आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में छिपा सफलता पाने का रहस्य, आप भी जानें
punjabkesari.in Tuesday, Feb 23, 2021 - 05:03 PM (IST)
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आचार्य चाणक्य का नाम इतिहास के पन्नों पर एक महान कूटनीतिज्ञ के तौर पर दर्ज है। इन्हें संपूर्ण भारत श्रेष्ठ विद्वानों में से माना जाता है। इनके द्वारा रचित नीकि श्लोक में मानव जीवन से संबंधित लगभग हर बात के बारे में बताया है। कहा जाता है कि आचार्य चाणक्य किसी एक विषय के नहीं बल्कि कई विषयों के ज्ञाता थे। इन्हें अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र के साथ साथ विज्ञान तथा कूटनीति शास्त्र का भी अच्छा-खासा ज्ञान था। इनके पास ज्ञान का विशाल सागर था। यही कारण है कि आज के समय में भी लोग इनकी द्वारा बताई गई नीतियों को अपनाता है। तो चलिए आज एक बार फिर आपको बताते हैं कि चाणक्य नीति सूत्र में वर्णित इनके उस श्लोक के बारे में जिसमें उन्होंने व्यक्ति की सफलता का रहस्य बताया है।
चाणक्य नीति श्लोक-
एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगंधिना।
वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को सफल होने के लिए ज्यादा गुणों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि कभी-कभी केवल एक गुण ही सफलता पाने के लिए काफी होता है। चाणक्य के मुताबिक एक श्रेष्ठ गुण भी व्यक्ति बुलंदियों पर पहुंचा सकता है।
इस श्लोक के द्वारा आचार्य चाणक्य यही समझाना चाहते हैं कि गुणवान व्यक्ति अपने एक गुण से ही सभी पर अपना प्रभाव छोड़ने में सक्ष्म है। उदाहरण देते हुए चाणक्य कहते है कि जिस तरह से संपूर्ण वन में सुंज फूलों वाला एक पौधा ही अपनी सुगंध से पूरे वन को सुगंधित कर सकता है। ठीक उसी तरह से एक सुपुत्र ही पूरे कुल का नाम रोशन करने के लिए काफी होता है।
चाणक्य नीति श्लोक-
एकेन शुष्कवृक्षेण दह्ममानेन वहिृना।
दह्मते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा।
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह जंगल में सूखे हुए वृक्ष में आग लगने से संपूर्ण वन जलकर भस्म हो जाता है, उसी प्रकार कुपुत्र पैदा होने पर पूराक कुल नष्ट हो जाता है तथा हर जगह कुल के अपयश ही कहानियां फैल जाती हैं। इन दोनों श्लोकों से चाणक्य यही समझाना चाहते हैं कि गुण से युक्त व्यक्ति सम्मान पाता है और अवगुण धारण करने वाला व्यक्ति न केवल खुद अपयश पाता है बल्कि अपने कुल के भी अपयश का कारण बनता है।
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