्वी हैं, इस समय वे मनुष्य लोक में ही आए हुए हैं, तुम उनके साथ युद्ध करो। वे गंधमादन पर्वत पर बड़ा ही कठिन तप कर रहे हैं।’’

राजा को यह बात सहन नहीं हुई। वह उसी समय बड़ी भारी सेना सजाकर उनके पास चल दिया और गंधमादन पर जाकर उनकी खोज करने लगा। थोड़ी ही देर में उसे वे दोनों मुनि दिखाई दिए। उनके शरीर की शिराएं तक दिखने लगी थी। शीत, गर्मी और वायु को सहन करने के कारण वे बहुत ही पतले हो गए थे। राजा उनके पास गया और चरण स्पर्श कर उनसे कुशल पूछी। मुनियों ने भी फल, मूल, आसन और जल से राजा का सत्कार करके पूछा, ‘‘कहिए, हम आपका क्या काम करें?’’

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राजा ने उन्हें आरंभ से ही सब बातें सुनाकर कहा कि ‘इस समय मैं आप से युद्ध करने के लिए आया हूं। यह मेरी बहुत दिनों की अभिलाषा है, इसलिए इसे स्वीकार करके ही आप मेरा आतिथ्य कीजिए।’

नर-नारायण ने कहा, ‘‘राजन! इस आश्रम में क्रोध-लोभ आदि दोष नहीं रह सकते, यहां युद्ध की तो कोई बात ही नहीं है, फिर अस्त्र-शस्त्र या बुरी प्रकृति के लोग कैसे रह सकते हैं? पृथ्वी पर बहुत-से क्षेत्रिय हैं, तुम उनसे युद्ध के लिए प्रार्थना करो।’’ 

नर-नारायण के इस प्रकार बार-बार समझाने पर भी अभिमान से भरे हुए राजा की युद्ध करने की लालसा शांत न हुई और वह इसके लिए उनसे ज़िद करता ही रहा।

तब भगवान नर ने एक मुट्ठी सींकें लेकर कहा, ‘‘अच्छा, तुम्हें युद्ध की बड़ी लालसा है तो अपने हथियार उठा लो और अपनी सेना को तैयार करो।’’

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यह सुनकर अभिमान से भरा हुआ राजा और उसके सैनिकों ने उन पर बड़े पैने बाणों की वर्षा करना आरंभ कर दिया। भगवान नर ने एक सींक को अमोघ अस्त्र के रूप में परिणत करके छोड़ा। इससे यह बड़े आश्चर्य की बात हुई कि मुनिवर नर ने उन सब वीरों के आंख, नाक और कानों को सींकों से भर दिया। इसी प्रकार सारे आकाश को सफेद सींकों से भरा देखकर राजा दम्भोद्भव उनके चरणों में गिर पड़ा और ‘‘मेरी रक्षा करो, मेरी रक्षा करो’’ इस प्रकार चिल्लाने लगा। 

तब नर ने शरणापन्न राजा से कहा, ‘‘राजन! ऐसा काम फिर कभी मत करना। तुम बुद्धि का आश्रय लो और अहंकार, जितेंद्रिय, क्षमाशील, विनम्र और शांत होकर प्रजा का पालन करो। अब भविष्य में तुम किसी का अपमान मत करना।’’

इसके बाद राजा दम्भोद्भव उन मुनीश्वरों के चरणों में प्रणाम कर अपने नगर में लौट आया। उसका अहंकार नष्ट हो गया और वह सबसे अच्छी तरह धर्मात्मा बनकर व्यवहार करने लगा।  


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Niyati Bhandari

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